मंगलवार, 26 जुलाई 2011

चलो थोड़ा रूमानी हों जाएँ…


“टिंग टोंग"….दरवाज़े की  घंटी बजी…वो दौड़ती हुई अपने कमरे से निकली…और भाग के दरवाज़ा खोला..बाहर वो खड़ा था…
“तुम आ गए हो नूर आ गया है"…स्वागत कुछ शायराना हो गया
“चलो फिर तीनो बैठ के पिक्चर देखते हैं" …वो बोला …
“पी जे…और तुमसे कोई क्या एक्सपेक्ट कर सकता है" ..उसने चिढते हुए कहा…
“अंदर आने को नहीं बोलोगी'…
“अगर नहीं कहूँगी तों क्या नहीं आओगे"…
“शायद नहीं"
“तो फिर मत आओ"
“कौन है बेटा" अंदर से उसके पापा की आवाज़ आयी …
“कोई है जो आया तो है…पर आना नहीं चाहता"…
****
“कभी-कभी लगता है कि ये जो जिंदगी है ना, किसी कंपनी के नोटिस पीरिअड  की तरह होती  है…पैदा होते ही आप रिजाइन कर देते हो और सिर्फ रिलीज़ डेट का वेट करते रहते हो..अंतर है तो बस इतना कि कंपनी का नोटिस पीरिअड खत्म होने के बाद दूसरी कंपनी में जाते हैं और जिंदगी के बाद पाता नहीं कहाँ…कुछ लोग होते हैं तो इसे एन्जॉय करते हैं..और बाकी बस परेशान होते रहते हैं…."
***
राजेश की  जिंदगी में कुछ नया बहुत कम हो रहा था आजकल…जोइनिंग का वेट बहुत खराब होता है…जान निकाल लेता है…पिता सरकारी ऑफिस में बाबू..माँ एक गृहिणी..अकेली संतान…
शहर पहाड़ों का था और बहुत बड़ा नहीं था | राजेश को पेंटिंग का काफी शौक था …अकसर चला जाता था वादियों में कुछ बनाने, खुश रहता था…
एक दिन कहीं से घूम के लौट रहा था, हाथ में कुछ पोस्टर थे | सामने से किसी ने उसे जोर की  टक्कर मारी…वो गिरते गिरते बचा…वो पलट के कुछ बोलता इससे पहले ही किसी लडकी  की आवाज़  आयी…”देख के नहीं चल सकते"
और वो देखता रह गया…खुले बाल, सुन्दर चेहरा, नशीली आँखें, और होठों के पास एक छोटा सा तिल…
वो कुछ भी नहीं बोल सका..लडकी के हाथ में कुछ बुक्स थीं…वो गिर पडी थीं उसने उन्हें संभाला…और  वहाँ से चली गयी….
dream
राजेश को अभी भी होश नहीं आ पाया था…वो एक  टक उसे देखता रहा फिर आगे बढ़ने लगा…अचानक उसे ज़मीन पे पड़ा एक कागज दिखा…जो शायद उस लडकी की किताबों से गिरा था…उसने उसे उठा लिया..पर पढ़ पाने की  हिम्मत नहीं थी…उसे सब घूर घूर के देख रहे थे….वो घर की  ओर चल दिया…..
****
“मां मेरी जोइनिंग आ गयी है….५ अगस्त बंगलोर….” उसने घर में घुसते ही बोला…
“चल बढ़िया है..चाय बनाऊं??”…
“नहीं पापा को आ जाने दो..साथ में पियेंगे…”
“ठीक है …मैं पड़ोस में जा रही हूँ ज़रा …”
“ठीक है…”
वो भागते हुए अपने कमरे में पहुंचा…पिछले कई दिनों से बड़ा परेशान सा था…कई बार उस कागज के टुकड़े को पढ़ चुका था…पर कुछ समझ नहीं पाया था…वो सुईसाइड नोट था…जिसमे आज से ४ दिन पहले किसी ने मरने की  बात कही थी…उसने पुलिस को भी बता दिया था…
कुछ दूरी पर एक आदमी ने कूद के जान देने कि कोशिश की थी पर उसे बचा लिया गया था…और ये कागज तो लडकी के पास से मिला था और उसी ने मरने कि बात भी बोली थी शायद …तो ये लैटर  उस आदमी का नहीं था…
वो अक्सर उस सड़क से बार बार गुज़रा पर वो लडकी उसे दुबारा नहीं दिखी…
उसने एक बार फिर कागज पढना शुरू किया…
डिअर पापा एंड ममा,
मुझे आप लोगो से कोई शिकायत नहीं है…पर मुझे लगता है कि मै इस दुनिया पे बोझ सी हूँ…आप लोग मुझे डॉक्टर बनाना चाहते थे..मै बन ना सकी..यकीन मानिये मैंने कोशिश की थी…पर नहीं बन सकी…जीना बेकार सा लगने लगा है…मै मरना चाहती हूँ….और वही करने जा रही हूँ…
                                                                                         स्वीटी.
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राजेश ने अपनी कम्पनी से रिजाइन कर दिया था…पूरे पांच साल से तो था यहाँ…कहीं और काम करने का मन कर रहा था…
अपने ऑफिस की पेडस्टल को वो खाली करने लगा…जब से इस कंपनी में है इसी डेस्क पे वो बैठता आया है…पता नहीं कब कब के कागज निकल रहे थे…कुछ पुराने रीमबर्समेंट के पेपर, कुछ मेंडेट्री पर बेकाम के सर्टीफिकेशन, कुछ बोरिंग काल्स को सुनते सुनते बनाये गए टेढ़े मेढे से स्केच….कुछ कागज जिनमे “राजेश” ३०-४० बार अलग अलग तरीके से लिखा है…
वो एक एक कर उनको पढता और फिर फाड़ के डस्टबिन में डालता जाता…तभी उसके हाथ वो चिट्ठी लग गयी…वो इसे अक्सर पढता था….स्वीटी नाम  की जितनी भी लडकियां उसे फेसबुक या ऑरकुट पे मिली थी सबको फ्रेंड रेकुएस्ट भेज चुका था…कुछ का जवाब भी आ गया था…कहीं वो उनमे से एक तो नहीं जिनका जवाब नहीं आया था….
उसने वो कागज अपने बैग में रख लिया….
****
“मिस्टर राजेश यू हैव बीन सेलेक्टेड बाई अवर टेक पैनल"….बाहर वेट करते हुए बैठे राजेश से एक आदमी ने बोला…
“देन व्हाट इज द नेक्स्ट प्रोसेस" राजेश ने पूंछा |
“अवर एच आर जेनेर्लिस्ट विल टॉक टू यू"….और उसने उसे दूसरी तरफ जाने का इशारा किया…
इस समय वो एक बरामदेनुमा एक कमरे में था…चारों ओर पारदर्शी कमरे थे…एक कमरे में एक लडकी बैठी हुई थी…चेहरा उसका बालों से ढका हुआ था…हलके नीले रंग की साड़ी…कुछ लिख रही थी…
