बुधवार, 10 अप्रैल 2013

मुझे आपकी फिर से ज़रूरत है पापा !!!

आपको गए हुए कुछ एक साल गुजर गया है पापा | सही बताऊँ तो एक एक दिन बड़ी मुश्किल से बीता है | कभी कभी लगा कि काश वक्त  के पर होते  क्यूंकि काफी सारे लम्हे बहुत परेशान करके गुजर रहे थे | पिछले एक साल में इतना कुछ बदल गया | ना जाने कहाँ से कहाँ आ गए हम सब | कई ऐसे लम्हे आये जब हम सबने आपको बहुत मिस किया | बहुत ज्यादा |

दर-असल ज़िंदगी किसी की भी हो, पूरी तरह से उसकी अपनी नहीं होती | जिंदगी के कई हिस्से होते हैं और वो अलग-अलग लोगो के होते हैं | आप हम सभी कि ज़िंदगी का अहम हिस्सा हमेशा रहोगे जैसे हम आपकी ज़िंदगी के हिस्से थे | आपको खोने के साथ खोने का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ जो ना जाने कहाँ जाकर रुके , पापा |

कभी-कभी सोचता हूँ कि शायद मैं दुनिया के कुछ ऐसे लड़कों में होऊंगा जो अपने पापा जैसा नहीं बनना चाहते | आप मेरे आइडियल भी नहीं थे | और इसका एक ये भी कारण है कि आपने कभी ऐसा नहीं चाहा | आप हमेशा हमें किसी और की तरह बनाने की कोशिश करते रहे | और हम किसी और में अपने आइडियल ढूंढते रहे |  पर ज़िंदगी में जब भी सबसे ज्यादा उदास हुआ , मैंने हमेशा आपको अपने पास पाया था | प्री-फ़ाइनल इयर में जब मेरी बैक आयी थी तो कॉलेज की हट पर फूट-फूट के रो रहा था | सबसे बात की पर रोना थमा तो आप से बातकर के | जब आपने कहा था “अबे फर्स्ट डिविज़न तो आ ही जाओगे, हम तो सेकंड के ऊपर कभी ना बढ़े” | अक्सर ये भी सोचता हूँ कि मुश्किल से मुश्किल बातों को हल्के से लेने की हिम्मत भी मुझे आप ही से आयी है |

पापा, आप कोई अन्ना हजारे नहीं थे | पर करप्शन को हैंडल करने का आपका अंदाज़ मुझे हमेशा इम्प्रेस करेगा | अपनी नौकरी के पहले ही दिन एक आदमी ने आपको २ रूपये रिश्वत देने की कोशिश की थी | आपने लेने से माना कर दिया | उस आदमी का काम नहीं हुआ | उसने कंप्लेंट कर दी कि कम रुपये दे रहे थे तो मेरा काम नहीं किया | उस दिन आपके साहब ने आपको समझाया था कि काम भले ही किसी का हो रुपये जो दे लेते चलो वरना, ऐसे ही कम्प्लेंट खाओगे | ये वो सरकारी दफ्तर है जहाँ पेशकार तक फाइल बढ़ाने के लिए उसपर “महात्मा गांधी" को रखना पड़ता है | और उसका हिस्सा ऊपर तक जाता है | आपने एक नयी स्टाइल निकाल दी | “जितनी रिश्वत लूँगा सारी मैं रखूंगा , किसी और को एक पैसा नहीं दूंगा| जब गाली मेरी तो पैसा भी मेरा |” शायद ही कोई ऑफिसर रहा होगा जो आपसे खुश होगा | अपने पूरे करियर का एक बड़ा हिस्सा आपने पूछ-ताछ कार्यालय में इसीलिए बिता दिया क्यूंकि वहाँ कोई स्कोप नहीं दिखता था किसी को  |  आप की अहमियत क्या थी ये आपके जाने के बाद आपके ऑफिस वालों को पता चल रही है | कितनो के एरियर्स अभी भी लटके हुए हैं | अक्सर जाता हूँ आपके ऑफिस , वहीं पर लोग बताते हैं | आप जिस सीट पर थे वहाँ पर बैठकर कितनो की पेंशन बंधने में आपने मदद की | उसी सीट पर विराजमान महाशय को मैं हजारों रूपए की “रिश्वत" दे चुका हूँ जिससे मम्मी की पेंशन चाहे कुछ टाइम बाद बंधे पर उन्हें दौड़ना ना पड़े | पर ऐसा पूरी तरह से हो भी नहीं रहा | हम सबकी पढ़ाई के लिए आपने जो मेहनत की वो हम सबसे छुपी नहीं है | रात-रात भर आप काम करते थे | कितने ही लोग अपने “नक़्शे" आप से बनवा के ले जाते थे | कईयों ने कहा है कि ना जाने कैसे होगा अब काम | पर ये वही ऑफिस है जहाँ के लोगो ने आपका २ साल पहले जबरदस्ती पड़ोस के एक गाँव में ट्रान्सफर कर दिया था | उसी दौड़ से आपकी हेल्थ बिगड़ी और फिर बिगड़ती ही गयी | मैंने आपसे कहा भी था कि ट्रान्सफर रुकवाने के लिए जो भी मांग रहे हों दे दो, पर आप नहीं माने थे |आप शायद पूरी तरह से ईमानदार भले नहीं थे, पर दूसरों की बेईमानी आप पर कभी हावी नहीं हो पायी |

