शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

राम भरोसे की चाय भरोसे !!!!


जबसे  जाड़ा  शुरू हुआ है, बवाल मचा हुआ है |  सही बताऊँ तो पिछले कुछ दिनों से दिल्ली में ठण्ड दिख जादा रही है, लग कम रही है |  धुंध छाई है पर ना दांत कटकट कर रहे हैं , ना खुद की सांस दिख रही है | पुरानी रस्मों के चलते गरम पानी से नहाना शुरू कर दिया है बस |
ऐसा कहा जा रहा है की पड़ोसी राज्यों में लोग पुराने पत्ते, कूड़ा-कबाड़ जला रहे हैं इस वजह से धुंध छाई हुई है | पर साथ में ये भी कहा जा रहा है की दिल्ली के वाहनों के प्रदूषण का इससे कुछ लेना देना नहीं है | काफी सटीक पता लगाया है कारणों का |
पर ठण्ड के चलते और भी चीज़ें नोट की गयी हैं | अपने यहाँ सुबह सोना कितना मुश्किल है |
कल सुबह-सुबह अर्ली मोर्निंग, ६ बजे लगा की हमारी खिड़की पर हमला हो गया | “धाड़" से कुछ लड़ा आकर | हमने कहा कल रात तक तो सीमा पर सब ठीक था , ये अचानक से दिल्ली में गोला-बारी|  पर लगा की देखना चाहिए | या तो शहीद होंगे , नहीं तो बहादुर कहलायेंगे | निद्रा-त्याग कर खिड़की खोली तो पता चला “न्यूज़ पेपर” वाला था | पहले उसने पेपर फेंका था फिर खुद आ गया था “बिल" लेकर | मतलब पहले कवर फायर किया था , फिर घुसपैठ की थी | बिल लिया और हम फिर सो गए ये कहकर कि कल ले जाना आके रुपये | अब सुबह सुबह इतने सारे कपड़ो के बीच वालेट कौन ढूंढें !!!
फिर सोये तो घन्टी बजा दी किसी ने | “केन्य केन्य” | एक तो पता नहीं ई कौन टाईप की घंटी है | फिर उठे , दरवाज़ा खोला | देखा तो कूड़े वाला था | चिल्ला के बोला “कूड़ा है” | मन किया बोल दूं “अबे मैं क्या कूड़े में रहता हूँ , रोज़ सुबह आ जाता है , कूड़ा है |” पर  मैंने कहा “नहीं है , हमारा घर साफ़ सुथरा है” | कमरे के अन्दर वापस आये तो रियलाइज़ हुआ की सुबह सुबह झूठ भी बोल दिया | :) :)
फिर सोये तो दरवाजे पर दस्तक हुई | “ख़ट-ख़ट" | फिर उठे | तो काम वाली , सफाई करने आयी थी |  बोली सफाई करनी है | फिर मन में ख़याल आया की घर मेरा है तो मैं इसके कहने पर सफाई क्यूँ कराऊँ , पर तब तक उसने दूसरा कमरा साफ़ कर दिया था | मैंने भी फटाफट लैपटॉप , टीवी सबके वायर सही किये और झाडू लगाव डाली | पोछा लगाने से मना कर दिया नहीं तो फिर वो पंखा चला के चली जाती |
इतनी बार नींद टूट गयी कि दुबारा नींद नहीं आयी |  तो समझ में आया की यहाँ तो मैंने सिस्टम उल्टा कर रखा है | सबसे पहले सफाई करवानी चाहिए , फिर कूड़े वाले को कूड़ा देना चाहिए , फिर पेपर वाले से पेपर लेकर पढ़ना चाहिए | वाकई में अपने यहाँ सारा काम उल्टा होता है |
अब नींद टूट गयी थी | अब सोचे की रेगुलर नींद तो आएगी नहीं , पॉवर नैप ले लेते हैं | लेटे तो ख्याल आया की पता किया जाये की फेसबुक पर क्या चल रहा है | और एक बार फेसबुक पर गए तो फिर कहाँ नींद | पूरे ५५ मिनट तक “अब सोते हैं” का प्लान करते रहे , फिर ध्यान आया  की प्लान तो हमने ३० मिनट ही सोने का किया था | एक दोस्त को फोन किया तो पता चला की साहब चाय पी रहे हैं , हमने कहा यार थोड़ी यहाँ दे जाओ तो जवाब आया खुद बना लो | दिव्य-ज्ञान मिल गया “बिना मरे भले स्वर्ग मिल जाए, पर सर्दी में बिना बनाये चाय नहीं मिल सकती”|image

 घड़ी देखी तो ऑफिस का टाइम हो गया था | अपनी मनोदशा फेसबुक पर डाली और तैयार होने निकल लिए | सोने का प्रोग्राम ऑफिस तक मुल्तवी कर दिया |

 ऑफिस पहुचे तो देखा भर भर के काम था | फिर लगा की सो ही लेना चाहिए था | काम में लग गये | बड़ी नींद आ रही थी इसलिए  दिन भर चाय पी पी कर काम किया  | फिर लगा की अपने यहाँ कितने सारे काम तो चाय भरोसे चलते हैं | एक चाय वाले को जनता हूँ उसका नाम है “राम भरोसे” |  मन में ख्याल आया “राम भरोसे की चाय भरोसे” ही सारा काम चल रहा है | लाइन मारू लगी | सोचे जब दबंग-२ आ सकती है तो काहे नहीं , कालजयी कविता पार्ट -२ लिखी जाए | तो बस लो झेलो ( अब आ गए हो तो पढ़ ही लो) :