“ये सारी खूबसूरत लडकियां एच आर में कहाँ से आ जाती हैं" उसने मन ही मन सोचा…
करीब १० मिनट बाद वो बाहर आयी…
“मिस्टर राजेश" कहते हुए उसने सर घुमाया…राजेश के पैर के नीचे से ज़मीन खिसक गयी…वही चेहरा…मन में आया बोल दे “स्वीटी????”
“अनु हेअर..लेट्स  हैव अवर डिस्कसन " वो हाथ मिलाते हुए बोली…वो ठिठक कर रुक गया ..उससे हाथ बड़ी मुश्किल से मिलाया गया…वो उसके पीछे पीछे चल दिया…
बातचीत कुछ आधे घंटे चली….चलते चलते आखिरी सवाल पूंछा उसने “ सो मिस्टर राजेश यू बिलोंग्स टू व्हिच सिटी?”..
“अल्मोड़ा"
“कूल…आई हैव बीन  देअर..नाईस प्लेस"…
उसका मन और पक्का हो गया .. मन किया पूंछ ही ले….पर पता नही क्यूँ वो फिर रुक गया…
“यू कैन वेट आउटसाइड…मीनव्हाइल आई विल शेयर माय फीडबैक एंड देन यू कैन गो फॉर नेक्स्ट राउंड”
उसे कुछ सुनायी नहीं दे रहा था…वो बाहर जाकर बैठ तो गया पर वो उसे ही देखता रहा…और कोई दूसरा कैंडिडेट नहीं था…वो उसे लगातार घूरे जा रहा था..थोड़ी देर बाद वो बाहर आयी|
“लगता है थोड़ा टाइम लगेगा…वान्ना हैव ए कप ऑफ कॉफी ?” उसने बोला…
“श्योर" राजेश में मुह से अचानक निकल गया…
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“अच्छी जगह है ना जहाँ तुम्हारा घर है" …अनु बोली…
“हाँ" वो उसे बस घूरे जा रहा था…
“कुछ साल पहले वहाँ गयी थी…पहाड़ियां मुझे अच्छी लगती हैं…”
“हर किसी को लगती हैं…कुछ को लाइफ दिखती है…कुछ वहाँ से मरने की कोशिश करते हैं" ये उसकी एक और कोशिश थी कुछ और पता करने की…
"हाँ यार…इन्फैक्ट मैंने मरने का प्लान बना लिया था"….वो बोली…
अब उसके दिमाग में कोई कन्फ्यूजन नहीं रहा…
“स्वीटी" उसके मुह से निकल गया…
“तुम कैसे जानते हो ये नाम?”
उसने अपना बैग खोला और वो लैटर उसके सामने रख दिया…
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मिलने की जगह एक कॉफी हॉउस तय हुई थी…दोनों लगभग एक टाइम पे ही पहुंचे थे…बातें शुरू हुईं…
“पता है मैं इतने सालों ये सोंचती रही कि शायद वो लैटर मोम डैड को मिल गया था..पर जब मै वापस आ गयी तो वो कुछ बोले नहीं"
“बस केवल ज़रा सी बात पे तुम मरना क्यूँ चाहती थी"
“पता नहीं यार..बस ऐसे ही"
“फिर इरादा क्यूँ बदल दिया?”
“मैं मरने गयी थी…एक पहाड़ी पे बैठी …वहाँ एक आदमी आया…उसे पैसों का बहुत नुक्सान हुआ था …सड़क पर आ गया था…वो भी मरने आया था…ये सब बताते ही वो वहाँ से कूद गया…पर वो एक पेड़ मे फंस गया ..वहाँ कुछ और लोग भी थे…जिनकी मदद से उसे निकाला…थोड़ी देर में उसके घर वाले वहाँ आ गए…वो रो रहे थे…मुझे अपने मोम डैड का ख्याल आ गया…मै वहाँ से भाग के होटल पहुंची…देखा तो वो लोग मेरा ही वेट कर रहे थे…मेरे से कुछ कहा नहीं गया…”
“तुम्हे क्या लगता है कि अगर उन्हें वो लैटर मिल गया होता तो वो तुम्हे ढूँढते नहीं"
“पता नहीं यार…मैंने बहुत ढूँढा पर लैटर मुझे मिला नहीं…तो मैंने भी जिक्र नहीं किया…”
“और अब बताया उन्हें??"
“हाँ कल बताया …तुम्हारे बारे में भी बताया…तुमसे मिलना चाहते हैं"
“क्यूँ"
और वो मुस्कुरा दी…
****
“टिंग टोंग"….दरवाज़े की  घंटी बजी…वो दौड़ती हुई अपने कमरे से निकली…और भाग के दरवाज़ा खोला..बाहर वो खड़ा था…
“तुम आ गए हो नूर आ गया है"…स्वागत शायराना हो गया
“चलो फिर तीनो बैठ के पिक्चर देखते हैं" …वो बोला …
“पी जे…और तुमसे कोई क्या एक्सपेक्ट कर सकता है" ..उसने चिढते हुए कहा…
“अंदर आने को नहीं बोलोगी'…
“अगर नहीं कहूँगी तों क्या नहीं आओगे"…
“शायद नहीं"
“तो फिर मत आओ"
“कौन है बेटा" अंदर से उसके पापा की आवाज़ आयी …
“कोई है जो आया तो है…पर आना नहीं चाहता"…
“अंकल नमस्ते” कहता हुआ राजेश सोफे पे बैठ गया …
“आओ बेटा" किचन से निकलती हुई स्वीटी  की माँ ने बोला…
“सुना तुमने पुलिस को भी खबर कर दी थी" बैठते हुए स्वीटी के पापा बोले…
“हाँ ..थोड़ा डर गया था…पर जब अगले १०-१५ दिन तक कोई खबर नहीं मिली ऐसी तो मेरे को लगा या तो मै वाकई इसे बचा नहीं सकता हूँ या सुईसाइड का आईडिया ड्रॉप हो गया है"
सब हँस ही रहे थे  इस बीच वो अंदर से तैयार होकर आ गयी…
“पापा हम लोग थोड़ा बाहर घूम के आयें"…उसने बताया
****
“शादी क्यूँ नहीं की"…..स्वीटी ने पूंछा…
“पता नहीं…कभी कोई मिली नहीं शायद "…राजेश ने जवाब दिया….
“और तुमने….” राजेश ने भी पूंछ दिया…
“सेम हेअर"….और वो हंस दी
“तुम कितना कम बोलते हो ना?” अगला सवाल…
“सुना है जिनके होठों के पास तिल होता  है वो कुछ ज्यादा ही बोलते हैं…” उसने घूम के उसकी तरफ देखा…
“बोलते हैं…बहुत बोलते हैं…पर दिल में कुछ नहीं रखते"….और वो दूसरी तरफ देखने लगी…
कुछ देर का सन्नाटा हुआ….जैसे दोनों अलग अलग दुनिया में हों….
“विल यू मैरी मी" राजेश ने पता नहीं क्यूँ पूंछ लिया और आँखें बंद कर ली….
“आई थिंक पहले आई लव यू बोला जा सकता था” स्वीटी का जवाब आया और दोनों काफी देर तक हँसते रहे….
राजेश कि जिंदगी और नोटिस पीरिअड दोनों रंगीन हो गए….और स्वीटी ने भी रिलीज़ डेट मांगने से मना कर दिया…..
--देवांशु

