सोमवार, 30 दिसंबर 2013

फितूर !!!


आज बड़े दिनों बाद कुछ लिखने बैठा हूँ | ऐसा नहीं है की लिखना कोई हमेशा की आदत रही है या हुनरमंद हूँ लिखने में | बस मन करता था तो की बोर्ड पर खिटिर पिटिर कर डालता था | मन के फितूर को लफ़्ज़ों का जामा पहना देता और खुश हो लेता की वाह भाई जी क्या लिख डाला |

और ऐसा भी नहीं की लिखने की आदत कोई नयी थी | शायद नौवीं में था जब पहली बार कुछ लिखा था अपनी डायरी में | तब से बात बे बात, खयाल उस डायरी के सुपुर्द करता गया | आज जहाँ भी जाता हूँ वो डायरी हमेशा साथ रहती है | 

जब भी उसे पढता हूँ तो पाता हूँ की तभी कुछ लिखा जब उदास हुआ | मानो डायरी न हुई मेरा पंचिंग बैग हुआ | जैसे “आज आई आई टी के प्री में एक बार फिर फेल हो गया” , “आज रिजल्ट आया एक नंबर से सेकंड आ गया” या “पेपर में बैक आ गयी , कॉलेज में टॉपर हूँ फिर भी , अब ओनर्स नहीं मिलेगी" | ऐसा ही हमेशा कुछ | कुछ कतरे इश्क के भी हैं, पर खासे पर्सनल तो यहाँ लिखे नहीं जा सकते, पर हैं उदासी के ही | एक भी ख़ुशी के लम्हे को वहां से निकालना मुश्किल है | मानों ज़िन्दगी में ख़ुशी देखी ही ना हो | पर ऐसा है तो नहीं |

फिर इस ब्लॉग पर खुद के लिखे को पढ़ता हूँ, ये पिछले कई दिनों से कर रहा हूँ जो की एक कवायद है खुद को वापस पाने की | तो पाता हूँ की सिवाय खुराफात और ज़हर के शायद ही कुछ लिखा है | तो क्या ये एक मुखौटा भर है मेरा या एक चादर जो खुद को उढ़ा दी है | दुनिया को दिखाने के लिए | क्यूंकि आदत तो हमेशा दुःख देखने की है , ख़ुशी की बात अपने मुंह से अच्छी नहीं लगती खुद को ही |

मुझे लगता है जिन्दगी के कई हिस्से होते हैं , और उनमे से कई एक ही वक़्त पर पैरेलल चल रहे होते हैं | ये आप पर है किसे आप ऊपर रखते हैं | हम सब की जिंदगी इन हिस्सों के पाटों के बीच कहीं फंसी होती है | अगर हम इनके साथ घुमते हैं , जिन्हें कभी कभी समझौता भी कहते हैं , तो अपनी जिंदगी को चलता हुआ पाते हैं , और जो रुक के खड़े होते हैं तो इन पाटों के ही बीच फंस जाते हैं , पिस जाते हैं | अक्सर हम इसका दोष दूसरों पर मढ़ देते हैं और संतोष कर लेते हैं | पर ये सच्चाई नहीं | ये हमारी खुद की ज़िंदगी होती है जो वक़्त के साथ, हमें लाही के दानों की तरह पीसती रहती है | पर अपने को दोष कौन दे ?

पिछले कुछ वक़्त में ऐसा ही कुछ बीतता रहा ज़िंदगी में , ये शायद जिद थी मेरी या मेरा अहंकार की मैं झुकने को तैयार नहीं था | हिस्सों की अपनी रफ़्तार थी | जिन्दगी पिसती गयी | पर खुद को खुद पर भी दया नहीं आयी | जहाँ था वहां अड़ के खड़ा हो गया | भूल गया की “झुकते वो हैं जिनमे जान होती है अकड़पन  तो सिर्फ मुर्दे की पहचान होती है” | खुद को एक ज़िंदा लाश की तरह पाने लगा  इसीलिए |  

फिर अमेरिका आने की सोची , शायद ये एक समझौता ही था | खुद की आँखें बंद करके खुद को छुपा हुआ समझने की कोशिश | पर इसमे भी नाकाम रहा | खुद को एक कमरे में बंद कर लिया है बस | यहाँ मैं हूँ | मेरी तन्हाई को बांटने के लिए दो लैपटॉप जिनमे से एक मेरे ऑफिस का जो २४ घंटे चलता है | एक गिटार है जिससे कोई धुन अब नहीं निकलती | एक कॉफ़ी मग है और कुछ पुरानी यादों के धुंए का साथ  |  एक फोन है जो कभी कभी ही बजता है | बस और कुछ नहीं | 

और इसी सब के बीच याद आया की मैं तो लिख भी लेता हूँ | तो बस ये सब लिख डाला | ऐसी कोई ख़ास अहमियत भी नहीं है अपनी की लोग पूछेंगे की भाई जी आजकल क्यूँ नहीं लिख रहे या कहाँ गायब हो गए |  दुःख लिखना अखरेगा यहाँ और फिर वैसा बनने में ना जाने कितना वक़्त लगे |  

तब तक के लिए : अगड़म बगड़म,  स्वाहा !!!!

( ये सब मन का फितूर है , इग्नोर कर दीजियेगा किसी को दुखी करने का कोई इरादा नहीं है |  आप सभी को आने वाले २०१४  और आगे के सभी सालों की ढेरों शुभकामनायें  )

रविवार, 20 अक्तूबर 2013

एक सपने का लोचा लफड़ा…

आजकल माहौल बना हुआ है | एक बाबा जी ने सपना देखा है कि टनों सोना एक महल के नीचे दबा हुआ है |और जिसका सोना है उसने सपने में आकार कहा है कि निकाल लो सारा सोना और देश की अर्थव्यवस्था को बचा लेओ |

बाबा के पक्के भक्त जो हैं वो सरकार में मंत्री हैं | वो अर्जी लेकर बड़े बड़े लोगो के पास गये | और पी डब्लू डी और दूरसंचार विभाग से खुदाई करने के मामले में बाप साबित हुए एएसआई को खुदाई करने का जिम्मा सौंप दिया गया |

३ दिन पहले खुदाई शुरू भई | अभी तक रत्ती भर सोना नहीं मिला है | पर उम्मीद का जो दिया होता है, वो लगातार जले जा रहा है , उसका तेल खतम नहीं हो रहा | और जल्दी और गहरा गड्ढा खोदने की कवायद जारी है |

बाबा के भक्तों और सरकार ने पिछले कुछ दिनों से छाये निराशावादी काले बादलों को छांटते हुए आशावादी होने की जो मिसाल गढ़ दी है, उससे पूरे देश के हौंसले बुलंद हैं |  इसी घनघोर आशावाद के चक्कर में कल धोनी ने इशांत बाबू से गेंदबाजी करा दी | हार गए पर कोई बात नहीं , जीत भी जायेंगे | जैसे सोना अभी तक नहीं मिला , आगे मिल भी सकता है |

पर सोने को निकालने के चक्कर में बहुत मेहनत लग रही है | सरकार के लोग तो लगे ही हैं | मीडिया वाले भी पल पल की खबरें दे रहे हैं | सारे चैनलों ने अपने सिपेसलार भेज रखे हैं कि जाओ देखे रहो - ब्रेकिंग न्यूज़ सबसे पहले हमें ही देनी है |  पर जिस तरह से अभी कुछ हाथ लगा नहीं है उससे तो यही दुआ निकलती हैं कि “भगवान् जी खुदाई में इतना सोना ज़रूर निकाल देना की खोदने गए लोगो के चाय-पानी का जुगाड़ हो जाए !!!!”

पर ऊपर वाला पता नहीं क्या लिखे बैठा है ये तो उसके ऊपर वाला ही बता सकता है , पर फिलहाल खुदाई का काम चल रहा है , जोर-शोर से |

बाबा जी, जिनको सपना आया , उनका कहना है कि अगर इतना सोना निकल आये तो देश में विकास की नदी बहा देंगे | जनता विकास की बाढ़ में बह जायेगी | पूरे देश की मौज हो जायेगी  | और इतना सोना खर्च होने में भी मात्र कुछ घंटे ही लगेंगे , पर विकास फुल-फुल हो जायेगा |

बाबा जी के अलावा आजकल दो लोगो की और चर्चा है , एक हैं राहुल गाँधी और एक हैं नरेन्द्र मोदी | दोनों को भावी प्रधानमंत्री बताया जा रहा है | दोनों के धुआंधार समर्थक हैं | और उन सबकी माने तो अगले चुनाव के बाद इस देश में दो प्रधानमंत्री होंगे | एक लच्छे दार बातें करते हैं , एक बातों में गच्चा खा जाते हैं , पिछले दिनों वैज्ञानिक बने घूम रहे थे | पर दोनों के जो समर्थक हैं मानने को तैयार ही नहीं हैं | सोचो अगर बाबा जी को सपने में सोने की बजाय राहुल गांधी प्रधानमंत्री बने दिख जाते और वो ये सपना वो सबको बता देते तो ??? मोदी वाले भड़क जाते , धर्म के तो वो सब वैसे ही ठेकेदार हैं | बाबा को बे-धरम कर दिया जाता | राहुल वाले बाबा की जय-जयकार कर देते |मजा तब भी आता अगर बाबा को सपने में मोदी प्रधानमंत्री बनते दिख जाते | सरकार खुदाई की टीम भेजती बाबा की कुटिया उखाड़ फेंकने के लिए |  और मोदी वाले तो आश्रम बना डालते बाबा का, सुबह शाम जय बाबा , जय बाबा होता |

पर इस सबके बीच बाबा और सरकार की बड़ी छीछालेदर हो गयी | जनता ने मजे ले लिए | कि बाबा पूरे देश से मौज ले रहे हैं और सरकार भी पगला गयी है | सरकार ने तो पल्ला झाड़ लिया ये कहके कि बकायदा रिपोर्ट ली गयी है कि वहाँ कोई मेटल है जो लोहे के अलावा कुछ और है तभी खुदाई हो रही है , भले चाहे बाद में ताम्बे के बर्तन निकालें | पर बाबा जी और उनके चेले नहीं मान रहे | वो कह रहे हैं पक्का , २४ कैरेट सोना निकलेगा वो भी १००० टन |  लोगो का तो ये भी कहना है कि बाबा अपनी पब्लिसिटी के लिए ऐसा कर रहे हैं | पर हमें ऐसा नहीं लगता | पब्लिसिटी करनी होती तो बाबा किलो दो किलो की बात करते और खुद से रखवा के खुदाई करवा के निकलवा देते , वाह वाही हो जाती | १००० टन बड़ी बात है | बाबा ये रिस्क नहीं लेंगे |

आश्चर्य इस बात पर भी है कि अमरीका से इस बारे में कोई खबर नहीं आयी | हो सकता है कि वो लोग इस बार दूसरी स्ट्रेटेजी लगा रहे हों | दूसरी तरफ से जल्दी जल्दी खोदें और हमसे पहले सोने तक पहुँच जाएँ | दुनिया गोल जो ठहरी | सरकार को खुदाई तेज़ी से करवानी होगी , ढिलाई से काम नहीं चलेगा |  हो सकता है खोदते खोदते दोनों तरफ के मजदूर पृथ्वी के गर्भ में कहीं मिल जाएँ तो चाय पानी का जुगाड़ भी रखना चाहिए , दोनों एक दूसरे के मेहमान होंगे |

