शनिवार, 17 दिसंबर 2011

आप आ रहे हो ना?

ज़माना जो है वो है फोन टैपिंग का…आजकल बाहर सारे नेताओं-अभिनेत्रियों के फोन जो हैं, टैप हो रहे हैं|  इसी माहौल को देखते हुए एक और टैपिंग हुई,  ये बतकही हुई महेशवा की लडकी रूपा और गाँव के “सो काल्ड उजड्ड" बिरेंदर के बीच, वो भी एस एम् एस पर  |  अरे वही जिनके बारे में पिछली बार बताये रहे हम..

तो हुआ यूं कि बिरेंदर जो है वो गिल्ली डंडा का मैच जिताए दिया  गाँव को,  सारे बाल-गोपाल अपने कंधे पे बैठाय के जुलुस निकाल दिए,  पूरे गाँव में | जुलुस जो है वो खतम हुआ कल्लू के हाते में, मुखिया जी खुद आये बिरेंदर को ५१ रुपये का इनाम देने और साथ में रोज ताजा दूध पहुँचवाने का वादा भी किये|

सारा वाकया, जो कल्लू के हाते में हुआ, महेशवा के घर से दिख रहा था, महेशवा की “दुक्लौती" पर छोटी लड़की, रूपा, फ़िदा हो गयी बिरेंदर पे| बिरेंदर भी “ज़माने" से फ़िदा रहे रूपा पे|

पिछले प्रधानी के चुनाव में महेश , करेंट प्रधान जी के  “स्टार"  प्रचारक रहे |  धाक जमाने के लिए अपना “मोबाइल" नंबर भी बता दिए सबको|  जबसे प्रधान जी चुनाव जीते, महेश लग लिए प्रधान जी की जी-हजूरी में, और फोन आ धमका रूपा के हत्थे…

फिर एक दिन जब सुत्तन की शादी के महिला संगीत में महेश का फोन, रूपा के हाथ में देखा तो बिरेंदर “सन्देश"  भेज दिए… “कैसी हो रूपा…बिरेंदर"

जवाब भी आ गया “हम ठीक हैं, तुम अपनी कहो"

बिरेंदर को तुरंत “बैलेंस" का खयाल आ गया “अरे तुम्हरे फोन में करेंसी तो है?”
 (भाई लोगो आजकल  करेंसी का मतलब मोबाईल का बैलेंस होता है)

इसका भी जवाब “निशा खातिर रहो, ३० रुपये का टाप-अप डलवाए हैं..१५०० एसमेस फ्री हैं"

इसके बाद तो बिरेंदर के पर लग गए..रोज रात एस एम् एस करने लगा…

अब बात उस दिन की जिस दिन टैपिंग हुई…. (इसके बाद जहाँ नाम दिखे समझो वो एस एम् एस कर रहा है)

बिरेंदर :  “कल सनीमा चलोगी???”

रूपा : “कौन सा?”

बिरेंदर : “गजनी”

रूपा : “धत्त, चंडाल लग रहा है अमिरवा, कोई रोमांटिक दिखाओ”

बिरेंदर : “रोमांटिक ही मानो, हम तुमको प्यार से “कल्पना" ही बुलाते हैं”

रूपा : “धत्त, रूपा अच्छा है”

बिरेंदर : अच्छा सुनो , अगर सनीमा नही जा सकती तो कल गेंदामल की दुकान पे मिलो| जलेबी खाओगी?

रूपा : “चुप करो, गेंदा चाचा रोज घर आते जाते रहते हैं”

बिरेंदर: “हम सब इन्तेजाम कर लेंगे, तुम आ जाना….कुछ बात करनी है तुमसे"

(इसके आगे कि कहानी आमने सामने की है,  “नो एस एम् एस” )

बिरेंदर सब सेट कर लिए, गेंदामल की दुकान पे पप्पू काम करता है, बिरेंदर का जिगरी दोस्त, उसको खोपचे में लिया गया…“सुनो पप्पू, कल दुई ठो मेज़ खाली रखना ३ से ४ के पास-पास"

पप्पू : “दो काहे?”

बिरेंदर : “अबे तोहार भाभी आ रही है, अब आमने सामने नहिए ना बैठ सकते हैं"

पप्पू : “ठीक है पर कमीशन लगेगा…पूरे ५ रूपये”

बिरेंदर : “ले लेना साले…एक बार बस मिलने का जुगाड़ कराओ”

अगले दिन ठीक ३ बजे रूपा अपनी तीन सहेलियों निम्मो, सीमा और सुधा के साथ गेंदामल के यहाँ पहुँच गयी| थोड़ी देर में बिरेंदर भी पहुंचा, साइकल की घंटी टनटनाते | और जा के बैठ गया ठीक रूपा के पीछे वाली मेज़ पे| दोनों की पीठ एक दूसरे की ओर थी…खुसफुसा के ही बातें हो रही थीं…

बिरेंदर :  “करीना लग रही हो एक दम!!!”