सोमवार, 18 जुलाई 2011

मेरी रूह भी रहेगी तेरे साथ सदा…

ये एक कोशिश भर है एक अंग्रेजी की कविता को अपने शब्दों में लिखने की, जो कभी मेरे एक दोस्त ने मुझे एस एम् एस के ज़रिये भेजी थी…तब वो पूरी नहीं मिली थी…आज न जाने कहाँ से उसको ढूँढता मैं एक पन्ने पे पहुंचा, जहाँ ये पूरी मिली |
ये कविता सबसे पहले १९३२ में एक कागज के थैले पे लिखी गयी…और लेखिका के कुछ परिचित लोग ही इसे जानते थे…पर धीरे धीरे ये लोगो में फैलती गयी ..पर लेखिका का नाम कहीं गुम हो गया..
करीबन ७० साल तक लोग इसे पढते रहे..१९९५ में बीबीसी के एक सर्वेक्षण में ये ब्रिटेन की सबसे पसंदीदा कविता भी चुनी गयी…उसके कुछ दिनों बाद इसकी लेखिका की जानकारी एक पत्रकार ने दुनिया को मुहैया कराई….

पहले कविता अंग्रेजी में…

DO NOT STAND AT MY
GRAVE AND WEEP
Do not stand at my grave and weep,
I am not there, I do not sleep.
 