एक पुरानी कहावत है कि गाँव बसा नहीं लुटेरे आ गए | इसी कहावत के चलते के लोगो ने सोने पर मालिकाना हक जाता दिया है | राजा के सारे नाती-पोते निकल आये हैं | सब दावा कर रहे हैं | गाँव की बाकी जनता भी अपना हिस्सा मांग रही है | अगर सोना मिल गया तो बाँटने की कार्यवाही भी मौजदार रहेगी | न्यूज़ चैनलों को तैयार रहना चाहिए |

पर अगर सोना नहीं मिला तो ? सबकी बड़ी किरकिरी हो जायेगी | सरकार तो जांच आयोग बना के निकल लेगी | बाबा को जवाब देना पड़ेगा | वैसे एक आईडिया है , बाबा कह दें कि मिट्टी भी तो सोना है , टनों निकली है ले जाओ सब लोग थोड़ी थोड़ी | बाकी विधि विधान वाला फोर्मुला तो है ही , कुछ लफड़ा लोचा हो गया टाइप | या ये बता दें कि एक और सपना आया और जिस तरह से देह के लोगो ने बाबा का मजाक बनाया है उससे राजा क्रोधित हो गए और अपना सोना किसी और महल में शिफ्ट कर दिया है | सिर्फ बाबा को ही इसका पता है | और बाबा का मूड नहीं है बताने का | या थोड़ा फुटेज लेकर बताएँगे |

और खुदाई करते करते मान लो एक नया शहर मिल गया | सैकड़ों - हजारों साल पुराना शहर | शायद किसी उल्का पिंड या ज्वालामुखी के गिरने से नष्ट हुआ था | जो जहाँ जिस हालत में था वैसे ही खत्म हो गया | रह गयीं तो सिर्फ लाशें | सोती हुई लाशें | हजारों टन लाशें | यही हो हजारों टन "सोने" का राज़ | ये भी हो सकता है |

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, ये जो राजा थे इनकी सल्तनत बहुत बड़ी नहीं थी इसलिए इतना सोना होना लोजिकल तो नहीं लगता | पर हो सकता है राजा की रानी किसी बड़े देश कि हों दहेज में मिला हो | दहेज की चीज़ों को सरकार और इनकम टैक्स वालों की नज़रों से बचाकर पूरे जग में शान से दिखाने की कला में तो हम हिन्दुस्तानी पुराने एक्सपर्ट हैं | क्या पता ये माजरा हो |

पर चाहे कुछ भी हो , १००० टन सोने को छुपाने के लिए जितना बड़ा गड्ढा खोदना पड़ा होगा वो भी जब अँगरेज़ सेना ने आक्रमण कर रखा था, बड़े माद्दे की बात है | वो भी तब जब औजार भी फावड़ा कुदाल रहे होंगे | १००० टन सोना मिलने पर उन खोदने वालों के घर वालों को ढूंढ कर मोटा इनाम दिया जाना चाहिए |

अब सोना मिलता है या नहीं ये तो वक्त बताएगा | फिलहाल माहौल बना हुआ है | दावों और मौज के दौर चल रहे हैं | मजा आ रहा | आप भी मजे लेते रहिये | हम भी चलते हैं , रात के खाने का प्रबंध करने में माता श्री की सहयता करने की कोशिश की जाए | फिर रात होने वाली है, फिर कोई सपना देखेगा, फिर बवाल कटेगा | हम आपसे फिर मिलेंगे |

तब तक के लिए सोना मत, सोने पर नज़र रखना |

-- देवांशु

P.S. : पिछले दिनों हमारा जन्मदिन बीता |  बी टेक के पासिंग मार्क्स बोले तो ३० नंबर ( साल ) जुगाड़ लिए |  मजा आया |  आप सब की “हैप्पी-बड्डे-टू-यू" ने माहौल बना दिया | आप सबका खूब सारा थैंक यू |

शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

The “Talented” Culprit Since 1992

Someone has well said “People always want to see not the rise of great man but actually the fall”. Agree. Write something against the greatest (most popular) possible person in your book and your book will become a best-seller. So I thought why not fly the kite in the blowing wind.

The sweetest target I found from current affairs is none other than Mr. Sachin Ramesh Tendulkar (My MS word was saying that there were spelling mistakes in the last two word which I have written, don’t worry MS, I have added them in to dictionary). According to me, he is a real culprit. Let me prove that ( Believe me I am very good at that ).

OK, let’s start with Mr. Abdul Qadir, one of the greatest spinners which Pakistan has ever produced. He was the first person to see the demon in the hardly 5ft tall little kid. Curly hair, height little longer than the stump, power in mind and the same name “Power “on the bat, this kid at that time hit 4 sixes in a single over in one of the exhibition match between the two teams. And as the wheel of time rotated, world saw many more victims likes of Mr. Shane Warne, for whom this little kid became the nightmare. We are lucky enough to be born as an Indian otherwise we couldn’t have watched and enjoyed him at the same time.

imageAnother set of people belongs, for whom he is a culprit, are from his home country and more importantly from his own team. Everyone knows about the one time record partnership between two batsmen at the school level. My Mr. Culprit along with his “Jai-Veeru” partner Mr. Vinod G. Kambali, kept on batting even their Guru Mr. Acharekar, a Dronacharya Awardee, kept on asking them to declare the inning. And these two guys never looked at him. The victim is not Mr. Acharekar but Mr. Amol Mazumdar ( the highest run getter in the Ranji Trophy ) was on the bench with pads on. He never became a international player though he made 260* on his debut in first class. Not only Mr. Mazumdar, many more to count. He is a dangerous culprit. Isn’t he??

As per my analysis, the next bunch of victims again the bowlers who indirectly got one of the worst possible hammering from the batsmen likes of Viru Sehwag and UV Singh. These two  claims that they are the biggest fan of the son of Marathi Novelist Mr. Ramesh Tendulkar. Neither me nor Mr. Stuart Broad can forget the evening in “Safari” when he was hit for 6 sixes in a single over of UV. Sachin, who once wanted to be a fast bowler and joined the MRF Pace foundation as well, became the culprit for so many bowlers not only directly but indirectly also in such cases.

My allegation finds next set of evidence from the home country players of this master blaster. There are two ways in which he has harmed. Firstly, because of his status, sometime he praises the bowler from the opponent side and that bowler becomes headache for rest of the Indian team. One such incident I remember when India was playing against Sri Lanka in Australia, after taking a single on the yorker length delivery from “Slinga” Mallinga, when Sachin reached at non-striker end, he praises the bowler for such a nice delivery and next ball, Gauti was bowled out. What a culprit is he? Second way, which is again due to his status, in which he has destroyed the players likes of Rohit Sharma. Some players got the appreciation from Mr. Tendulakar, in the beginning and couldn’t carry out the expectation in future. Hope they will understand how this person has groomed up in the career. I am writing this to prove my point that he is a culprit as I am also a fan Gauti and Rohit…

And finally the victims of this Master act is a complete generation whom people like me and you belong. We have “Utilized” so much of our time in watching Cricket and the reason for that always been HE. If he is playing then to watch him otherwise to watch how India will perform in absence of him. My mom always says, If I wouldn’t have wasted so much time in watching cricket ( As I used to watch complete match, then the news to see how Doordarshan is going to praise him and then again the highlights which used to be broadcasted during late night hours ),I would have become IITian Smile. But whatever I am today, I am lucky enough to be alive in an arena when this master blaster has brutally and ruthlessly has tore the bowling attack of opponents, apart.

Anyway, whatever “Saakshya” (the Sanskrit word for evidence) I have given here to prove him a culprit, I , as  many other cricket followers, worship him. I can stop all my important work to watch him completing 200* against Proteas and can jump over it when Ravi Shastri declares “First man on the planet to reach there and he is superman from India..take a bow master”..

Just because of this “Talented” gem of India, I am dedicatedly watching and following this magical game of cricket since 1992, and he remains a “Culprit “ since then…and if there is any sin related for him being the culprit …. I am ready to take that on my name……

--Devanshu

( Since yesterday I am having a strange feeling, the test cricket, the format which I enjoyed the most how will it be when Sachin will not be there. )

मंगलवार, 1 अक्तूबर 2013

ट्युज॒डेज विध मोरी : ए बुक टू चेरिश !!!


“Have I ever told you about the tension of opposite” he says.
The tension of opposite ?
“life is a series of pulls back and forth. You want to do one thing, but you are bound to do something else. Something hurts you, yet you know it shouldn’t. You take certain thing for granted, even when you know you should never take anything for granted.
“A tension of opposite like a pull on a rubber band. And most of us lives somewhere in the middle.”
Sounds like a wrestling match, I say.
“A wrestling match” He laughs. “Yes, you could describe life that way.”
So which side wins, I ask?
“Which side wins?”
He smiles at me, the crinkled eyes, the crooked teeth.
“Love wins, Love always wins.”

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हम सब जानते हैं कि हमें एक दिन मरना है पर ज़िंदगी का एक बहुत बड़ा हिस्सा हम हर आने वाले कल के उत्साह में बिताते जाते हैं | फिर जब एक दिन पता चलता है कि अब बस मौत नज़दीक है , ज्यादातर लोग उदास हो जाते हैं , रिग्रेट करते हैं | जिस दिन कल का उत्साह खत्म हो जाता है, हम मौत की तरफ बढ़ते नहीं, क्राल करते हैं |
पर “प्रोफ़ेसर मोरी" ऐसा नहीं था | एक भयंकर बीमारी के बाद जब उसे पता चलता है कि ज़िंदगी बस खत्म होने वाली है , वो दुगुना जीने लगता है | लोगों से मिलने लगता है, टीवी पर उसके शो आने लगते हैं , वो अपने जिंदगी जीने के जज्बे के चलते लोगों के बीच में एक अलग जगह बना लेता है |
There are some mornings when I cry and cry and  mourn for myself. Some mornings, I’m so angry and bitter. But it doesn't last too long, Then I get up and say ‘I want to live…’
उसी के बाद उसका एक पुराना स्टूडेंट, मिच एल्बम , किताब का लेखक, उससे मिलने आता है | मिच , मोरी का फेवरेट स्टूडेंट रहा था |  वो उसे अपने बचे हुए दिनों में मिलते रहने के लिए कहता है | उसे ज़िंदगी का अपना नजरिया बताता है | इत्तेफाकन वो हर ट्युज॒डेज को मिलते हैं , ऐसा वो कॉलेज में भी करते थे | उसी नजरिया को मिच डोक्युमेंट करता है |
और बस यही है, ट्युज॒डेज विध मोरी…
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किताब में ऐसा कुछ नहीं है जिसके बारे में आपने देखा, सुना या समझा ना हो | पर हर ऐसी चीज़ जिससे हम वाकिफ होते हैं, उसके बारे में हम वही नजरिया अपनाते हैं जो हमको सूट करता है | शायद यहीं आकर ये किताब नया पहलू देती है हर उस बात को | आपको हर पन्ने पर सोचने पर मजबूर करती है | दुखी नहीं करती | कभी कभी आपको जिंदगी के ऐसे पन्नों के बारे में सोचने को मजबूर करती है , जिसको हम अक्सर या तो भूल चुके होते हैं या जान बूझकर अनजान बने रह जाते हैं | किताब आपको पास्ट को भूलने को नहीं कहती :
Accept the past as past, without denying it or discarding it
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मोरी और मिच , जिंदगी के बहुत से पहलुओं पर बात करते हैं  जैसे डेथ, रिग्रेट, फैमिली, लव, इमोशन, एजिंग, मनी,  मैरिज , कल्चर आदि | सबके बारे में उस सख्श के बयान जिसके सर पर मौत खड़ी है , पर उसने मौत के सामने हार नहीं मानी |
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बाकी इससे ज्यादा और कुछ नहीं लिखा जा सकता इस किताब के बारे में मेरे हिसाब से | बाकी आप खुद पढ़िए और समझिए | शायद कोई नया नजरिया आपका इंतज़ार कर रहा हो |
Love is the only rational act

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--देवांशु
(शुक्रिया अनु जी का जिन्होंने  इस किताब को रेकमेंड किया)

सोमवार, 19 अगस्त 2013

१५ अगस्त का तोड़ू-फोड़ू दिन !!!