 Disclaimer :  ये कविता पूर्णतया तुकबंदी का काम है और अगर इसमे किसी लाइन का कोई मतलब निकल आये तो इसे मात्र एक संयोग कहा जायेगा |
तीन रुपये की मट्ठी खाओ, पांच रुपये के समोसे,
राम भरोसे की चाय भरोसे, राम भरोसे की चाय भरोसे |

बुढिया की खटिया बाढ़ में बह गयी , बैठी बरखा को कोसे,
राम भरोसे की चाय भरोसे, राम भरोसे की चाय भरोसे |

बोया बीज पोपिंस का, चाकलेट पाओगे कैसे ?
राम भरोसे की चाय भरोसे, राम भरोसे की चाय भरोसे |

नाम रखे हैं कर्म-राज, पड़े आलसियों जैसे,
राम भरोसे की चाय भरोसे, राम भरोसे की चाय भरोसे |

घर जाने का वक़्त आ गया, रिज़र्वेशन को फिर से तरसे,
राम भरोसे की चाय भरोसे, राम भरोसे की चाय भरोसे |

तीन रुपये की मट्ठी खाओ, पांच रुपये के समोसे,
राम भरोसे की चाय भरोसे, राम भरोसे की चाय भरोसे |


अरे बस बस !!! अब गरिआओ नहीं | इतनी ही लिखी है | बाकी फिर कभी सुनायेंगे | अभी चलते हैं | कुछ काम कर लिया जाए |
तब तक मौका मिले तो आप भी “नैपियाते" रहिये | :) :) :)
नमस्ते
--देवांशु
(चित्र गूगल इमेजेस से)

13 टिप्‍पणियां:

  1. जिस दिन प्लान करते है उस दिन सुबह से घंटी ना बजे होता ही नहीं ...सुबह वाला झूठ तो हम भी अक्सर बोलते है कौन उतरे 1st फ्लोर से
    बाकि कविता तो एक दम चकाचक इस विधा को कॉपीराईट करवा लो :-)

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  2. ये जो पोस्ट तुमने लिखी है ये इंडिया में रहने वाला ही लिख सकता है :):) क्या है कि यहाँ सुबह की नींद बर्बाद करने ऐसा कोई व्यवधान नहीं आता.तो हमने तो बड़ा एन्जॉय किया तुम्हारा नींद खराब होना.
    बाकी रही कविता.तो.
    नाम में देवों का अंश, और काम करे असुरों का, (कालजयी कविता सुना कर :P)
    राम भरोसे की चाय भरोसे राम भरोसे की चाय भरोसे.
    जोड़ लेना इसे भी अपनी कालजयी कविता में :P.

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  3. ही ही ही! अकसर सुबह की हमारी नींद भी ऐसे ही खराब होती है. किसी और की भी होती है ये देखकर मज़ा आ रहा है. अभी आजे सुबह-सुबह जब चाय बनाना पड़ा था तो ठीक यही कहावत हमें भी याद आयी थी कि 'खुद के मरे बिना स्वर्ग नहीं मिलता' तुमलोग तो लड़का लोग हो. तुमसे कह सकते हैं कि शादी कर लो चाय बनाने वाली मिल जायेगी, यहाँ तो उसके बाद भी खुदी को बनानी पड़ती है :(
    वैसे कविता तुम्हारी ज़बरदस्त है. हम यही सोच रहे हैं कि अक्सर चाय वाले भैया लोग का नाम 'राम' से ही क्यों शुरू होता है. हमरे चाय वाले भैया का नाम 'रामू' है :)

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  4. हम कुछ नहीं बोलेंगे... बाकी शिखा दी के कमेन्ट में एक लाईन तुक में बना देता हूँ...
    नाम में देवों का अंश, और काम करे असुरों जैसे,
    राम भरोसे की चाय भरोसे राम भरोसे की चाय भरोसे.. :)

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  5. शुक्र करो मियाँ जहाँ हो वहां ज़िंदगी तो है :-)

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  6. Narak me jaane ki planning poori, kaam kare aise-aise...
    Ram bharose k chai bharose :P

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  7. अद्भुत रामभरोसे काव्य!
    इससे क्या यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि दुनिया का उत्कृष्ट लेखन सुबह जल्दी (मजबूरन ही सही ) उठने पर होता है। पुराने जमाने के बड़े कवि लोग सुबह जल्द ही उठते रहे हैं।

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  8. आपकी इस अद्भुत चाय कविता में वित्त भी झलकता है - ३ रूपये की मठ्ठी और ५ रूपये का समोसा, आजकल किधर मिलता है, कम से कम १५ रूपये का समोसा कचोरी हो चला है ।

    वैसे कविता लिखने का ट्राय सोने से पहले भी कीजियेगा, अनूप जी की बात से तो हम एकदम सहमत हैं।

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  9. दीपोत्सव पर्व पर हार्दिक बधाई और शुभकामनायें ....

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