I am a thousand winds that blow.
I am the diamond glint on snow.
I am the sunlight on ripened grain.
I am the gentle autumn rain.
 
When you wake in the morning hush,
I am the swift, uplifting rush
Of quiet birds in circling flight.
I am the soft starlight at night.
 
Do not stand at my grave and weep.
I am not there,  I do not sleep.
Do not stand at my grave and cry.
I am not there,  I did not die!
 
Do not stand at my grave and weep.
I am not there,  I do not sleep.
 
I am the song that will never end.
I am the love of family and friend.
I am the child who has come to rest
In the arms of the Father
who knows him best.
 
When you see the sunset fair,
I am the scented evening air.
I am the joy of a task well done.
I am the glow of the setting sun.
 
Do not stand at my grave and weep.
I am not there, I do not sleep.
Do not stand at my grave and cry.
I am not there, I did not die!
          --- Mary Elizabeth Frye
merirooh

कुछ ऐसा शामिल हूँ मै तुझमे,
मेरी रूह  भी रहेगी तेरे साथ सदा|

वो हवा बन आऊंगा जो तेरे करीब से गुजरेगी,
बन जाऊंगा वो  चमक जो तेरी नजर में निखरेगी,
जब दिखे रंगत पीली सरसों की तो मुझे देखना,
मिलूँगा उस बारिश की बूंद में जो तुम पे ठहरेगी |

अल-सुबह जब तुम अपनी उनींदी आंखे खोलोगे,
एक खूबसूरत समां बन तुझको जगाऊंगा,
कभी उड़ती चिड़ियों के झुण्ड बन गुजरूँगा तेरे करीब से,
अँधेरी रात में जुगनू बन तुझको रिझाऊंगा…

मौत तो सिर्फ जिस्म गुमा सकती है,
तुझको मुझसे न कर सकती जुदा,
कुछ ऐसा शामिल हूँ मै तुझमे,
मेरी रूह भी रहेगी तेरे साथ सदा|

एक साज़ हूँ, जो सुन सकते हो तुम,
एक शख्स हूँ, जिसके बन सकते हो तुम,
एक पेड़ हूँ दूर तक फैला सा,
आँख मूँद दो घड़ी, सो सकते हो तुम!!!

किसी शोहरत को पाकर जब तुम,
बैठ देखोगे ढलते सूरज को,
एक मीठी महक बन आऊंगा,
दिन की आखिरी किरन में घुल जाऊंगा…

गैर हाज़िर हूँ खुद की कब्र से मै,
रहा बाकी  बहुत जो करना है  अदा,
कुछ ऐसा शामिल हूँ मै तुझमे,
मेरी रूह भी रहेगी तेरे साथ सदा|
                                                  -देवांशु 


“शब्दों का अनुवाद हो सकता है भावनाओं का नहीं और न ही उसकी कोशिश है”