 
सबेरे उठे तो सालाना आदत के चलते माताश्री १५ अगस्त के शुभ-अवसर पर प्रधानमंत्री का भाषण सुन रही रहीं | सबसे पहले जो डायलोग कानों में गया वो ये रहा (शब्द थोड़े अलग हैं):

“गरीबी को नापना एक मुश्किल काम है , लोगो के अलग अलग ख़याल हैं, पर कोई भी परिभाषा अपनाएं २००४ के बाद से गरीबी बहुत कम हुई है”

हमें लगा इससे ज्यादा ना सुन पाएंगे भाई , अभी एक और  साहब का भी सुनना है स्पीच , वो पहिले ही दावा कर दिए हैं की प्रधानमंत्री से अच्छा भाषण देंगे | सोचे शाम को दोनों का एक-एक करके सुनेंगे | फिर से सो गए |

देशभक्ति तो आज के दिन ऐसे तोड़ू तरीके से जगती है की पूछो मत |  नीचे की फ्लोर पर रहने वाले लड़कों ने तो एक दिन पहले से मनाना शुरू कर दिया | काफी रात तक नाच गाना चलता रहा | आजादी का नशा कोई मामूली नशा नहीं होता है | हम भी बोले की हम आज़ाद हैं और रात १२  बजे से पूरे चार घंटे का गिटार प्रोग्राम चलाएंगे तो जवाब में सिस्टर जी ( अब बहन जी तो नहीं बोल सकते ना ) ने कहा हम भी आज़ाद हैं , गिटार संभाल लेना फिर |  हमने अपने अरमानों का गला घोंट दिया |

आज़ादी का दिन था  तो हम वैसे ही देर से उठे  |  बचपन में १५ अगस्त एक दम पूजा टाइप लुक देता था | कथा टाइप भाषण होते और बाद में परसाद में बूंदी के लड्डू मिलते |  फिर वक़्त बदला , आजादी का मतलब भी बदल गया |

सबसे पहले घूमने निकले की देखा जाए की कहाँ कैसे आज़ादी मनाई जा रही है | सामने के सेक्टर में भाषण-बाजी चल रही थी | थोड़ी देर सुने फिर आगे बढ़ गए | ऐसा लगभग ३-४ पार्कों में हो रहा था | आगे मंदिर पहुँच गए | वहां भी बराबर भीड़ थी | मुझे लगा की भगवान् की पूजा तो आज भी होनी चाहिए | उन्ही के भरोसे तो ये देश चल रहा है |  वरना डुबाने वाले तो कबसे उतारू बैठे हैं | भगवान् जी से मुलाकात करके आगे बढे | हलवाई के यहाँ से घेवर खरीदा, माताश्री को बहुत पसंद है |

घर वापसी पर मकान-मालकिन को किराया बढ़ाये जाने को लेकर वार्षिक बहस हुई, जो हमने १००० के मुकाबले १०० रुपयों से जीती  |

तभी  सोनल का फ़ोन आ गया “आज तो आज़ाद होगे ??”
हमने कहा “नहीं जी , बड़ी गुलामी में जी रहे हैं”
उधर से आवाज़ आयी “तो फिर सही समय पर ठिकाने पर पहुच जाना” |

दरअसल सोनल के घर पर एक गप्प-गोष्ठी का आयोजन किया गया था |  कई अतिथि आ रहे थे, और सारे मुख्य-अतिथि  |  शिखा जी , अनु जी , आराधना जी , अभिषेक बाबू | हम भी इन-वाईटेड थे |

सोनल जिस कम्युनिटी में रहती हैं उसके गेट पर खड़े  गार्ड ने हमें सबसे पहले रोका | बोला टिकस लै लेयो | हमें लगा की उसे आइडिया लग गया है की बड़े बड़े लोग आ रहे हैं, तभी इंट्रीटिकस लगा दिया है ( अब तो भाषण सुनने के भी रुपये लगते हैं )  | हमने कहा एक टिकस दै देयो |  पर वो बोले पहले उनसे बात कराओ जिनके पास जाना है | सोनल से बात कराई गयी | तब जाकर टिकस मिला | फोन पर ही पता चला की अभिषेक बाबू भी आ गए होंगे, देख लो  | देखा तो वो गेट में घुस ही रहे थे, हमने कहा टिकस पर +१ कर दो |

कम्युनिटी बहुत शानदार रही |  हमने अभिषेक से कहा यार बड़े महंगे घर हैं, अपनी औकात से बाहर | उन्होंने भी हामी भर दी | फिर हमने कहा “एक घर तो ना ले पाएंगे , पूरी कम्युनिटी कितने में बिकेगी ये पता लगाओ" | उन्होंने हमें घूर के देखा |

अन्दर दूसरे गार्ड से बिल्डिंग की लोकेशन पूछी , बोले है तो यही पर. टिकस है ? हमने दन्न से टिकस दिखाया | तब अन्दर जाने को मिला | बड़ा ताम-झाम वाला काम रहा यहाँ तक |

DSC01458शिखा जी पहले पहुँच चुकी थीं | हम लोग भी पहुँच गए | पता चला बाकी लोग नहीं आयेंगे इस लिए गप्प-वार्ता-आलाप शुरू किये गए | दुनिया जहान की बातें |  इसे ब्लॉगर-मीट कहना उतना ही सही रहेगा जैसे हिन्दुस्तान को लोकतंत्र कहना (सटायर) |

गप्प की रेंज एटम बम की रेंज से ज्यादा होती है |  शुरुआत हुई खस के शरबत से जिसमे सोडा मिला हुआ था |  पहले सब लोग सभ्यता के साथ हँसते रहते , बाद में सभ्यता की डोरी टूट गयी और चिग्घाड़-चिग्घाड़ के हंसाई प्रोग्राम चालू हो गया |

सोनल ने दोपहर का डिनर बहुत फोड़ू टाइप बनाया था | स्पेशली मिक्स-वेज | ठूंस-ठूंस के खाए |  मिठाई भी बहुत बढ़िया थी |
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गप्प-गोष्ठी पार्ट-२ शुरू हुआ | बीच बीच में फोटो खीच के सोनल फेसबुक पर डालती रहीं | ऐसे ही टाइप की एक मीटिंग लास्ट इयर भी भई रही | हम पहले ही बोले थे सोनल को की किसी और को भी बुला लेना वरना लगेगा की लास्ट इयर की डाल दिहिन हैं फोटो | पर अनु जी ने ना आकर हमें बचा लिया | लेकिन परशांत बाबू यही कमेन्ट कर दिए  ( इंगेजमेंट के बाद इंसान काफी प्रेडिक्टेबल हो जाता है ) | उनसे भी निपटा गया |


सही बताएं तो भूल गए हैं की कौन कौन सी बात पर और कित्ता हँसे | पर हँसे बहुत | फिर ये हुआ की कॉफ़ी पी जाए | हमने कहा हम बना देते हैं | काफ़ी बनाई तो शर्त ये रखी गयी की पियेंगे तब , जब तुम ट्रे में सजा के लाओगे |  हम बहुत सीधे वाले बच्चे हैं , फटाफट मान गए | पर शिखा जी ने तुरंत फोटो खींच ली | और सोनल ने फेसबुक पर डाल दी |  जनता भी ना !!!!

DSC01478फोटो पर अनूप जी ने पहले तो कहा की पल्लू भी डाल लो हीरो बेटा , फिर अगले कमेन्ट में कह दिए की कोर्ट में जाकर केस कर दो, निजता का उल्लंघन हुआ है तुम्हारी |  बात तो गौर करने वाली है वैसे, देखते हैं किसी टाइम |
 
थोड़ी देर के लिए ब्लॉग के बारे में बात हुई | ज्यादातर ब्लोगरों को हम जानते ही नहीं थे तो इस हिस्से में हम सन्नाटे में रहे , सुनते रहे | पर ये चर्चा ज्यादा देर चल नहीं पायी | सब वापस औकात पर गए | सबकी बारी बारी से टांग खिचाई हुई |

शिखाजी ने अपनी नयी किताब “मन के प्रतिबिम्ब" हम लोगो को गिफ्ट की | अभी पढ़ नहीं पाए हैं , उसके बारे में फिर कभी  | आजकल “ट्यूसडेज विध मोरी” पढने में टाइम निकला जा रहा है | ये किताब पिछली मुलाकात में अनु जी ने सजेस्ट की थी | पहली बार कोई किताब पढ़ रहे हैं जो हर पन्ने पर अपना समय मांग रही है  | बहुत बढ़िया किताब है   |

शाम हो गयी थी तो अब वापस जाने का समय हो गया | सोनल ने अपनी ड्राइविंग कौशल का परिचर दिया , हम सब को सकुशल पंहुचा दिया | सबसे मिलना एक बार फिर बहुत बढ़िया लगा |

घर  आकार परधानमंत्री और सो-काल्ड भावी परधानमंत्री दोनों का भाषण सुने फिर से | सही बताएं तो दोनों बेकार लगे | एक ने कहा “हमने ये ये किया इसलिए अगली बार हमको वोट दो” | दूसरे ने कहा “देखो उन्होंने ये ये किया इसलिए अब हमको वोट दो” |

रात में अनूप जी का फ़ोन आया , उन्होंने कहा की पोस्ट लिखी जाए इस मीटिंग पर | हमने चिट्ठा चर्चा की डिमांड कर दी | उन्होंने कहा तुम लिखो पोस्ट, हम चर्चा शुरू कर देंगे | उन्होंने अपना वादा पूरा कर दिया पर हम पोस्ट ठेल नहीं पाए | वीकेंड भी भागा-दौड़ी में निकल भागा | अनूप जी ने फिर से चेताया की बेटा ये बड़े ब्लोगरों के लक्षण हैं जो कहने पर भी पोस्ट नहीं लिखते | अब इस आरोप से बचना बहुत ज़रूरी था तो बस ठेल दी ये पोस्ट, बाकी इसमे हमरी और कोनू गलती नहीं है |

फिलहाल आज़ादी के दिन की बिलेटेड शुभकामनायें !!!!