रूपा :  “तुम भी एक दम शाहरुख!!!!”

फिर दोनों हंस दिए| बिरेंदर ने चिल्ला के कहा “पप्पू , एक पलेट जलेबी लाओ"

पप्पू को कमीशन पहुँच चुका था, प्लेट सीधे रूपा की मेज में पहुँची…

बिरेंदर : “लो जलेबी खाओ”

रूपा ने एक जलेबी खाई, मिठास उसकी आवाज़ में उतर गयी “एक दम ताजी हैं"

बिरेंदर : “एक दम, पप्पू अपना आदमी है, बासी थोड़े देगा….समोसे खाओगी….बहुत नाम है यहाँ के  समोसों का”

रूपा :  “देखो ये बताओ बुलाए काहे हो, अम्मा से झूठ बोल के आये हैं कि सीमा के घर जा रहे हैं, जल्दी जाना होगा”

बिरेंदर : “अरे पहले खा तो लो , भूखे पेट कोई बात होती है भला”

रूपा : “सुबह से दो बारी खाना खा चुके हैं…अब काहे की भूख, जो कहना है जल्दी कहो”

बिरेंदर : “अच्छा ठीक है , अपनी सहेलियों को बोलो दूसरी तरफ देखे पहले”

रूपा : “बोलो, वो नहीं सुन रही, हम घर से मना करके लाये हैं कि केवल आँखे खुली रखना कान नहीं, अब बोलोगे कि हम जाएँ”

बिरेंदर : “अरे बिदकती काहे हो, बोलते हैं ना”

रूपा: “तो बोलो”

बिरेंदर : “अच्छा सुनो , हमें तोहरे पिताजी से बहुत डर लगता है”

रूपा : “हमको भी लगता है, ये बताने के लिए बुलाए थे ?”

बिरेंदर : “अरे नहीं, कल तुम्हारी अम्मा मिली थी सब्जी मंडी में , वो बहुत अच्छी हैं, और तुम्हारी दीदी की शादी में पानी का पंडाल हमहि देखे थे”

रूपा : “हमें पता है, तो ये बता रहे थे?”

बिरेंदर : “नहीं हम ये कह रहे हैं कि पप्पू कह रहा था कि तुम्हरी शादी के खाने और मिठाई का काम उसे मिल जाता तो ठीक रहता…”

पप्पू ने घूर के बिरेंदर कि तरफ देखा |  रेडियो कमेंट्री तो वो भी सुन रहा था|

रूपा : “काहे???”

बिरेंदर : “अब शादी हमारी होगी तो और कोई खाना कैसे बना सकता है…”

रूपा : “धत्त!!!!”

और वो उठ के वहाँ से चली गयी…
*****
आज गाँव में पंचायत बुलाई गयी है | हुआ यूँ है कि जब रूपा गेंदामल के यहाँ से उठ के गयी ठीक उसी समय पप्पू के घर से उसका आ गया बुलावा|  रूपा के शर्माने में पड़के बिरेंदर ने छंगा, जो पप्पू के साथ ही काम करता था, को समोसा-जलेबी के पैसे दे दिए और चलते बने | ये बात गेंदामल ने देख ली, बात महेशवा तक पहुंची, प्रधान जी से कह के पंचायत बुला ली उसने…

बिरेंदर पहुंचे अपने जिगरी दोस्त पप्पू और बंसी के साथ, दोनों का मोरल सपोर्ट लिए हुए| रूपा के साथ उसकी अम्मा थीं, सहेलियां पीछे भीड़ में थी, महेश एक तरफ पंचों के हुक्का-पानी का इन्तेजाम कर रहे थे..
पंचों ने सारी बात सुनी और अपना फैसला प्रधान जी को बता दिया….प्रधान जी ने बिरेंदर से कड़क के कहा…
“तुम होनहार हो बालक, पर इसका मतलब नहीं कि गाँव का माहौल बिगाड़ो”

बिरेंदर : “लड़ाई करने से माहौल बिगड़त है प्रधान जी, प्यार से नाही”

प्रधान जी : “सनीमा देख के आये हो का??”

बिरेंदर :  “नहीं, खुद से बोल रहे हैं|”

प्रधान जी : “तो रूपा से प्यार करते हो?”