कविता के बारे में जानकारी विकिपीडिया से

विशेष धन्यवाद शुशांत और पंकज का


रविवार, 17 जुलाई 2011

कभी कभी ऐसा भी...होता है जिंदगी में…

ऑफिस के पीछे का ये एरिया मुझे ऑफिस से भी अच्छा लगता है…कच्ची ज़मीन…थोड़ी-थोड़ी जगह घेर के बनाई गयी कुछ कच्ची पक्की दुकाने…चाय, मैगी, पकोड़े,पराठे,इडली, डोसा और न जाने क्या क्या…सब मिलाता है यहाँ पे…कुछ ऑटो भी आके खड़े हो जाते हैं…उनपे चलते हुए उदित नारायण की आवाज़ के गाने…ऐसा लगता है की यू पी के किसी रेलवे स्टेशन पर पहुँच गए हैं…ऑफिस घर से ज्यादा दूर नहीं है तो अक्सर रात में मैं भी यहाँ आ जाता हूँ… पूरी रात खुली रहती है ये जगह…
बरसात की सूखी रात…पानी बरसने को था पर बरसा नहीं था…शाम फ्राईडे की थी…तो मौसम खुद ही अलग हो गया था…मैं अपने एक दोस्त के साथ एग-रोल खाने वहाँ आ गया …एक और खास बात है इस जगह की…ये अपने आप में एक छोटा भारत है…हर मजहब के , अमीर गरीब, छोटे बड़े सब मिलते हैं यहाँ….थोडा टाइम लग रहा था…तो वहीँ पास पड़ी एक कुर्सी पे हम दोनों बैठ गए…
JanakiChatti03_Oilpainting_3कुर्सियां एक होटल वाले ने बिछा रखी थी…वो हर चीज़ जो एक आम इंसान खा सकता है वहाँ मिलती थी…दाल, रोटी, चिकन,  चावल सब कुछ….लोग आ रहे थे, खा रहे थे और जा रहे थे…हमारे सामने भी कुछ और लोग आ के बैठ गए…
२ दोस्त..फिल्मों से काफी प्रभावित..”देल्ही बेल्ली ने तो बवाल कर दिया यार, मज़ा आ गया…कल देखते हैं जिंदगी न मिलेगी दोबारा"…१ थोडा सा अधेड उम्र का इंसान…कुछ ज़माने से भडका हुआ….और १ गार्ड जो अभी शायद अपनी ड्यूटी खतम करके आया था…
एक दाल मखानी और ६ रोटी …दोनों दोस्तों की डिमांड आयी…एक शाही पनीर और बटर रोटी…ज़माने से परेशां शख्श ने बोला….और गार्ड मेनू देख रहा था.. डिसाइड करने के लिए….
***
दोनों ने कॉलेज साथ में किया था…ऑफिस भी पास ही था…एक ज़माने के रूम मेट आज वीकेंड फ्रेंड बन गए थे….एक अलग सुकून था मिलता दोनों को साथ में…ऑफिस के अपने मैनेजर को गलियां देना हो, किसी नयी टेक्नोलोजी के बारे में बात करना हो या किसी फिल्म की बात करनी हो…दोनों कभी बोर नहीं होते थे…एक और चीज़ थी जो दोनों को जोड़ती थी…”बीयर"..दोनों को बहुत पसंद थी…
शाम से लग रहा था की बारिश होगी…पर हुई नहीं थी…फ्राइडे ऑफिस से निकलते ही दोनों जगह डिसाइड करते थे…आज भी वही किया…जम के बीयर पी…११ बजे जब घर जाने की बात हुई तो एक बोला
“ यार आज कुछ सिम्पल खाना खाते हैं…”
“सेक्टर ४५ चलें वहाँ कुछ देखते हैं" दूसरे का समर्थन आया…
“चल"
और दोनों चल दिए…रस्ते में बातें बदस्तूर जारी थी….टोपिक बदल रहे थे….इंटेंसिटी बरकरार थी….दोनों पहुंचे…होटल पर …
“क्या खायेगा" पहल हुई
“दाल रोटी खाते हैं" दूसरा बोला
“चल ठीक है….साले अपना टमी देख देल्ही बेल्ली का मोटा लग रहा है….ऑरेंज जूस पीता है की नहीं???” पहले का जवाब और कमेन्ट आया…
“देल्ही बेल्ली ने तो बवाल कर दिया यार, मज़ा आ गया…कल देखते हैं जिंदगी न मिलेगी दोबारा” दूसरा एक बार फिर बोला…
“हाँ यार…भईया एक दाल मखानी और ६ रोटियां देना"
और वो दोनों वहीँ बैठ गए जैसे और कोई वहाँ बैठा ही न हो….और बातें एक बार फिर शुरू….
सामने वाले साहब ने भी शाही पनीर और बटर रोटी मंगा ली थी…हाथ धोने का पानी ढूंढ रहे थे सब…तभी वहाँ एक गार्ड आया….उसने मेनू मांगा और उसे देखने लगा…..
***
घनश्याम सिंह शहर के एक बड़े प्रोपर्टी डीलर के यहाँ काम करते हैं…भरा पूरा परिवार है…गर्मियों की छुटियाँ खतम ही होने वाली हैं…गाँव से बराबर फोन आ रहा है बीवी का की आकार ले जाओ…कल वो भी जा रहे हैं…
सोचा फ्राइडे शाम थोड़ी और अकेले एन्जॉय कर ली जाये…थोडा देर से निकले आज..आ गए वो भी होटल पे…रस्ते में थोड़ी चढा भी ली…आज बजट थोडा ज्यादा था…अंग्रेजी पी…
होटल पहुँच के तुरन्त आर्डर दिया “ एक शाही पनीर और बटर रोटी..मक्खन डाल के”
सामने खड़े लड़खड़ाते दो बन्दों से पूंछा “ हाँथ धोने का पानी कहाँ मिलेगा"
एक बोला “ हम भी वही ढूंढ रहे”
तभी वहाँ एक गार्ड आया ..उसके हाथ में पानी का मग था…सबने हाथ धोए…गार्ड ने मेनू कार्ड मांग लिया….बाकी किसी को उसकी ज़रूरत नहीं थी शायद…
***
पिछली बारिश में पानी कुछ ज्यादा ही बरसा था…गाँव के गाँव उजड़ गए थे …राजू का गाँव उजड़ा तो नहीं था..पर वहाँ बचा भी कुछ नहीं था…उसकी शादी होने वाली थी…लडकी के घर वालों ने सब बेच के शादी टाइम पे करने को बोला तो राजू ने मना कर दिया और बोला जब पूरा गांव रो रहा है तो हम खुश कैसे हो सकते हैं….शादी बाद में होगी…
शहर आ गया काफी दिनों तक कुछ करने को न मिला..गाँव से लाए पैसे भी खतम होने पे आये तो एक चाय की दुकान में काम कर लिया…वहीँ पे किसी से जान पहचान हुई तो उसे एक जगह गार्ड की नौकरी मिल गयी ….पूरे २५०० रुपये महीने की तनखाह …अभी १४-१५ दिन हुए हैं उसको नयी नौकरी करते हुए…चाय की दुकान पे काम करते कुछ पैसे बचा लिए थे…उन्हें गिना तो कुल २५० रुपये निकले… ८० रुपये गाँव तक का किराया ..आने जाने का १६० और अगर ३०-४० रुपये घर पे खर्च कर दिए तो कुल २०० ..लौट के आते ही २० दिन के पैसे तो मिल जायेंगे…उसके पास आज ५० रुपये हैं ..खर्च करने के लिए…आज वो खाना नहीं बनाएगा…बाहर ही खायेगा….
वो भी पहुँच गया उसी होटल…पानी का मग लेकर हाथ धोए….लौटा तो ३-४ और लोग पानी का मग ढूंढ रहे थे…वापस आकर उसने मेनू कार्ड माँगा….उसकी जेब के हिसाब से तो केवल वो सादी दाल और ३ रोटियां खा सकता है…. उसने वही मांग लिया…
सामने वाले साहब ने शाही पनीर मंगाया है … राजू को भी वो बहुत पसंद है…अचानक से सामने वाला बन्दा पानी मांगता है और न मिलाने पर खरीदने चला जाता है…तभी सबके आर्डर डेलिवर कर दिए जाते है….पड़ोस में बैठे दो बंदे “शीला की जवानी” गाते हुए रोटी खाने लगते हैं …पर उसका मन तो शाही पनीर में लगा हुआ है…सोंचता है अँधेरा है एक चम्मच निकाल लूं तो कोई क्या जान पायेगा….वो चम्मच उठाता है…पर रुक जाता है….ऐसा लगता है किसी ने उसके हाथ बाँध दिए हों….”शीला की जवानी” थोडा और लाउड हो गया है…तभी सामने वाला बंदा भी  आकर बैठ जाता है|
***
हमारे एग-रोल और चाय भी आ गए  थे, हम दोनों भी बाकी ४ लोगो के साथ टेबल पे बैठ के खाने लगे….ऐसी जगहों पर अक्सर गली के कुत्ते भी आकर बैठ जाते हैं…कुछ बचा-खुचा खाने को मिल जाता है उन्हें..बाकी न उन्हें आने वाले कुछ देते हैं न होटल वाले….
एक ऐसा ही कुत्ता मेरे सामने भी आकार बैठ गया…मैंने दुत्कार दिया…मेरे दोस्त ने भी वही किया….वो बाकी दो लड़कों की तरफ बढ़ा…उन्होंने उसे देखा भी नहीं….तीसरे इंसान के पास गया …उनका फोन बज गया था..वो बात कर रहे थे, फुर्सत नहीं थी उनके पास….अंत में वो उस गार्ड के पास चला गया….गाँव में उसके घर से कभी कोई भूका नहीं गया था…पर आज तो उसके खुद के पास ही पूरा नहीं है खाने को….दिल तो उसका किया की एक रोटी दे दे ..पर दे नहीं पाया…मन ने मना कर दिया….उसने अपनी दो रोटियां ज़ल्दी ज़ल्दी खतम की…
तीसरी रोटी का पहला निवाला तोडने ही वाला था की उसके हाथ रुक गए…मन ने उसे खा जाने को बोला पर दिल जीत गया इस बार…उसके हाथ खुल गए ..उसने रोटी कुत्ते को दे दी …वो बोला “किस्मत अपनी अपनी है दोस्त.. अपन पेट फिर कभी भर लेंगे..आज सोने भर को इतना काफी है….”
उठा ..हाथ धोए और पैसे देकर वो वहाँ से चला गया…..घर जाने की खुशी दोहरी हो गयी थी उसकी…
हम सब उसे देखकर चौंके और फिर देखते रह गए…..सूखी रात में भी हम सबके दिल पसीज चुके थे…..

शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

जिंदगी रिज़्यूम्ड…

मुंबई बम धमाकों के बाद एक बार फिर से कवायद शुरू हो गयी है ये प्रूफ करने की कि मुंबई कभी थमती नहीं ..मुंबई कभी रुकती नहीं..Local-Trains-925006607-7339245-1_Pointillism_2सभी समाचार चैनलों पर लगातार यही बात…कोई बता रहा है कि कैसे लोकल में भीड़ वैसी है तो कोई बम धमाकों की जगह  के पास बने स्कूल में जाके बच्चों की उपस्थिति की जानकारी दे रहा है…
कुछ ने तो हद्द ही पार कर दी है…लोगो के घरों में घुस गए हैं…”इस दर्द का अंत नहीं" के शीर्षक से भी समाचार हैं…बीच में कुछ व्यापारिक बाध्यताओ के चलते ..कोमर्सिअल ब्रेक …हो रहा भारत निर्माण का नारा भी आ जाता है (यकीनन) …कभी हेल्थ इंश्योरेंश लेने कि बात होती है ( जिंदगी का भरोसा नहीं है)…और कुछ कह रहे हैं कि कूड़े कचरे, पैंट इत्यादि से बचने के लिए अपना लक पहन के चलो....(बम से भी बचायेगी क्या ??? )
कुछ नेता भी गए हैं मौका-ए-वारदात पर , अपने (घड़ियाली) आंसूं बहा के आये हैं…किसी ने बोला है सरकार कि गलती है…कोई कह रहा है कि ९९% तो बचा ले गए …एक हो गया…(९९ का ब्यौरा??? )
प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि अमन और शांति कि ऐसी मिसाल कायम करें मुम्बईवासी कि जिसे दुनिया माने (बदहज़मी तक ??)…किसी ने सही कहा था वाकई में इस देश कि आज़ादी भीगती (अगस्त) और गणतंत्र ठिठुरता (जनवरी) है…
अब जो होना है वो तो हो चुका..लेट्स रेज्यूम द “जिंदगी"…आखिर जिंदगी न मिलेगी दुबारा…बड़े जोशीले लगते थे ये शब्द कभी…पर आज लगता है कि कोई जूते मार के भूलने को कह रहा है…पर पंचशील को बनाने वाला और क्या कहेगा…