मनस्ते !!!!
-- देवांशु

सोमवार, 5 अगस्त 2013

लिफाफे में सादा कागज़ निकलने से हड़कंप

नई दिल्ली | प्रधानमंत्री कार्यालय को मिले एक पत्र के लिफाफे में सादा कागज़ निकलने से हडकंप मच गया है | सारे नौकर और अफसर शाह आदतानुसार बगले झांकने लगे है |

दरसल ये घटना सत्ता धारी गठबंधन की अध्यक्षा द्वारा प्रधानमंत्री को लिखे पत्र से खड़ी हो गयी | पिछले दिनों झुमरीतल्लैया  ( जिसको असली में कोडरमा के नाम से जाना जाता है ) से कुछ लोग माननीया से मिलने आये थे | उनका कहना था की विविध भारती पर प्रकाशित होने वाले कार्यक्रम “आप की फरमाइश" में पिछले करीब १५ सालों से उनके परिवार के कुत्ते का नाम बार-बार लिया जा रहा है | १५ साल पहले जब उन्होंने रक्षाबंधन के त्यौहार पर “बहना ने भाई की कलाई पर प्यार बाँधा है” वाला गान सुनने के लिए चिट्ठी लिखी थी तो उन्होंने अपने कुत्ते का नाम “शेरू" भी लिख दिया था | पर वो ये लिखना भूल गए थे की ये उनके कुत्ते का नाम है |

शेरू की मौत करीब १० साल पहले हो चुकी है |  पर हर साल रक्षाबंधन पर विविध भारती वाले उसका नाम ले लेते हैं उसी चिट्ठी का हवाला देकर, जिससे परिवार आहत हो जाता है |  फिर वैसे भी अब कुत्ते का मरना राष्ट्रीय आपदा है | उन्होंने इस आशय के कई पत्र विविध भारती और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को लिखे पर कोई कार्यवाही नहीं हुई | इस लिए अब वो सीधे माननीया के पास अर्जी लेकर आये हैं | अर्जी लेकर आये लोगो में मोनू , सोनू, बंटी , राजू और उनके सभी दोस्त शामिल थे |

मुलाकात के बाद जब शाम को प्रधानमंत्री ने अपनी रेगुलर परमिशन कॉल की माननीया को, तो उन्होंने इस घटना का संज्ञान लेते हुए कहा की वो इसके बारे में कल एक पत्र भेजेंगी जिसके बाद प्रधानमंत्री इस पर कोई त्वरित एक्शन लेने का एलान करेंगे | प्रधानमंत्री ने अपना पसंदीदा डायलोग दाग दिया "ठीक है" |

प्रधानमंत्री ने इस घटना के बारे में तुरंत एक्शन की घोषणा सुबह सुबह कर दी |  इसे माननीया के द्वारा भेजे गए पत्र के लिए  उठाया  गया कदम बताया और शाम को इसके बारे में विस्तृत जानकारी देने के लिए प्रेस-कांफ्रेंस बुला ली |  पर दोपहर में प्रधानमंत्री कार्यालय से खबर आ गयी की पत्र के लिए जो लिफाफा भेजा गया उसमे सिर्फ सादा कागज था | ये बात प्रधानमंत्री तक नहीं पहुँच पायी और वो सीधे प्रेस-कोंफ्रेंस में पहुच गए |

उन्होंने  उठाये गए क़दमों को पहले तो  युवराज की पहल और माननीया की देश के प्रति चिंता बताया फिर पहले से निर्धारित प्रश्नों के जवाब दिए | तभी एक खुराफाती पत्रकार ने ये सवाल दाग दिया की सादे कागज पर ही एक्शन कैसे ले लिए तो प्रधानमंत्री के पीए  असमंजस में आ गए | किसी को कुछ समझ नही आया की क्या कहें और क्या करें |  कुछ लोगो ने इसे हल्की सी गलती बताया जिसपे भारी हंगामा हो गया | कांफ्रेंस संसद भवन में तब्दील हो गयी | कुछ पत्रकार पक्ष में आ गए कुछ विपक्ष में | शब्द बाण चलने लगे |

माहौल बिगड़ता देख प्रधानमंत्री ने अपनी शायरी के ज्ञान के चलते एक लाइन में बात निपटाई :
“हम वो हैं जो लिफाफे का रंग देख ख़त का मज़मून जान लेते हैं” |
तब जाकर मामला शांत हुआ |

इस बीच नाम ना लिए जाने की शर्त पर प्रधानमन्त्री कार्यालय के एक उच्चपदासीन अधिकारी ने बताया है की दरसल वो सादा कागज़ प्रधानमंत्री कार्यालय को पिछले बयान के चलते दी गयी क्लीन चिट थी जो गलती से गलत लिफाफे में चली गयी | इस घटना के बाद से प्रधानमंत्री के द्वारा  आने वाले स्वतंत्रता दिवस के लिए बोली जाने स्पीच के लिफाफे की ट्रेकिंग पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है |

अभी तक पीड़ित परिवार से कोई संपर्क नहीं हो पाया है |
--देवांशु
(फोटू के लिए गूगल बाबा की जय हो )

शनिवार, 27 जुलाई 2013

बस ऐसे ही…


इंजीनियरिंग करने के बाद लड़के ने एक एम्एनसी में जॉब ज्वाइन की थी, एक साल से कुछ ज्यादा वक्त हो चुका था | मन लग गया था नयी जगह में |
उस रात वो अपनी माँ से फोन पर बात कर रहा था | करीब आधे घंटे बात करने के बाद माँ ने फोन रखने से पहले बोला “वो दिविशा याद है?  उसकी शादी की बात हो रही है,  हम लोगों का व्यू जानने के लिए बुलाया है लड़के के बारे में” |
“अच्छा, हो आइये आप लोग”
कहकर उसने फोन रख दिया |  उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगा  उसके बाद |

****

लड़के के पापा का जब ट्रांसफर इस शहर में हुआ था तो वो शायद आठवीं में पढ़ रहा था |  किराये का घर था | मकान मालिक की बेटी का नाम दिविशा था | वो भी उसी क्लास में थी, उसी स्कूल में |  बारहवीं तक दोनों साथ पढ़े | साथ आते-जाते तो नहीं, पर शाम छत पर अक्सर साथ गुज़रती |

बाद में लड़का इंजीनियरिंग पढ़ने चला गया | दिविशा ने पढ़ाई उसी शहर में जारी रखी | इस बीच लड़के का अपना घर बन गया , वो लोग नए घर में शिफ्ट हो गए |  फिर मिलना नहीं हुआ दिविशा से |

****

पर आज पहली बार लड़के को  ना जाने क्यूँ, कुछ अलग सा महसूस हुआ | बार बार दिविशा का चेहरा आँखों से सामने घूमने लगा | उसकी एक तस्वीर जो उसके बर्थडे पर उसके साथ खीची गयी थी, उसने छुपा के अपनी डायरी में रखी  हुई थी |

पूरी रात उसी फोटो को देखता रहा | सुबह झपकी आने से कुछ देर पहले उसे रियलाइज हुआ कि वो तो दिविशा से प्यार करता है | पर कहना तो दूर पिछले करीब चार सालों से उससे मिला भी नहीं है | पता नहीं वो भी उसके बारे में ऐसा सोचती है या नहीं |

****

दिविशा को बता दिया गया था कि कुछ दिनों में लड़के वाले उसे देखने आने वाले हैं | तब से वो बेचैन सी थी | कुछ अजीब सा ही लग रहा था उसे, पर उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहे और क्या करे | तब से अक्सर शाम को वो छत पर खड़ी रहती |

****

झपकी से उठते ही लड़के ने अपना बैग पैक किया और अपने घर चल दिया | मम्मी पापा सरप्राइज॒ड थे , जो सालों में अपनी शक्ल नहीं दिखाता था, आज अचानक उनके सामने खड़ा था | “फुरसत मिल गयी साहब" का ताना पापा से सुनने के बाद , वो सबसे पहले तैयार हुआ, कुछ खाया और फिर “दोस्त से मिलने जा रहा हूँ” कहके बाहर जाने लगा |

“शाम को हम लोग चंद्रा आंटी के यहाँ जायेंगे, लड़के वाले आज ही आ रहे हैं, तुम भी वहीँ आ जाना , डिनर के लिए इनवाईट किया है उन्होंने” |

दरवाज़ा पटकने से पहले आवाज़ आयी “आप ही लोग जाओ" |

****

शाम होने को थी, रोज़ की तरह दिविशा छत पर खड़ी कुछ सोच रही थी | कुछ देर में  उसे देखने लड़के वाले आ रहे थे | उसने आसामानी रंग का सूट पहन रखा था | उदासी का रंग उसके गालों पर छाया हुआ था | ठीक पीछे के घर की छत से , जो उसकी छत से लगी हुई थी, किसी के कूदने की आवाज़ हुई |

“तुम" कहते हुए वो घूमी |

“हाँ” |

“यहाँ क्या कर रहे हो,  और ऐसे कूद के क्यूँ आ रहे हो, दरवाज़े से आते, कोई देख लेगा तो आफत आ जायेगी, और आज तो”
“तुम्हें देखने लड़के वाले आने वाले हैं"
“हाँ" कहते कहते उसके आँखों में आंसू आ गए जिसे छुपाने के लिए वो फिर एक बार गली में देखने लगी |

“सुनो"

“क्या है"

“मैं ये कह रहा था" कहते कहते लड़का उसके पास चला गया |

“कुछ मत कहो”

“सुनो तो"

“क्या है!!!!” कहते हुए लड़की उसकी तरफ घूमी, इस बार आंसू ना थमे, ना छुपे |

“कुछ नहीं" कहते हुए लड़के ने उसे बाहों में भर लिया | दिविशा फूट-फूट कर रोने लगी | थोड़ी देर बाद जब वो उससे अलग हुई तो हुए तो डरते हुए लड़के ने बोला ..