कुछ “महा पोंगा” ज्योतिषियों ने कहा है कि मेरे और मेरे भाई की “कुंडली” में कुछ ऐसा है कि हमें पितृ-शोक होगा और इस वज़ह से आप नहीं रहे | इन “कमीने"  ज्योत्षियों को काश मैं खुले आम मार सकता | पहली बात तो मैं इन सबपे विश्वास नहीं करता | और अगर ये सब सही भी है तो आपकी अहमियत हम दोनों के लिए और बढ़ जाती है कि आपने पैदा होते ही हमें मार नहीं दिया | खुद भले ही नहीं रहे पर हमें जीने दिया |  वैसे आप इनसब पर बहुत विश्वास करते थे | घर आये एक ऐसे ही कैरेक्टर ने आपकी उम्र की भविष्यवाणी की थी ८३ साल | पर आप तो ५८ साल ही जिए | पिछले कई बार से उसे ढूंढ रहा हूँ लखीमपुर में , पूरे २५ साल का हिसाब मांगना है कमीने से |

पापा आपको जाते-जाते भी नहीं देख पाया | आखिरी बार आपको लखीमपुर के रेलवे स्टेशन पर देखा था , आप मुझे छोड़ने आये थे | तब लगता था कि आपसे फिर मिलूँगा |मैंने आपको कई बार बीमार पड़ते देखा और आप हमेशा ठीक होकर बाहर आ गए | इस बार भी लग रहा था कि आप ठीक हो जाओगे | पर शायद ये होना तय था | आपको आखिरी वक्त ना देख पाने का दुःख मुझे हमेशा रहेगा |

एक बात और है जो आपको कभी नहीं बता पाऊंगा  | आपके जाने के कुछ घंटों बाद मैं न्यूयार्क एअरपोर्ट पर अपनी फ्लाईट का वेट कर रहा था | मैं अकेला था वहाँ | पर एक आवाज़ थी मेरे साथ | उसको मैंने पहले कभी देखा नहीं था | उसने मुझे बाँध कर रखा था वरना टूट कर बिखर गया होता | उस आवाज़ की रोशनी धुंधली हो रही है पापा |  मुझे आपकी फिर से ज़रूरत है पापा उसको बचा के रखने के लिए| कहीं से आ जाओ ना पापा !!!!