“हलके हो ३१ महीने बाद जो आये हो,

ज़रा जल्दी आया करो,

देर अच्छी नहीं लगती हमें… "

मैं कभी मुंबई नहीं गया…पर कई को जानता हूँ जो वहाँ रहे हैं ..उनके दिल में बसता है ये शहर…नहीं मालूम इसपे बार बार हमला क्यूँ होता है…मजबूरी को हौसले का नाम देने वालों को अब तो सोचना होगा कि

“क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो “

अगर मुंबई क्षमा कर रही है तो कहीं कोई गरल दब तो नहीं रहा…और कौन जाने उसका क्या परिणाम होगा…
मकसद कुछ भी हो इन हरकतों का …हासिल कुछ भी नहीं होगा…दुनिया को तो उसने ही रंग बिरंगी बनाई है..इसके रंगों को खतम करना भी तो उसी की तौहीन है…
जिंदगी थोड़ी रिज़्यूम अपनी भी हुई है, हफ्ते भर बाद एक बार फिर वही ढर्रे पर चल पड़ी है…
आज बस ऐसे ही लिखने का मन बन गया था..जो भी आया मन में लिख दिया…किसी का मन दुखाने का कोई इरादा नहीं है…
जाते जाते देल्ही-६ से अमिताभ जी की आवाज़ में कुछ शब्द..
 

भगवान सभी मरने वालों कि आत्मा को शांति दे…हिम्मत दे घायलों को जो जूझ रहे हैं अपनी चोटों से … सभी के घरवालों को इससे लडने कि क्षमता …और सद्बुद्धि दे इन नेताओं को कि अब तो ये कुछ करें (आपस में लडने के अलावा)….

मंगलवार, 5 जुलाई 2011

भीगी तन्हाई…


         ड्राइंग रूम में पड़ी कुर्सी को बालकनी तक वो  खींच के ले आया, हलकी - हलकी बारिश शुरू हो गयी थी..पहाड़ों पे अक्सर शाम को ऐसे ही बारिश होने लगती है…बालकनी की रेलिंग काफी ऊंची नहीं थी..उसके हाथ उस पर आसानी से टिक गए..
         बालकनी से दूर पहाड़ियां दिखती है…दिन में तो लगता है की क्या कोई वहाँ पहुँच भी सकता है? पर रात में जब कोई दूर से  गाड़ी निकलती है तो उसकी रोशनी को देखते ही पता चलता है की इन्सान न जाने कहाँ कहाँ पहुंच गया है…
         एक बहुत बड़ा कैनवास सा  है पहाड़ों का…और उसपे पूनम का चाँद ,जो अभी कुछ दिनों पहले ही बीता है, बीचो बीच में लटका हुआ ऐसा दिखता है मानो किसी चित्रकार ने बड़ी मेहनत से कोई पेंटिंग बनाई है…
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          वो अक्सर गर्मियों में यहाँ आ जाया करता है…शहर से दूर …इस बार थोड़े लंबे ब्रेक पे आया था..किसी से उसे दूर भागना था…साथ में था तो सिर्फ उसका फोन और लैपटॉप, जिससे वो किसी किसी ईमेल का जवाब देता था, कभी फेसबुक भी चेक कर लेता…पर गुमशुदगी में..
          अब उसने पैर रेलिंग पर टिका लिए थे …चाँद अधूरा सा था…बारिश का पानी पैरों पे गिरने लगा था…

“बादलों पे लटके हुए अधूरे चाँद को देखा,

तुम्हारा चेहरा कुछ धुंधला सा है,

एक ज़माना जो गुज़रा अब तुमको देखे हुए…”

        वो वहाँ से उठा, किचन में जाकर एक कप चाय बनाई…लौटते वक्त एक डायरी अपने हाथ में लेकर आ गया…चाय के घूंटों के साथ पन्ने पलटने शुरू किये…नज़र रुकी तो एक फोटो पे ..एक मुस्कुराता हुआ सा चेहरा था उसमे, हाथ को किसी पेड़ की टहनी से लपेट रखा था…आसमानी रंग के कपड़ों में तस्वीर ठीक वैसी ही थी जैसी इस समय पहाड़ियों के बीच हो रही थी…आसमानी बादलों के बीच चमकता चाँद…
       उसने रेलिंग पे पैर रख खुद को एक धीमा सा धक्का दिया…और कुर्सी के साथ खुद भी हलके हलके झूलने लगा…फोटो डायरी के साथ उसके ठीक दिल पे आके ठहरी..उसकी आँखें बंद थीं..होठों पे शायद मुस्कान ही थी…

“दोनों ही लाजवाब हैं, तुम्हारी तस्वीर और मेरा दिल,

एक में तुम हो,पेड़ हैं, मौसम है,

और एक में…बस सिर्फ तुम…”

