मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

और वो पूरा कैरेक्टर में था…


                 पूरे १० बजे से उसका वेट कर रहा था…इतना वेट ..कि मेरा वेट बढने लगा था…रूम मेट्स परेशां थे…एक बोला कि पैकिंग हो गयी??…मेरा जवाब “ अबे एक बैचेलर को क्या पैकिंग करनी होती है बे…२ जोड़ी कपडे और कुछ उम्मीदें..इससे ज्यादा क्या चाहिए" …तालियाँ बजी …वाह वाह के साथ थू थू के दौर चले…और अगला सवाल…"पर जाओगे कब बे"…मैंने बोला “ यार प्लान तो ११ बजे का था अभी तक तो कोई अता-पता नहीं"….
               रात के ११ बजे एक फोन आया “ अच्छा होगा सब लोग एक ही जगह या दो जगह इकठ्ठा हो जाओ”…मेरे को लगा क्या लोजिकल सजेशन है…कई प्लान बनाये… JD और मै शिशिर के यहाँ चले जाते हैं…रजत , आनंद के यहाँ… फिर अगला प्लान बना .. उसके बाद अगला...प्लान तभी बनाओ जब टाइम कम हो…जब टाइम भरपूर हो तो प्लान बनने के तुरंत बाद टूट जाते हैं…यही हुआ…कोई कहीं नहीं गया…
             रात के १२ बजे का टाइम…सूनसान सड़कें ….ठंडी हवा चल रही थी…मै सड़क के किनारे खड़ा था…सामने से एक गाडी आ रही थी…फोन करके रास्ता मैंने ही बताया था…वो गाड़ी रुकी…आवाज़ आई…”देवांशु??” …जवाब हाँ ही था…गाड़ी में ३ लोग थे..पर एक इंसान अलग सा दिख रहा था…हमारा वाहन चालक…जिसे हिंदी में ड्राईवर भी कहते हैं…
             उसने घूर के मेरी ओर देखा जैसे कह रहा हो…” आओ ठाकुर आओ" …सिंह इज किंग के उस गब्बर सिंह से ये मेरी पहली मुलाक़ात थी…सवालों की गंगा बहाई गयी…"कहाँ चलें" गब्बर बोले ..मन में आया बोल दूं.."गाड़ी तुम्हारी…जहाँ मर्ज़ी चलो.." ऑफर देना रिस्की था…बोल दिया जलवायु विहार चलो….
              शिशिर के घर का रास्ता मुझे बिलकुल ठीक याद था..तो पक्का मै गलत जगह पहुंचा…पूरे एक चौराहे आगे निकल गया था…ठाकुर ने गब्बर से हाँथ माग लिए…”यू टर्न लेना भैया" वही घूरती नज़रें…गाड़ी मुडी…एक चौराहे पीछे आयी…कॉलोनी में घुसने से पहले गब्बर बोले “ किसी कि भी गाड़ी ठुँकी तो पैसा तुम दोगे" ठाकुर हार गए…चलने का आदेश गब्बर ने खुद ही ले लिया…
              इसके बाद एक एक करके रजत (राजीव चौक) , आनंद (सेक्टर १५) और JD (कटारिया चौक) को उठाया गब्बर ने…
              अभी तक गाड़ी कि स्पीड ने ३० का आंकड़ा नहीं सहा था ..पर गब्बर सिंह कि जवानी उफान पे थी…
पहला पड़ाव… तो गब्बर सिंह की हमसे पहली मुलाकात (असली वाली) रजत के उस वार्तालाप से हुई जिसमें ये तय करना था कि जाना किस रस्ते है….अरे मैं तो बताना ही भूल गया…भाई लोगो हम लोग रिवर राफ्टिंग के लिए हृषिकेश जा रहे थे…गब्बर सिंह हमारे ड्राईवर थे और उनका एक शागिर्द ..उसे साम्भा नाम दिया जा सकता है….उनका सहयोगी था….
हाँ तो कहानी शुरू हुई रस्ते से …..गब्बर देवता जो रास्ता जानते थे वो अलग था और जो रास्ता रजत बता रहे थे वो अलग था…पर चली केवल गब्बर की….
एक जगह रुकने पर मैंने बाहर निकलना चाहा तो सम्भा का आदेश आ गया “ अंदर ही घूमो “…हम सब को उम्र कैद मिल गए थी….
किसी तरह रस्ते में आशुतोश से मिलने के बाद गाड़ी चली तो ४० के पार नहीं जा रही थी….बच्चे साथ में थे फिर भी लग रहा था कि गाड़ी तेज चलवाई जाये….पर न गब्बर माने न साम्भा….मैंने आशुतोष कि गाड़ी में बैठने का निर्णय लिया ….