“सुनो, तुम बहुत खूबसूरत हो”

“डफर, बस यही बोलोगे”

“आई लव यू दिविशा"

“आई लव यू सुमित" |

 इस बार दोनों की आँखों में आंसू थे |

*****

“देर कर दी तुमने"

“कोई देर नहीं हुई, तुम इस लड़के को मना करो, मैं सबसे बात कर लूँगा"

“लड़का इतना तो पसंद आ गया है इन लोगो को, उसने भी शायद हाँ कर दी है, अब मुश्किल है"

“भाग चलें अभी"

“नहीं"

कोई नीचे से ऊपर आ रहा था | दिविशा डर गयी | उसकी मम्मी उसे नीचे बुलाने आयी थी | सुमित को वहाँ देखकर वो चौंक गयी |

“बेटा तुम , इतने दिनों बाद, कब आये , पता ही नहीं चला”

“हमेशा की तरह चोर दरवाजे से आंटी, पता कैसे चलता” उसने हँसने की कोशिश की |

“अभी भी नहीं सुधरे तुम, चलो अच्छा है, डिनर करके जाना, आज स्पेशल क्या है वो तो तुम्हें पता ही होगा”

“जी" कहने में उसने सारा जोर लगा दिया |

“अच्छा चलो अब नीचे तुम लोग, वो लोग आते ही होंगे , तुम्हारे मम्मी पापा भी आ रहे होंगे सुमित" |

“जी"

दोनों उनके पीछे जीने से उतरने लगे |  आगे की सारी बातें आँखों से हो रही थी | ड्राइंग रूम से अब हँसने की आवाजें आने लगी थी |  दिविशा की माँ एक बार फिर अंदर आयी और उसे बाहर ले जाने लगीं | उदासी का रंग गहरा भी हुआ और छिटक कर सुमित पर भी जा गिरा | वो उनके पीछे चल पड़ा और ड्राइंग रूम के दरवाजे पर पड़े परदे के ठीक पीछे रुक गया |

दिविशा ने परदे को पार किया |

“बेटा सबको नमस्ते करो"

कुछ मिनटों के लिए सन्नाटा छा गया |  दिविशा ने हाथों से परदे को हटाकर सुमित को ड्राइंग रूम में खींच लिया |
सुमित के पापा दिविशा के पापा से कह रहे थे “साहब को बुला के बाँधने का इससे अच्छा तरीका नहीं हो सकता था, भाईसाहब |”

"मैडम भी  कहाँ मान रही थी शादी के लिए इतनी आसानी से " दिविशा के पापा ने कहा |

सुमित की मम्मी ने उठकर दिविशा और सुमित को गले से लगा लिया और सुमित से बोलीं "डायरी में फोटो तो संभाल ली, डायरी भी तो संभाल के रखनी चाहिए थी ना"

आंसू अभी भी थे आँखों में उनकी, बस उनका कारण बदल चुका था |


P.S. : कुछ लव-स्टोरी बिना लफड़े-लोचे के भी पूरी हो जाती हैं |
-- देवांशु

शनिवार, 20 जुलाई 2013

यूँ ही, ऐसे ही !!!


“हाँ, तो क्या नाम बताया तुमने अपना”

“सर, समीर”

“लेखक हो ?”

“नहीं सर, बैंकर”

“तो कहानी लिखने की क्यूँ सूझी तुम्हें ?”

“बस सर लगा कि ये कहानी दुनिया को पता चलनी चाहिए"

“भाई , पहले तो इस कुर्सी पर बैठने वाला हर दूसरा-तीसरा आदमी बोलता है कि वो लेखक नहीं है, दूसरे सबकी कहानी वही घिसी-पिटी एक ही ढर्रे पर चलती होती है, कुछ तड़क-भड़क होनी चाहिए , है तुम्हारी कहानी में ?”

“सर तड़क-भड़क, मतलब ?”

“कुछ वैसे सीन हैं”

“नहीं सर, प्रेम कहानी है”

“तो प्रेम कहानी में वैसे सीन नहीं होते ?”

“ऐसा कुछ हुआ ही नहीं"

“ओह्ह,  खैर कोई नहीं, लड़का भी वैसी फ़िल्में नहीं देखता क्या ? उसी का कोई सीन लिख डालो”

“नहीं सर”

“तो कुछ समाज से बगावत है क्या,  जैसे माँ-बाप नहीं मान रहे ऐसा कुछ”

“सर कुछ-कुछ वैसा ही"

“आ गया ना वही ढर्रा, भाई मेरे, ३६५ कहानी आती हैं ऐसी”

“सर ये शायद थोड़ी अलग हो , आप पढ़ के तो देख लीजिए एक बार"

“फटाफट सुना डाल"

“लड़का-लड़की एक दूसरे से प्यार करते हैं, लड़के के घर वाले इस शादी के खिलाफ है, क्यूंकि लड़का पढ़ा-लिखा है,  मोटी रकम कमाता है और"

“और??”

“और लड़की अंधी है , लेकिन आखिर में वो शादी करते हैं”

“मेलोड्रामा, भाई माफ करो, ऐसी बहुत सी बातें छप चुकी हैं, जनता बोर हो गयी है"

“सर पर ये बाते गयीं तो नहीं ना हमारे यहाँ से"

“तो तुम्हें लगता है कि तुम ये कहानी लिखकर इन बातों को यहाँ से हटा दोगे,  कैसे ?? क्रांतिकारी हो क्या?”

“सर शायद किसी को इससे कोई रास्ता दिख जाये"

“भाई कोई फ़ोकट में भी ऐसी कहानी नहीं खरीदेगा"

“पर सर वो जो सरकार से आपको वृद्ध एवं विकलांग वर्ष के लिए किताबें छापने के लिए ग्रांट मिली है, मैं उसमे से इसे छापना चाहता हूँ”

“अबे पागल हो क्या, वो समाज में अच्छे सन्देश देने के लिए किताबें छापने के लिए मिली  है, ये वाहियात प्रेम कहानी समाज सुधारेगी,  बेटा उसमे कुछ छापना है तो देशभक्ति टाइप का कुछ लिखकर लाओ, कि कैसे एक लंगड़े ने एक पहाड़ पार कर के दुश्मन के बंकर में बम डाल दिया, इस टाइप का कुछ जोश आये जिससे, समझे ”

“सर पर प्रेम भी तो समाज को सुधारने का तरीका है, हम इस तरह के लोगों से सिर्फ देशभक्ति या ऐसा कुछ और, ही क्यूँ चाहते हैं, इनको हमारी तरह रहने-जीने दिया जाए , ये काफी नहीं है क्या ?”

“अरे यार , तुम तो कतई गले पड़ गए, कह दिया ये नहीं छाप सकते हम, अब जाओ"

“क्यूँ?”

“सुनो, और चाहे बाहर जाकर सबको बता देना, ग्रांट मनी का तीस परसेंट एडवांस सुविधा शुल्क लेकर ये ग्रांट झींट पाए हैं , मंत्री जी की भतीजी ने पहले से कहानी भी लिख दी है , वही छपेगी , समझे | और अगर तुम कुछ और छापना चाहते हो तो तड़क भड़क लेकर आओ , समझ गए”

“तो मतलब आप मेरा लिखा नहीं छपेंगे"

“नहीं"

“फिर आप ही बता दीजिए की क्या छापेंगे?”

“एक लेखक को पहले पाठक बनना पड़ता है, और लोगो को पढ़ो, देखो क्या बिक रहा है , वैसा ही कुछ लिखो, तब आना हमारे पास | और ये ग्रांट के चक्कर में मत पड़ जाओ | बैंक की नौकरी करो , खुश रहो"

“ठीक है सर, चलता हूँ”

“चलो, ध्यान रखना, हमारी बात मानोगे तो बहुत आगे जाओगे”

“जी"

वो जाने लगता है | तभी रोककर पीछे से महोदय सवाल पूछ लेते हैं |

“वैसे ये बताओ, ये अंधी लड़की और  नोर्मल लड़के की कहानी तुम्हें सूझी कहाँ से?”

लड़का पीछे घूमता है | एक  हल्की सी मुस्कान उसके चेहरे पर आ जाती है:

“वो क्या है ना सर,उस लड़की की आँखें बहुत खूबसूरत हैं और उन्हें मैं हर रोज़ देखता हूँ !!!!!”
--देवांशु

बुधवार, 17 जुलाई 2013

डीज़ल-पेट्रोल

अभी थोड़ी देर पहले बी एस पाब्ला जी के फेसबुक स्टेटस पर एक रिलेटिव स्टडी पढी :

“भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार जब आई तो
1 मार्च 1998 को पेट्रोल 23.94, डीज़ल 9.87 और गैस 136 रूपए की थी जबकि बीजेपी सरकार जाते समय 16 नवंबर 2004 को पेट्रोल 37.84, डीज़ल 26.28, गैस 281 की दर से उपलब्ध हो रहा था

मतलब, 6 वर्षों में पेट्रोल में 60%, डीज़ल में 165%, गैस में 106% की वृद्धि की गई

जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार बनी तो
16 नवंबर 2004 को पेट्रोल 37.84, डीज़ल 26.28, गैस 281 की दर से बिक रहा था और 6 वर्षों बाद जून 2010 को पेट्रोल 51, डीज़ल 40, गैस 345 की दर बाज़ार में था

मतलब, इन 6 वर्षों में पेट्रोल में 34%, डीज़ल में 52%, गैस में 22% की वृद्धि हुई

(मैं किसी राजनैतिक विचारधारा/ दल का समर्थक नहीं, लेकिन हो-हल्ला और हवा हवाई बातें करने वाले खुद जान लें वास्तविकता क्योंकि दैनिक उपयोग की उपभोक्ता वस्तुयों की कीमतें बढ़ना तय है चाहे सरकार कोई भी हो) "

 

 

वैसे मुझे भी किसी दल से ज्यादा लेना देना नहीं है लेकिन एक कैलकुलेशन करने का मन कर गया :

मार्च १९९८

कच्चे तेल की कीमत : १२.७५ डॉलर प्रति बैरल

एक्सचेंज रेट : ४२ रुपये प्रति डॉलर

कच्चे तेल की कीमत भारतीय रुपये में : १२.७५*४२ = ५३५.५

 

नवम्बर २००४ 

कच्चे तेल की कीमत : ४४.३० डॉलर प्रति बैरल

एक्सचेंज रेट : ४५  रुपये प्रति डॉलर

कच्चे तेल की कीमत भारतीय रुपये में : ४४.३*४५ = १९९३.५

 

जून २०१०

कच्चे तेल की कीमत : ६७.१२ डॉलर प्रति बैरल

एक्सचेंज रेट : ४६.५६  रुपये प्रति डॉलर

कच्चे तेल की कीमत भारतीय रुपये में : ६७.१२*४६.५६ = ३१२५.१

 

अगर तुलनात्मक स्टडी की जाए तो १९९८-२००४ के ६ वर्षों में कच्चे तेल की कीमत २७२.२६% बढ़ गयी जबकि तेल के दामों में वृद्धि पेट्रोल में ६०% और डीज़ल में १६५% |

वहीँ २००४-२०१० के कार्यकाल में बाजार मूल्य ५६.७६% की दर से बढ़ गया | और उसके मुकाबले पेट्रोल में ३४%  और डीज़ल में ५२% |

यहाँ पर ये भी देखना ज़रूरी है की परमाणु परीक्षण के बाद भारत पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों का असर भी नकारात्मक प्रभाव भारतीय व्यवस्था पर पड़ रहा था | और अभी तो मार्केट बाहर के निवेश के लिए पूरी तरह से खुला है |

तो जहाँ तक मुझे लगता है की ये वर्तमान सरकार का फेल्योर ही कहा जायेगा , पुरानी सरकार के मुकाबले |

गैस की कीमतों की कहानी तो गैस निष्कर्षण के बेसिन के बन्दर बाँट से समझी जा सकती है | मात्र १० प्रतिशत बेसिन खोलकर सप्लाई को कम किया गया और बढ़ती डिमांड के आगे रेट ऊपर जाने लगे | और उसे काउंटर करने के लिए दाम बढ़ाये गए और फिर कैश-ट्रान्सफर की धुआंधार स्कीम आ गयी |

****

मोदी या किसी और की तारीफ़ ना करते हुए, मुझे ये सरकार आर्थिक मामलों पर फिसड्डी नज़र आ रही है |  धर्म-जाति अपनी जगह है (और मुझे उनसे कोई वास्ता भी नहीं है) ,पर  कम से कम आर्थिक मामलों के चलते मुझे इस सरकार को दुबारा सत्ता में देखने का कोई मन नहीं है |

बाकी सबकी अपनी अपनी एनालिसिस होती है |

आंकड़ों के सूत्र :

एक्सचेंज रेट हिस्ट्री:  http://rbidocs.rbi.org.in/rdocs/Publications/PDFs/56465.pdf , http://www.exchangerates.org.uk/USD-INR-30_06_2010-exchange-rate-history.html

क्रूड आयल प्राइस हिस्ट्री : http://www.ioga.com/Special/crudeoil_Hist.htm

-- देवांशु

शनिवार, 13 जुलाई 2013

चीर-फाड़ , पोसमार्टम !!!!