       कुछ देर पहले एक स्टेटस अपडेट आया था “एन्जोयिंग मैरीड लाइफ..पिक्स विल बी अपलोडेड सून"…तब से उसका दिल टूट सा रहा था…उसे सब पता था पर किसी को भी नहीं बताया था इस बारे में ..बस चला आया था यहाँ…
        कब? कैसे ? किसलिए? सवाल कई थे..जवाब वो जनता था…पर जानना नहीं चाहता था..किसी को बताता भी तो क्या बताता…तभी फोन के घंटी बजी…उसने फोन उठाया..
“हेलो"…
“हाँ यार ठीक हूँ..”….
“हाँ पता है…”
“क्या बताता यार…”
“कल सुबह निकल रहा हूँ…मिलते हैं…”
“नहीं यार..डोंट वरी..आई एम्..फाइन"
“चल ठीक है…थैंक्स फॉर कॉल यार"…
           फोन रख दिया…डायरी और फोटो को संभालते हुए वो उठा…इन्टरनेट कनेक्ट किया.. फेसबुक …उसने अलग अलग पिक्स डाले हुए थे…३-४ दोस्तों ने उसे पहले ही ऑफ लाइन पिंग कर दिया था ...सवाल घूम फिर के एक ही था सबका…
         एक एक करके वो पिक्स देखता गया…एक फोटो पे आके वो रुक गया…कुछ घूरने सा लगा…आंसूं शायद पहली बार ही निकले थे…

कुछ तस्वीरों में सौ आंसूं छुपे हैं,

आज कौन समझेगा इनको,

काश खुद को होता हक तुम्हे भूल जाने का…

       उसने लैपटॉप बंद किया और सोने चला गया…कल फिर उसे कहीं के लिए निकलना था….

-- देवांशु

शनिवार, 2 जुलाई 2011

काश जिंदगी लैपटॉप होती…

                  बड़े दिनों से मेरा लैपटॉप काफी परेशां सा था, न ज़ल्दी स्टार्ट हो पा रहा था, शट डाउन होने में तों सदियाँ लग रही थी | किसी एप्लीकेशन को चलाना तो पूँछिये ही मत…संगीत भी खत्म था (गाने भी नहीं चलते थे)…

                  लक्षण तो बीमारी के थे | जाने माने डॉक्टर को दिखाया गया | कुछ इम्पोर्टेंट डाटा का बैकअप लिया उन्होंने | पूरा सिस्टम फॉर्मेट कर दिया | नया ओपरेटिंग सिस्टम डाला | कुल दो ड्राइव बनाई | सब कुछ बड़े करीने से सजाया | समय लगा कुल २-३ घंटे का | लेकिन अब लैपटॉप एक दम चकाचक चलने लग पड़ा है |

                  कभी - कभी बिस्तर पर लेटने और सोने के बीच में थोडा समय लगता है | उसी बीच कुछ ख्याल आ जाते है | कुछ तो ऐसे ऐसे की पूँछिये ही मत | एक ऐसा ही ख्याल ये आया की गर जिंदगी भी लैपटॉप होती तो?

                 फ़र्ज़ करो … आप जिंदगी से उकता गए हो ..न सोने की इच्छा करती है न जागने की…मन न कुछ खाने का होता है न कुछ सीखने का |

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                 तब कोई ऐसा ही आये और आपकी जिंदगी को फॉर्मेट कर दे | कुछ इम्पोर्टेंट डाटा का ही बैकअप लिया जाये | नया ओपरेटिंग सिस्टम  डाल दे | दिल के दो हिस्से कर दे | एक तन चलाने के लिए और एक जिंदगी…बाकी कुछ भी न रहे वहाँ | कर दे दिमाग के तीन हिस्से | दो दिल जैसे , एक सोंचने के लिए अलग…दिल को सोंचने की क्या ज़रूरत है?

                बाकी सब पुराना “गार्बेज" डाटा मिट जाये ..जैसे की कोई तकरार, अधूरा प्यार या टूटी दोस्ती..|  फिर से मिले तो केवल वही एप्लीकेशन जिससे जिंदगी चलती है…

                सोंचो इसके बाद अगर आप सोकर उठो..तो आप में सारी कमियां खत्म…आप पूरी तरह से नायाब बन चुके हो..जो कुछ अच्छा था वो आपमे वापस…सब कुछ कितना बढ़िया हो जायेगा न???

               पर जिंदगी कोई लैपटॉप तो नहीं…कोई कहीं से नहीं आता…इसे खुद ही फॉर्मेट करना होता है… और वो भी पूरा नहीं होता…कुछ न कुछ छूट ज़रूर जाता है…

                शायद कुछ नया सीखते रहना ही “बेटर आप्शन" है…पुराने पे ध्यान न देना ही उसको भूलना है ….

                अब तक ये सबसे सुनता था…अब कर के देख रहा हूँ…आराम मिल रहा है…कुछ-कुछ नया सीखने की कोशिश जारी है…पर कभी कभी फिर भी ये मन यही कहता है...की काश ये जिंदगी लैपटॉप होती…

 

कोई छेड़ देता जो तार,   सरगम निखर जाती,

देता उड़ा चांदनी का दामन जो , शबनम बिखर जाती|

जिंदगी कुछ इस तरह बोझल है ए बुतनशीं,

तू फिर जिला देता, तो दुनिया संवर जाती||

 

--देवांशु

(फोटो मानस के फेसबुक एल्बम से )