पड़ाव दर पड़ाव…गब्बर आगे आगे और मै आशुतोष कि गाड़ी में, उनका वैसे ही अनुसरण कर रहे थे जैसे चीटियों के झुण्ड में हर पीछे वाली चींटी आगे वाली का करती है…आशुतोष शिव जी का एक नाम है…शिव जी का गुस्सा भडका कुछ दिल्ली  स्टाइल में “ साला मै इसका पीछा क्यूँ कर रहा हूँ…४० के ऊपर जा ही नहीं रहा है…परसों पहुंचेगा क्या???” “शायद पहाड़ों पे तेज चलाता होगा" मैंने अपना विचार व्यक्त किया…सभी को अभिव्यक्ति का अधिकार है|
आशु बोले “ साले को आगे निकल जाने दो…अपन १५-२० मिनट बाद चलेंगे"….हम आधे घंटे बाद चले पर गब्बर हमसे १५ मिनट में ही मिल गए…फिर गाड़ी रोकी गयी…२० मिनट बाद हम फिर चले…अब अगले २ घंटे तक मिस्टर गब्बर हमें नहीं दिखे..पहाड़ी रास्ता आ गया था…और मेरी बात सही लगने लगी थी….
आखिरी पड़ाव….में कैंप के ठीक पहले वाले होटल में पहुंचे हुए डेढ़ घंटे से भी ऊपर हो गया था….कुल ५ पराठे, ३ कप चाय, १ पेप्सी और १ फैंटा ….समाप्त करने के बाद गब्बर कि गाड़ी के आने की उम्मीद जगी….गाड़ी आयी…साम्भा उतरे…फिर १-१ करके आनंद,फिर उनकी better half, उनफिर के सुपुत्र , फिर शिशिर, उनकी better half , उनकी सुपुत्री और अंत में JD ( आपको बताता चलूँ  न तो JD  कि शादी हुई है और न तो….)
इस बीच गब्बर मेरे पास आके खड़े हो गए ..मंद मुस्कान लिए हुए मानों कह रहे हों…” शुक्रिया नहीं बोलोगे दोस्त …हमने दर्शन दिए हैं….”..आप ही के तो दर्शन करने थे..वरना गंगा तो कानपुर में भी है और कोलकाता में भी, वहाँ न चले जाते..
राफ्टिंग के बारे में फिर कभी लिखूंगा..अभी तो इस कैरेक्टर में मन लग गया था…बस का वेट करने में हमने दुनिया के सारे चुटकुले जो सरदारो पर बने थे सुना डाले…पर हमें क्या पता था अगला आने वाला हर दिन नए चुटकुले लेकर आएगा…

प्रथम दिवस ऑफ राफ्टिंग…गब्बर को आदेश था कि शिवपुरी पे हमको लेने आ जाये…हमें शिवपुरी पहुंचे हुए १ घंटे से ऊपर हो चुका था…करीबन १० चाय हम गटक चुके थे, ६ अण्डों कि बलि भी दी जा चुकी थी…हम सब भीगे हुए थे…हवा जैसी भी थी ठंडी ही लग रही थी…” हर आहट पे ये गुमां हो रहा था कि वो नज़र छुप के हमें देख रही हो जैसे"
पूरे १ घंटे बाद पता चला कि गब्बर ने बेस कैंप से, जो कि कम से कम १६ किलोमीटर ऊपर था, हमें लेने आने का मन बना लिया है…उन्हें आने में कुछ ४५ मिनट लग गए…जब उन्होंने हमें ऊपर पहुँचाया तो घनघोर अँधेरा छा चुका था…
“जिंदगी में अपने मन का हो तो अच्छा, न हो तो ज्यादा अच्छा" इस लेट लतीफी के चलते जो छुपा हुआ परोपकार उस “साले" गब्बर ने किया था वो हमें तब पता चला जब हमने पूरे डेढ़ किलोमीटर की ट्रेकिंग मोबाइल कि रोशनी में पूरी कि…हम कितने मूर्ख थे …वो देवता रुपी इंसान गब्बर सिंह हर पल में हमारे जीवन में adventure  भर रहा था…प्रभु कि लीला प्रभु ही जाने….