अपने जाने के बाद आप बहुत सारी जिम्मेदारियां छोड़कर गए हो | पता नहीं उनमे से कितनी पूरी कर पाऊंगा | पर कोशिश करूँगा जितनी भी निभा पाऊँ, ढंग से निभाऊं | कहते हैं ऊपर हर कोई मिलता है एक दूसरे से | कोशिश करूँगा जब आप से मिलूँ तो आपसे नज़रें मिला सकूं और कह सकूं कि देखिये आपके जाने के बाद भी मैंने कुछ बिगड़ने नहीं दिया , सब संभाल लिया मैंने |  बस जहाँ भी हो मुझे हेल्प करते रहना पापा |

I miss you a lot Papa!!!!
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“You think the dead we have loved ever truly leave us? You think that we don’t recall them more clearly than ever in times of great trouble? Your father is alive in you , Harry, and shows himself most plainly when you have need of him” – J.K. Rowling in “Harry Potter and the Prisoner of Azkaban”

मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

बाइक की सवारी, गाँव घुम्मकड़ी और बाबा गुप्तिनाथ के दर्शन !!!

पिछले दिनों घर जाना हुआ | एक शाम पंकज के पापा घर पर मिलने आये | उनसे बात करते करते पता चला कि अगले दिन वो अपने गाँव जाने का प्रोग्राम बना चुके हैं | पंकज और हमारा गाँव भी एक ही है |  हमने भी जाने का प्रोग्राम बना लिया | भाई को भी तैयार कर लिए |

अगले दिन का पहला टास्क था, बाइक की सफाई | पापा के जाने के बाद से वो कमरे में पड़ी धूल खाती रहती है | झाड़-पोंछ के रेडी की गयी | काम भर का पेट्रोल भी डाला गया जिससे पेट्रोल पम्प तक पहुंचा जा सके | फिर बाइक के कागज़ ढूंढें गए जिससे कोई लफड़ा-लोचा हो तो निपटा जा सके | आजकल गुस्सा काफी आने लगा है सो एक दो बार चिल्लाये भी सबपर कि कोई भी सामान ठीक से नहीं रखता है | स्टेटमेंट की रेंज में हम भी आते थे तो सबने सारी जिम्मेदारी हमपर भी डाली और हमारा गुस्सा अपने आप शांत हो गया |

DSC_0889फिर हेलमेट पहन के एक दम तैनात हो गए | छोटे भाई ने पीछे की सीट का कार्यभार संभाल लिया | घर से निकलते ही फोटू खिचवाये | हेलमेट पहनकर और बाइक पर बैठकर | उसके बाद आगे बढे |

जब यात्रा शुरू हुई तो पहला पड़ाव था , पेट्रोल पम्प | जाकर पेट्रोल भरवाया गया | थोड़ी दूर गाड़ी चली तो “कड़-कड़" की आवाज़ के साथ बंद हो गयी | तब पता चला कि इंजन-आयल भी खतम हो गया है | अगले पेट्रोल पम्प तक कोई तरह पहुंचे फिर इंजन-आयल भी डलवाया | फिर थोड़ी बहुत परेशानी देते हुए चलती ही रही बाइक |

मेरा शहर , उत्तर-प्रदेश के तराई एरिया में आता है , जिसे गांजर भी कहते हैं | इसका कारण वो तमाम छोटी-छोटी नदियाँ हैं, जो वहाँ पर जाल की तरह फैली हुई हैं | दो मुख्य नदियाँ घाघरा और शारदा हैं |साथ में गोमती और सरयू नदी भी हैं |  घाघरा नेपाल से बह कर आती है | शारदा नदी का उद्गम पूर्णागिरी की पहाड़ियों में हैं | उस अंचल में पूर्णागिरी माता की महत्ता वैष्णों देवी जैसी ही है | बचपन में एक बार वहाँ भी जाने का मौका मिला है | बड़ी अच्छी जगह है | घाघरा नदी का बहाव बहुत तेज है और शारदा नदी से वो थोड़ा ऊँचाई पर बहती है | लखीमपुर के बाहर निकलने के थोड़ी दूर पर ही ( शायद बहराइच जिले में) ये दोनों नदियाँ मिल जाती हैं | इस वजह से घाघरा का ढलान वाला बहाव है और वो बहुत तबाही मचाती है | तबाही मचाने के मामले में शारदा नदी घाघरा से भी आगे है | छोटे भाई ने बताया कि उत्तर-प्रदेश में शारदा नदी सबसे ज्यादा तबाही मचाती है | लखीमपुर जिला इसकी बहुत मार झेलता है | शारदा  की कई सहायक नदियाँ भी है जिसमे कंडवा और उल्ल नदी प्रमुख हैं | इन नदियों के बारे में ज्यादा कुछ मिलता नहीं | उल्ल नदी का एक घाट मेरे घर से १ किमी की दूरी पर ही है |