बीती रात भारत एक बार फिर जीत गया | 

वैसे काफी रात तक स्कोर देखते और फेसबुकियाते रहे | पर फिर लगा अब आराम से जीत जायेंगे तो सो गए, सुकून की नींद |

उठे तो उठते ही फेसबुक से ही पता चला की बबाल हो गया | धोनी ने आखिरी ओवर में मैच जितवा दिया |
समझ ये नहीं आया की लोग किस बात पे बबाली  बने हैं, धोनी ने मैच जितवा दिया इस पर या आखिरी ओवर में जितवाया इस बात पर |

खैर, इ सब तो रोज़ का लफड़ा है | क्रिकेट से जित्ता फायदा खिलाड़ियों को हुआ है उतना ही टीवी चैनलों और कंपनियों को भी हुआ है | खेल विश्लेषकों ने भी अपनी दुकान मस्त खोल दी है |

हम रेडियो कमेंट्री के ज़माने के बाद पैदा हुए | पर बिजली महारानी की असीम किरपा के चलते अक्सर रेडियो कमेंट्री से ही काम चलाना पड़ता था | गली महल्ले में उस समत भी हर कोई किरकेट एक्सपर्ट हुआ करता था | 

ऐसे ही एक शानदार एक्सपर्ट हमारे पिताजी भी थे |  तब तक टीवी आ चुका था पर पिताश्री का कहना था ये टीवी वाले फील्ड पोजीशन सही नहीं बता पाते, इसलिए वो टीवी के साथ रेडियो कमेंट्री भी सुनते | जिसपर हमारी माताश्री का कहना होता “बिजलियो बर्बाद और बैटरी भी” | हर मैच , जो इंडिया हार जाती , उसके बाद पिताजी बताते की किसको नहीं खिलाना चाहिए था या किसने क्या गलती की और अगली बार किसको टीम से धकिया देना चाहिए | साथ ही ये भी बताते की ऐसी सिचुएशन में गावस्कर, प्रसन्ना, चंद्रशेखर आदि ने क्या किया होता | 

उस समय  इक्का दुक्का एक्सपर्ट हुआ करते थे टीवी पर | घिसी-पिटी मिमियाती आवाज़ में विश्लेषण हुआ करते थे वो भी  मैच के बाद दूरदर्शन के स्टूडियो में बैठ कर | उसके बाद कृषि दर्शन शुरू हो जाता | पता ही नहीं चलता की विश्लेषण ख़तम हुआ है की चालू है अभी भी |  दूरदर्शन के समाचारों में भी सरला माहेश्वरी, शम्मी नारंग, ग़ज़ला अमीन  और जे वी रमण हुआ करते थे |  वही न्यूज़ सुनाते और वही विश्लेषण कर देते, मामला रफा-दफा  | संसद समाचारों के चक्कर में स्पोर्ट्स की खबरें वैसे ही कम हो जाया करती | नेताओं की खेलों से दुश्मनी पुरानी रही है |

फिर ज़माना आया तड़कते-भड़कते न्यूज़ चैनल्स का | शुरुआत में तो इन्होने भी दूरदर्शन के वरिष्ठ विश्लेषकों का सहारा लिया | पर जैसे जैसे इनकी संख्या बढ़ निकली, विश्लेषक कम हो गए | लोगों ने खेल पत्रकारों को पकड़ना शुरू किया की आओ भाई विश्लेषण कर डालो | फिर और संख्या बढ़ी तो पुराने खिलाड़ी भी आ गए | जिनसे फील्डिंग के दौरान एक गेंद न पकड़ी गयी, विकेट कीपर को कीपिंग के गुर सिखाने लगे | पर अभी तक विश्लेषण , विश्लेषण ही हुआ करता था |

फिर वो चीर-फाड़ और पोसमार्टम बन गया |

धीरे-धीरे विश्लेषण में “सेंटियापा” घुसेड़ा जाने लगा | मैच शुरू होने से पहले खिलाडियों के पड़ोसियों, चाय वालों, दोस्तों आदि के इंटरव्यू आने लगे | हमारे एक्सपर्ट्स ने उसमे भी बताना शुरू कर दिया “पड़ोसियों में जिस तरह का उत्साह है उसके हिसाब से भारत ये मैच जीत जाएगा” | कुछ बाबा-टाबा भी विश्लेषक बन गए | टैरो कार्ड से मैच के स्कोर का अनुमान लगाया जाने लगा | “आज गांगुली का भाग्य साथ देगा या नहीं" इस पर चर्चा होने लगी | 

कम्पटीशन और बढ़ा तो नए एक्सपेरिमेंट शुरू हो गए |  अब वो दौर आया जब सभ्य-जनों के खेल की चीर-फाड़ सभ्य नहीं रही | तू-तू मैं- मैं शुरू हो गयी | सारे विश्लेषकों के अपने फेवरिट खिलाड़ी होने लगे , वो उनकी किसी भी कीमत पर तरफदारी पर उतर आये |

आजकल समाचारों के साथ स्टोरी दिखाने का चलन है | जिसमे खिलाडियों को “धोनी के धोकेबाज़" से लेकर “धोनी के धुरंधर" तक के तमगों से नवाज़ा जाता है | मुझे लगता है की ये पहले से बना के रख ली जाती होंगी | जीत गए तो ये बजा देंगे , हार गए तो ये बजा देंगे |

इसी तरह की कुछ रिपोर्ट्स भी तैयार रहती हैं | सचिन के सौवें शतक की तैयारी में बहुत सी रिपोर्टें तैयार थी | पर वो शतक मार ही नहीं रहे थे | उनके शतक मारते ही दनदना के ठेल दी गयीं | कुछ ने तो डाटा अपडेट ही नहीं किया | सचिन की उम्र तक पुरानी बता दी गयी |

पर मुझे लगता है की विश्लेषण अभी भी लाइव ही होते हैं |  इसी लाइव विश्लेषण के चक्कर में विश्लेषकों की मौत है | अब मान लीजिये कोई विश्लेषक स्टूडियो पहुचने के चक्कर में कल के मैच का आखिरी ओवर न देखे और स्टूडियो पहुँच कर सीधे विश्लेषण शुरू कर दे |

“मुझे समझ नहीं आता की ये धोनी हर मैच को आखिर तक क्यूँ ले जाते हैं” ये कहते हुए उन्होंने मेज़ पर हाथ पटका गुस्से से |

कान में घुसे हुए हेडफोन के द्वारा , जो घुंघराले बालों की तरह लटका हुआ था,  कंट्रोल रूम से आवाज़ आये “सर हम मैच जीत गए हैं |”

बात संभालते हुए बोले “वो तो कहिये वो खुद आउट नहीं हुए वर्ना हम मैच हार जाते | धोनी को इस बात की ज़िम्मेदारी लेनी ही पड़ेगी |”

फिर कान में आवाज़ आयी “सर धोनी ने ही जिताया है |”

लड़खड़ाते हुए बोले “पर शायद उन्हें अपनी काबिलियत पर पूरा भरोसा है, ऐसा मैच सिर्फ वो ही जिता सकते हैं , वो महान खिलाड़ी हैं, उनके जैसा कोई दूसरा नहीं हो सकता |” ( पूरे विश्लेषण में आंकडे गायब रहते हैं )

पर इन सबसे बचने का एक जुगाड़ हो सकता है | जीतने , हारने, बारिश होने  और ड्रा होने के सारे विश्लेषण मैच से पहले रिकार्ड कर लेने चाहिए | जैसा रिजल्ट हो वैसा बजा देना चाहिए | यहाँ पर ऑपरेटर्स की नौकरी बहुत इम्पोर्टेन्ट हो जायेगी | जैसा रिजल्ट वैसा विडियो बजाना होगा |

वैसे इस केस में विडियो रीयूज़ भी किये जा सकते हैं , काहे की ना आंकडे होंगे, ना मैच की फूटेज तो आराम से काम चल जायेगा | न्यूज़ चैनल वाले विडियो एक्सचेंज भी कर सकते हैं आपस में | वरायटी बनी रहेगी |

सिद्धू पा जी का अपना अलग रिकार्डिंग स्टूडियो होगा |  जहाँ वो दनादन रिकार्डिंग किये जायेंगे अपने विश्लेषण  |  रवि शास्त्री तो वैसे भी गिने चुने जुमले बोलते हैं , उनके जुमलों को अलग अलग रिकार्ड करके एडिटिंग की जा सकती है | हर्षा भोगले , शारदा उग्रा जैसों को तो वैसे भी कोई तड़क-भड़क वाला चैनल पूछता ही नहीं | उनके विडिओ क्रिक-इन्फो पर मिल ही जायेंगे |

सबसे बड़ी समस्या तब खड़ी होगी जब इस तरह एडवांस में बनाये विश्लेषण विडिओ किसी वेबसाईट पर लीक कर दिए जायेंगे और इस देश में नैतिकता के गिरते स्तर पर सारे बुद्धिजीवी फिर से विचार करने लगेंगे !!!!