दूसरा दिवस ऑफ राफ्टिंग…भाई साहब …दूसरे दिन हमें शिवपुरी पहुँचाना था …हम बेस कैंप के पास वाले होटल में सरदार जी से मिलने गए ताकि वो हमें ले चलें…पर गब्बर और साम्भा नहाने गए थे…इस बार adventure  का पार्ट था…लोकल बस में चलना….वो भी पूरा हुआ…राफ्टिंग भी पूरी हुई…आनंद जो कि बेस कैंप पे ही रुके थे , उनको फोन किया कि कहाँ हो??…पता चला सरदार जी ४ घंटे से नहीं आये…हार के सब लोग बेस कैंप कि ओर चल दिए…भला जो JD  का, जिसके $१५० के गागल्स लेने के लिए आनंद वापस होटल पे आये और उन्हें सरदार दिख गए “प्रभु अपने भक्तों को दर्शन देने के कैसे कैसे बहाने ढूंढ लेते हैं"…
अब तक तो आप समझ गए होंगे कि सरदार जी ही हमारे ड्राईवर हैं (और अगर नहीं समझे तो गब्बर को तो जान ही गए होंगे ..अरे वही सिंह इज किंग वाले)…वो हमें राफ्टिंग के बाद ऋषिकेश ले गए..तय हुआ कि  ठीक ५ बजे हम लोग एक प्वाइंट पे फिर मिलेंगे जहाँ से सरदार जी हमें बेस कैंप ले जायेंगे…पर हम तो हिन्दुस्तानी हैं…देर से पहुंचे..सरदार जी को फोन किया गया..पता चला वो ठीक ५ बजे आये थे..हम नहीं मिले तो वो बेस कैंप कि ओर चल दिए….JD का उदगार आया “ साला वाकई में “पाजी” है" 
रात को सर्व सम्मति से निम्नलिखित निर्णय लिए गए…
१. गब्बर पक्का ट्रक ड्राईवर होगा…attitude वैसा ही है…
२. और साम्भा पक्का cleaner  रहा होगा, जो साइड में बैठ के गिन कर बोलता होगा “ उस्ताद आज तो  कल से एक कम ही ठोंका"
३. ब्रेक लगाने से पहले गाड़ी कि स्पीड बढा लेता है गब्बर, जिससे लोग गिर पड़ें और लगे गाड़ी तेज चल रही थी …कुल मिलाके चलाता धीरे है ब्रेक तेज लगता है….
आखिरी दिनअब हमारा टूर समाप्त हो रहा था…आज अपेक्षाकृत सरदार जी नोर्मल थे …हम चले…आज स्पीड भी ठीक थी…उन्होंने हमें बड़ी विनम्रता के साथ बताया…”पहाड़ों पे ए सी नहीं चल पायेगा”…हम उनकी सत्यवादिता पे आह्लादित हो गए थे….फिर बाद में ए सी भी चला .. अगली डिमांड गानों कि आयी…सरदार जी ने सूचित किया सी डी नहीं है…
हमने खुद ही अन्ताक्षरी भी खेल डाली…बड़ी कृपा थी प्रभु कि…इतने बड़े बड़े talent सामने आये…”अगर उन्होंने गाने चला दिए होते तो अगला इंडियन आयडल कैसे बनता…” उसकी तो नां में भी हाँ ही होती है"..इस बीच साम्भा ने भी कुछ गाने मोबाइल पे चला दिए थे…
सबको भूक लगी ..एक ढाबे पे रुका गया…साम्भा के गाने काफी कातिलाना थे..बचने के लिए सी डी खरीदी गयी…रफ़ी साहब, मुकेश साहब, गुलाम अली साहब, लता, आशा आदि आदि…टेस्टिंग के लिए JD को भेजा गया…नया खुलासा किया सरदार जी ने…” यार सी डी प्लयेर भी नहीं है" |
हम सबने प्रभू कि इस अदभुत लीला के लिए हाथ जोड़ा…और बिना कुछ बोले अपने अपने घर के लिए चल दिए…सरदार जी अधूरे मन से सबको उनके घर छोड़ रहे थे..और ये इस बात का तब पता चला जब उन्होंने जलवायु विहार के नाके पे लगे बैरियर में ही अपनी गाडी ठोंक दी….किसी तरह उन्होंने सकुशल मुझे मेरे घर पहुंचा दिया….
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इन सब बातों को अब बीते हुए २४ घंटे हो रहे हैं…लगता है की जैसे किसी फिल्म कि कहानी हो…हम सब के मन में उसके लिए असीम गुस्सा था…पर हम दिखाना नहीं चाह रहे थे…और वो एक मंझे हुए कलाकार कि तरह अपने रोल को निभा रहा था…एक वही तो था जो अपने पूरे कैरेक्टर में था .. बाकी तो बस ऐवें ही थे…. आप भी उनके दर्शन करें…highly recommended!!!!