बिरेंदर : “हाँ , हम मानते हैं कि हम रूपा से प्यार करते हैं|”

प्रधान जी रूपा की तरफ घूमे, लाज से वो खुद के अंदर समाई जा रही थी..प्रधान जी की आवाज़ में उतनी ही गुर्राहट थी..“तो तुम भी बिरेंदर को चाहती हो?”

रूपा कुछ नहीं बोली…प्रधान जी फिर बोले “बोलो हाँ या ना"

इस बार रूपा ने दिल कड़ा कर हामी में सर हिला दिया…अचानक से गाँव वालों में बातें शुरू हो गयी…प्रधान जी ने भी थोड़ा समय लिया, पंचों से राय सलाह की.. फिर खुद थोड़ी देर सोच के बोले …

“देखो बिरेंदर!!! काम तो तुमने वो किया है जिसको पूरा गाँव गलत माने,  पर हम जानते हैं कि तुमने जो भी किया है नेक इरादे से किया है,  जब तुम पूरे गाँव के सामने रूपा का हाथ थामने को तैयार हो और रूपा भी इसके लिए तैयार है तो हम फैसला तुम्हारे हक में देते हैं| और गाँव वालों से अपील करते हैं, कि ये हमारे गाँव की  पहली प्रेम कहानी है, सिनेमा देखने से अगर मार-पीट, लड़ाई-झगडा भी सीखे हो तो प्यार करना भी सीखो| नए जोड़े को अपना आशीर्वाद दो | पर देखो बिरेंदर, अगर कभी पता चला कि तुमने रूपा को कोई कष्ट दिया है तो सारे गाँव में मुह काला कर गधे पे बैठा के घुमाएंगे तुम्हे…अगर शरत मंजूर है तो सामने आके हाँ बोलो…

बिरेंदर ने देर ना लगाई…..

प्रधान जी फिर बोले “महेश तुम्हे कोई आपत्ति??”

महेश “माई बाप आप जो निर्णय किये हैं सही किये हैं"

प्रधान जी : “तो जाओ मंदिर से पंडित को बुलाओ आज यहीं पे शादी का महूरत भी निकलवा लेते हैं|”

पलक झपकते बिरेंदर के दोस्त पंडित जी को मंदिर से बिना चप्पल उठा लाये..पंडित जी ने बताया अगले महीने कि १२ तारीख को महूरत शुभ है| प्रधान जी ने शादी की घोषणा कर दी!!!!

पूरे गाँव को बुलाया गया है शादी में |  आपको भी आमंत्रण है | आप आ रहे हो ना ????

8 टिप्‍पणियां:

  1. ह हा हा... मज़ेदार है ये प्रेम कहानी.. aur best part h HAPIIES ENDINGS .. मई से पहले शादी फिक्स हुई गई तो हमारा आना और खाना दोनों पक्का समझो...

    वैसे बुरा हुआ बिरेंदर के साथ.. अब सवेरे से दोपहरी तक दुई टेम खाना खाने वली रूपा के मोबाईल के करेंसी की फिकर करनी पडेगी...

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  2. गज़ब गज़ब...कहानी का सुखद मोड़ देख कर अच्छा लगा...अधिकतर ऐसी कहानियां रोते धोते ही खतम होते हैं. कई में तो मार काट भी हो जाती है.
    प्यारी सी कहानी...आँखों के सामने सब कुछ घूम गया. हम तो टिकट कटा के बैठे हैं :D

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  3. ह्यूमर की फैक्ट्री से निकला एक और atom-bomb :)
    what next?

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  4. कुछ अलग सी ..पर प्रवाहमयी कहानी ...बढ़िया लगी

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  5. यह तो हैपी एंड है भैवा ...अलग से मेरे ई मेल पर निमंत्रण भिज्वावो.....
    यह यूपोरियन कब से यूटोपियन हो गया ? बिलीब नाही होता ....
    बिरेंदर और रूपा की जोड़ी मुबारक हो

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  6. वाह हैप्पी एंडिंग प्रेम कहानी ..वो भी गाँव में. और प्रधान जी ने हक में फैसला दिया..क्या बात है.
    मजा आ गया पढकर.

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  7. अबे भाग. ऐसा भी कहीं कहानी का एंड होता है. दू जूता भी नहीं खाया बिरेंदर :)

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  8. Abhishek Ojha said...
    अबे भाग. ऐसा भी कहीं कहानी का एंड होता है. दू जूता भी नहीं खाया बिरेंदर :)


    ये अनुभवजन्य कमेंट लग रहा है!

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