पर अपन को क्या, हम तो बैठ के अगला मैच देखेंगे टीवी पर | मेरी मानिये तो आप भी यही करियेगा | और इससे पहले की खून चूसने के आरोप में हम धर लिए जाएँ और हमारा पोसमार्टम हो जाए , हम भागते हैं …

फिर मिलेंगे !!!! टाटा !!!
-- देवांशु 
(फोटू गूगल इमेज से एक बार फिर चुराया हुआ )

सोमवार, 8 जुलाई 2013

तुमि तो ठेहेरे परदेसी , साथि क्या निभावोगे…

“यार ज़िंदगी से कलर चला गया |”

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नौसिखिया दारूबाजों को दारू के अलावा दो और चीज़ों की सख्त आवश्यकता होती है : घर से दूरी और एकांत | बड़े शहरों में एकांत के बिना भी काम चल जाता है, पर छोटे शहरों में इसकी आवश्यकता ऐसी है जैसे सरकार को सीबीआई की | और अगर इन दोनो के साथ ताज़ा-ताज़ा दिल टूटा हो तो क्या कहना, सोने पर सुहागा | 

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बात तब की है जब हम कॉलेज में नए-नए शिफ्ट हुए थे, और बात-बेबात मौका निकाल कर घर जाया करते थे | महल्ले में उस समय प्यार का रोग भर भर के चढा था, हर कोई इश्क में बावरा हुआ पड़ा था | हमारे एक बचपन के दोस्त थे जो पांचवी क्लास तक हमारे साथ पढ़े थे और हमारे घर से ३ गली छोड़ कर रहते थे , नमन |


नमन

घर  का नाम : बड़कन्ने, इस्कूल का : नमन त्रिवेदी | वो अपनी हृष्ट-पुष्ट काया से सिर्फ बब्बू दादा को ही टक्कर दे सकते थे | बचपने में ही महल्ले के ही किसी जीव-वैज्ञानिक ने खबर उड़ा दी थी, “केंचुआ" आगे पीछे दोनों तरफ से एक जैसा चल सकता है और नमन का नाम भी आगे-पीछे से एक जैसा था तो महाशय का महल्ले का नाम रख दिया गया , “केंचुआ" | उनकी बाडी भी नाम को पूरा समर्थन देती थी | लचर गर्दन, जो बोलते बोलते किसी भी तरफ झुक सकती थी, जैसे थाली पर के बैंगन | मिमियाती आवाज़, बकरी को भी मत दे दे और बहती नाक, जिसके कुछ कतरे गालों के अंत तक पाए जाते थे |


पर बड़े होकर ऐसा कुछ ना रहा | हमारे बी टेक का पहला साल था, श्रीमान केंचुआ जी , बी ए - दूसरे साल में थे | अब तक उनका बाकी शरीर तो जस का तस रहा था, तोंद ने बोरे का रूप लेना शुरू कर दिया था |


हमरे शहर में एक मैनरोड है, जो एक पंचराहे से शुरू होकर रेलवे क्रोसिंग तक जाती है | वहाँ अभी तो ओवरब्रिज बन रहा है ( जिसका जिक्र फिल्म साहब बीवी और गैंगस्टर में आया है) , उस समय नहीं बन रहा था | केंचुआ अपने एक दोस्त के साथ , करीब शाम को सात बजे मैनरोड पर ही भिंटा गए | अब चूँकि वो हमारे इस्कूल के दोस्त थे तो उनका संबोधन वैसा ही रहा “अरे भईया दिवान्सू, कब आयेओ” | हमने बताया कल ही आये हैं, १ हफ्ता रुकेंगे |


उन्होंने कुछ इशारा किया अपने दोस्त को और बोले “आज बड़े सही दिन मिले हो भईया तुम, चलो आज हमरे साथ चलो” | अपनी बाइक में ट्रिपलिंग करते हुए वो हमें उठा के चल दिए | रेलवे क्रोस्सिंग से उनकी बाइक पटरी के सहारे-सहारे बाएं मुड़ ली और करीब आधे किलोमीटर दूर जाकर रुकी | सबसे पहले हम कूदे, बाद में उनके दोस्त फिर केंचुआ महाशय |


वहाँ पास में एक छोटा खँडहर था , रेलवे का ही कोई “परित्यक्त" केबिन | एकांत आ गया था | उसके अंदर “टोर्च" वाले मोबाइल का इस्तेमाल करके रोशनी की गयी | इसके बाद उनके दोस्त ने बैग से “रायल स्टैग" का खम्भा निकाल लिया , साथ में प्लास्टिक के गिलास और एक थैली  जिसमें सूखे मेवे भरे हुए थे  | पानी की बोतलें भी थीं | उस समय हम “मैं कोलेज पढ़ने आया हूँ, सिर्फ पढ़ने" के सिद्धांत का पालन करते थे तो केवल दो पेग बने | फटाफट केंचुआ और उनके दोस्त ने दो दो पेग अंदर ढकोले | इसके बाद इंट्रो शुरू हुआ |


“अरे हम तो बतैबे नहीं किये,  ई हमार दोस्त है , चिलगोजा , ससुरे की बाप की सूखे मेवा की दुकान है , यही लिए सारेक् ई नाम पड़ा" अपने दोस्त को इंट्रोड्यूस करते हुए केंचुआ महाशय बोले |
“और ई हैं हमरे दोस्त दिवान्सू, इनका पढेक बड़ी खुजली है बचपन सेने, अबहीं दिल्ली में पढ़ी रहे हैं, सार ना जाने का करिहें पढ़ी के” हमारा इंट्रोडकशन भी दे दिया गया |


अब बारी चिलगोजा जी के बोलने की थी “भईया, आप तो दिल्ली मा कालेज मा पढ़त हो , वहन तो बहुतै सही कन्यायें पढ़े आती हुइहें” | हम बस केवल मुस्किया दिए | वो आगे बढ़े  “कोई पटाय पायेओ की नाहीं" | अब बारी हमारे शर्माने की थी | एक इसी मैदान में तो चारों खाने चित्त थे हम |


“अरे ई ससुरे सीधे लरिका हैं" | तीसरे पेग के बाद आयी झुमाई के साथ केंचुआ बोले |

“पर ई सार केंचुआ, यहु नाय माना, तुम्हरे महल्ले की एक लड़की का प्रपोज़ मार दिहिस"  चिलगोजा ने हिकारत भरी नज़रों से केंचुआ को देखते हुए हमें संबोधित किया | अब ये खबर थी | महल्ले की सारी कंडीडेट लड़कियों की तस्वीरें ज़हन में घूमने लगीं , गेस करने लगे कौन होगी वो बदनसीब, हालांकि डाटा पुराना था हमारा  | अब तक केंचुआ की सुबकाई शुरू हो गयी थी | एक और पेग अंदर गया |  और बोले “यार दुई गली छोड़ के पहले  मकान वाली, मास्टर की छोटी बिटिया” |  


चिलगोजे ने बड़े ओर का ठहाका लगाया | हम फोटो याद करने में लगे थे , बहुत मेहनत से भी नहीं याद आयी |
श्रीमान केंचुआ जी अब दहाड़ मार कर रोने लगे थे | बोले : “यार ज़िंदगी से कलर चला गया |”


“तौ कलर हम लाये देइत है” ये कहते हुए चिलगोजा ने अपने बैग से एल चाइनीज़ पोर्टेबल कैसेट प्लयेर निकाला और ऑन किया | ऑन करते ही सबसे पहले , उसमे हर तरफ लाल-नीली बत्तियाँ जलीं और पलक झपकते ही खँडहर डिस्कोथेक में बदल गया |  साथ में  अल्ताफ राजा की आवाज़ गूंजी “तुम तो ठहरे परदेसी, साथ क्या निभाओगे" | अल्ताफ राजा के गानों के ज़हर की तीव्रता उनके द्वारा बीच बीच में छोड़े गए शेरों से और बढ़ जाती है | वही हुआ , मेरा केंचुआ की स्टोरी में कोई इंटरेस्ट नहीं बचा |


“यार, बहुतै मतलब वाला गाना है" केंचुआ जी ने जिव्हा खोली और हमारी तरफ देखा | हम फटाफट कट लेने वाले मोड में थे | बोले “तुम नाय समझियो" | हम चिलगोजा भाई की तरफ इशारा करके पूछे कि माजरा क्या है | उन्होंने बताया |


“इन्हैक किलास मा पढ़त है मास्टर केर बिटिया, ई गधऊ, लब-लेटर लिख दिहिन और वहिकी कापी मा रखि दिहिन | ऊ देखिस नाही, वहिकी कापी वहिकी अम्मा ठीक से लगाती रहें की इनका परचा गिरि परा |”

केंचुआ ने गम-गलत करने के मकसद से एक पेग और अंदर किया और कराहे “हाए"|


“अम्मा तो ब्लैक लेटर बफैलो हैं, चिट्ठी पढ़े वहिके बड़े भईया  | पहले तो वहे सुजाय दी गयीं | फिर जब पता चला उधर से कुछ नाय है तब ई पकरे गए |”


“अबे तो कैसे पता चला कि लेटर इन्होने लिखा है” हमने समझने की कोशिश की | केंचुआ की एक और आह निकली | चिलगोजा आगे बढ़े |


“इ ससुर लेटर के आखिरी मा हिन्दी के बिद्वान बनी गए रहे लिखी दिहिन , तुम्हें नमन करता है तुम्हारा नमन | वहिके बाद इनकी पहिले हुई ढंुढाइ , फिर हुई धुनाई |


अल्ताफ राजा कोई एक शेर पढके आगे बढ़े | केंचुआ का रोना अब थम गया था बोले “ऊ शुकला मास्टर , वहू शाम का चठिया लगाये ब्रह्मा-विष्नू कर रहा रहे , मारे वाले ५-७ और बढ़ी गए | और तो और पापाओ का बताय दिहिस | वहो मारिन |”


इस बीच खम्बा खतम हो चुका था | मामला समिट रहा था | हमने घावों को कुरेदते हुए पता किया “ फिर कन्या ने जवाब दिया?” | केंचुआ तमतमा गए बोले “अगलिहे दिन से वहिके दोनों भाई ऊका कालेज ले-छोड़े आये लगे, अभी उसका जवाब आना बाकी है” |


माहौल में दर्द बढ़ गया था | हमने बोला इस हालत में घर कैसे जाओगे | तो पता चला चिलगोजे के घर में सब लोग बाहर गए हैं , केंचुआ आज उसी के यहाँ रुकेंगे, अकेले चिलगोजे को डर ना लगे कहीं | हमने चिलगोजे का मुआयना किया और पाया कि इससे वीभत्स प्राणी मैंने शायद ही कहीं देखा हैं, इसे किस्से डर लगेगा | खैर हमने दोनों को उनके घर छोड़ा और वापस अपने घर की ओर चल दिए | पीछे से उन दोनों के रेंकने की आवाज़ आ रही थी …

तुमि तो ठेहेरे परदेसी , साथि क्या निभावोगे…
(हालांकि मास्टर और उनका पूरा खानदान, कम से कम पिछले ३० साल से महल्ले में रह रहा था )

#जाके पैर ना फटी बिवाई, सो का जाने पीर पराई |

-- देवांशु

शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

ज़िन्दगी की एक शाम और मुक़र्रर मौत का इंतज़ार


कभी हुआ है यूँ , की बस पता हो की फलाने दिन , फलाने वक़्त पर मौत मुक़र्रर है |  और मौत भी कोई ऐसी नहीं, जिस्म  ख़त्म होना तो दूर की बात है, एक खरोंच भी नहीं आनी है | और उस मौत के बाद जिंदा रहने के लिए अगर कुछ मारना है तो खुद की रूह को |
एक बड़े दार्शनिक की तरह हर आने वाले दिन को ख़ुशी-ख़ुशी जीते चलो पर मुकर्रर दिन ठीक एक दिन पहले की रात को एक कंपकंपी उठे, दिल ज़ोरों से धड़कने लगे , आँखों के सामने अँधेरा छा जाए | ज़िंदगी के नूर की एक-एक बूँद के लिए प्यास बढ़ने लगे |
और फिर एक आस,  की कुछ वक़्त को ही सही, वो नूर दिखेगा तुम्हे कल | तृप्त कर लेना अपनी आत्मा को, आँखों में बसा लेना उस नूर को और लौट जाना | कुछ पलों के लिए ही सही, मौत का दर्द कम होता लगे |  गिने-चुने लम्हों के लिए नींद अपनी बाहों में सुला ले |
जब आँख खुले तो सबसे पहले वो  आस टूट जाए | और फिर पता चले की इस आखिरी दिन भी मोक्ष मिलना मुमकिन नहीं | साँसे भारी हो जाएं | इसके बाद बची ज़िन्दगी भी क्या ख़ाक ज़िन्दगी है ??
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बाहर आसमान में पिछले कई दिनों से बादल लटके हैं,  ना उड़ जा रहे हैं , ना बरस रहे हैं | शाम का वक़्त है | ऑफिस की खिड़की से बाहर उन्ही बादलों को देख रहा हूँ |  सामने सड़क है | दौडती गाड़ियाँ ना जाने किस मकाम को जाना चाहती हैं |

ज़िन्दगी की सबसे मुश्किल शाम है ये , मुक़र्रर वक़्त में कुछ आधे घंटे से भी कम का वक़्त रह गया है |  सोच रहा हूँ क्या करूँ ? मन करता है की सारे दरवाज़े तोड़ दूं, और आज़ाद कर दूं इस रूह को | पर कायर हूँ , ये नहीं कर सकता |  या रोक लूं उस नूर को आँखों से ओझल होने से , पर वो अब नहीं हो सकता , इसे मजबूरी कहूं या एक बार फिर खुद को कायर , ज्यादा फर्क नहीं है दोनों में ही |
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कल दोस्त ने सेलिन डियोन का ये गाना सुनने को बोला था , सुबह से लगातार सुने जा रहा हूँ…

When life is empty with no tomorrow
And loneliness starts to call
Baby, don't worry, forget your sorrow
'Cause love's gonna conquer it all, all

When you want it the most there's no easy way out
When you're ready to go and your heart's left in doubt
Don't give up on your faith
Love comes to those who believe it
And that's the way it is

-- देवांशु

शुक्रवार, 28 जून 2013

च से बन्नच और छ से पिच्चकल्ली

“मम्मी ये दादा को कुछ नहीं आता, सब गलत पढ़े बैठा है”
हमारे छोटे भ्राता श्री ने मम्मी को मेरी पढ़ाई के बारे में फीडबैक दे मारा |

छोटे भ्राता श्री
नाम : प्रतीक ( इस्कूल ), बब्बू ( घर ) | महल्ले में ये बचपन से कई नामों से जाने गए | सबसे पहले अपनी चुस्त-मांस रहित काया के लिए “पिद्दी" , फिर “बाबा बंटूनी” | बचपन से जितना इनकी हिन्दी वोकैब तंग थी, उतना ज्यादा लिखने का शौक था इन्हें | सबसे पहले डायरी ही लिखना शुरू किया इन्होने , इसके बारे में बाद में बताते हैं |

पहले अक्षर ज्ञान, तो बात ये रही की हम जाना शुरू कर दिए इस्कूल, ये साहब अभी घर में रहते थे | “हमहू बड़े हुई जाई, गाड़ी बिक्की से इस्कूल जाई” | ये उनके कुछ उदगार थे जिसमे इनके ज्ञान-पिपासु होने का संकेत सबसे पहले हमारे माताश्री और पिताश्री को मिला | इन्हें बोला गया कि दादा पढ़ता है, उसी कि किताब से तब तक पढ़ डालो , फिर जाना इस्कूल | इन्होने शब्द ज्ञान आरम्भ किया |

“च" से “बन्नच"
“छ" से “पिचकल्ली”
“ट" से “मिनाटर”

तो जब हमने इनको कहा कि तुम गलत पढ़ रहे हो तो इनका फीडबैक था शुरुआत में लिखा सेंटेंस , एक तुर्रे के साथ “ मम्मी ये दादा को कुछ नहीं आता, सब गलत पढ़े बैठा है, च से चम्मच कहता है, बन्नच नहीं कहता है”|

इससे कुछ दिनों पहले ही हम इनको सिखाए थे “बब्बू पता है कौन चे इच्कूल में पलते हैं , थल थथी थिथू मंदिल |”

खैर ये सब तो भाषा ज्ञान की शुरुआत थी  | धीरे-धीरे इनका शब्दों का पिटारा बढ़ निकला | जब ये स्कूल जाने लगे तो एक दिन पापा जी ने श्रुतलेख (इमला) लिखवाया | शब्द बोले गए “दुर्योधन" और “चंद्रमा"  | इन्होने लिखे “दउधन” और “चंडमा" | सूते गए |

फिर जब धीरे धीरे इनका ज्ञान और बढ़ा और एक दिन मम्मी टीवी पर कुछ इंग्लिश में लिखा पढ़ रही थी तो इनके मन में एक जिज्ञासा उठी और पूछ बैठे “मम्मी का आपौ पढ़ी-लिखी हो ??” | सूते गए |

पापा कभी-कभी इन्हें घुमाने नहीं ले जाते थे | एक दिन इन्होने अपना दर्द डायरी के हवाले किया :
“दादा रोज हर बार डगदर बाबू के यहाँ जाता है, हमको कभी नही जाने देता है |”
उसी पन्ने में नीचे इंग्लिश टू हिन्दी ट्रांसलेशन भी था |
“सर कमिनसर"
“मैं अचर जी से पुछता हू की मैं अनदर आ सकता हू |” ( यहाँ अचर जी से तात्पर्य आचार्य जी से है )

कुछ दिनों पहले इस डायरी को ढूँढने की कवायद की गयी | डायरी तो मिल गयी, पर ये पन्ना गायब था |

खैर मुद्दा ये नहीं है | मुद्दा ये है कि इनको हमारी दादी जी से कुछ ज्यादा लगाव था | “हमहू बड़े हुई जाई , दादी का बलब लिए  जाई और पान खाय के आई” | यहाँ से इनके “गुलकंड” वाले पान के प्रति असीम लगन का पता भी चला, जनता-जनार्दन को |

फिर एक दिन ये हुआ कि इनसे दादी की रसोई की चाय की पत्ती बिखर गयी | इनको लगा कि ये फिर सूते गए | ये घर से निकल लिए कि माहौल ठंडा हो जाए , फिर वापस आते हैं | काफी देर तक ये नहीं आये वापस तो माताश्री घर के बाहर ढूँढने गयीं | “पच्चासा" उस टाइम का सबसे क्रेज वाला गेम हुआ करता था | मम्मी को लगा कि ये वही खेल रहे होंगे | आवाज़ लगाई गयी | साहब का कोई अता पता नहीं |

महल्ले की एक खासियत है यहाँ हर टाइम कोई ना कोई घूमता टहलता मिल जाता है | गुड्डू उर्फ टोका मास्टर वहीँ घूम रहे थे | बोले “का बात भाभी, कहिका ढूंढ रही हउ” | “बब्बू पता नहीं कहाँ निकल गए हैं , आवाज़ लगा रहे, आ ही नहीं रहे |” शक गया कि दूसरे वाले गुड्डू और मोनू के साथ होंगे  | गुड्डू (दूसरे वाले)  के घर में ताला लगा था , मोनू भी घर पर नहीं थे | इस बीच राजाराम ज्ञान लेकर आ गए “यार गुड्डू  अबहीं एक सार बाबा आवा रहे, भीक मांगे वाला” | इसको सुनते ही मम्मी की हालत खराब |  युद्ध स्तर पर सर्च शुरू हुई | अब तक महल्ले के कुछ १५-२० लोग इकठ्ठा हो चुके थे | हर तरफ “बाबा बंटूनी”, “पिद्दी", “बब्बू" की आवाजें लग रही थीं |  आधा घंटा बीत गया , बब्बू दादा कि कोई खबर नहीं |

मम्मी ने कहा कि “तुम लोग यहाँ ढूंढो,  हम पुलिस में रिपोर्ट लिखा के आते हैं” | बब्बू दादा का एक खूबसूरत सा फोटो भी ढूंढ लिया गया |

इस बीच ढूँढने वालों में "दूसरे वाले गुड्डू" की अम्मा भी शामिल हो गयीं | वो किसी के यहाँ बर्तन धोने जा रहीं थीं , रास्ते में गाय ने धक्का दे दिया था तो कीचड़ में गिर गयीं थीं, अपनी धोती बदलने आयीं थी | वो उसी हालत में बब्बू दादा-सर्च अभियान में लग गयीं | इसी दौरान ये बात भी आयी की जब वो घर से निकल रही थीं तो बब्बू दादा उनसे कुछ बात कर रहे थे | अब तक मम्मी तैयार हो गयी थीं पुलिस स्टेशन रिपोर्ट लिखवाने जाने के लिए | गुड्डू की अम्मा बोली “ भाभी हमहू चलित है तनी धोती बदल लेई” |

और जैसे ही उन्होंने घर का दरवाज़ा खोला | एक आवाज़ उठी “अरे बंटूनी तो हियाँ बैठे” | बब्बू दादा उन्ही के घर में बंद हो गए थे |

सबसे पहले तो बब्बू दादा को मम्मी-दादी ने गले लगाया,  नहलाया-धुलाया ( साहब ज़मीन पर लेटे पाए गए थे ) | फिर सूते गए|  हर कोई बधाई देने आने लगा : “बंटूनी मिली गए" |

बाबा बंटूनी का एक संक्षिप्त साक्षात्कार लिया गया जिसमे उन्होंने चाय की पत्ती फ़ैलाने की बात स्वीकारी | उन्होंने ये भी बताया कि जब सब लोग आवाज़ लगा रहे थे तो वो दरवाज़ों के बीच से सब देख रहे थे | कुछ लोगो ने घर के अंदर आवाज़ भी लगाई, पर ये मारे डर के बोले नहीं कि कहीं बाहर निकाल के इन्हें और ना मारा जाए |

इस घटना के बाद से दो बातें हुईं, पहली तो बब्बू दादा महल्ले में और फेमस हो गए, हर कोई इन्हें जानने लगा, एक स्टार वाला रूतबा | दूसरा हम लोगो का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया क्यूंकि घर का वही दरवाज़ा खुला रहता जिसपे या तो दादी का पहरा होता या माता श्री की पैनी निगाह |
उस दिन शाम को जब पापा ऑफिस से घर आये थे तो ये बात खुद बब्बू दादा ने डरते डरते पापा को बताई थी | “पापा आद अम को गए ते” | फिर ये अच्छे से सूते गए |
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-- देवांशु