इन्ही नदियों के पास कई सारे छोटे-बड़े मंदिर भी हैं | जिसमे से एक “लिलौटीनाथ” बहुत प्रसिद्द हैं | ये उल्ल नदी के तट पर बना है | एक किवदंती के अनुसार अमर योद्धा “आल्हा" और “ऊदल" आजकल इसी क्षेत्र में रहते हैं , छुपकर | बरसात के मौसम में यहाँ आल्हा भी गाया जाता है | आल्हा “जगनिक" के द्वारा लिखा गया एक आदिकालीन काव्य “आल्ह-खंड" के हिस्से हैं | यहाँ इसे ढोलक की थाप पर गया जाता है |  एक हिस्सा जो मुझे याद है :

जाकर बिटिया क्यारही देखीं, ताघर जाय धरें तलवार | औ नौ मन सेंदुर गर्दा ह्वैगा, तब चुटकी भर चढा लिलार |

संगीत की जानकारी बहुत तो नहीं है पर फिल्म “मंगल पांडे” का गीत “मंगल-मंगल"  की धुन भी कुछ-कुछ इसी तरह की लगती है मुझे | बचपन में एक कहानी ये भी सुनी थी कि लिलौटीनाथ के दर्शन किसी भी समय करने जाओ,  वहाँ पर हमेशा ताज़े फूल ही चढ़े मिलते हैं | पर इस तरह कि किवदंतियां लगभग हर जगह से सुनने को मिलती  हैं |


पंकज के पापा भी शारदा नदी के किनारे बने एक मंदिर बाबा गुप्तिनाथ के यहाँ यज्ञ में जा रहे थे | “गुप्तिनाथ"  शंकर जी हैं और एक पीपल के पेड़ की जड़ में निवास करते हैं | गुप्त तरीके से | इसीलिए उनका ये नाम है | एक केले के पेड़ की नाली बनाकर बाबा पर जल चढ़ाया जाता है | आसपास के लोगो में इनकी काफी महत्ता है | मंदिर तो हालांकि काफी पुराना है पर उसकी एक इंटरेस्टिंग बात वहाँ के कुछ लोगो ने हमें बताई:
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दो साल पहले शारदा में बहुत भयंकर बाढ़ आयी थी | कई गाँव बह गए थे | बढ़ते बढ़ते नदी मंदिर की तरफ भी आ गयी थी | मंदिर के पास एक दुमंजिला धर्मशाला भी बना हुआ था | नदी का पानी उसके चारों ओर भर गया और वो ज़मीन के अंदर धंस गयी | उसका कोइ नाम-ओ-निशान नहीं दिखता वहाँ पर | पर नदी जब मंदिर की ओर बढ़ी तो बस मंदिर को छू कर वापस लौट गयी |  मानो बाबा के पैर छूने आई हो और वापस लौट गयी हो |तबसे मंदिर की बहुत महत्ता बढ़ गयी |

DSC_0898किसी की धार्मिक भावना को ठेस न पहुचाते हुए और किसी भगवान का अनादर ना करते हुए , एरिया के आस-पास देखने से मुझे ऐसा लगा कि नदी के पानी के वापस लौटने का एक कारण उस पीपल के पेड़ की जड़ें भी रही होंगी जिसकी वजह से ज़मीन का कटान रुक गया होगा |  भगवान के साथ-साथ पीपल की पूजा भी की ही जाती है |आजकल नदी में पानी कम है | करीब डेढ़ किमी पीछे खिसक गयी है | उसकी एक छोटी सी धारा वहाँ से बहती है आजकल , इसे वहाँ “सुतिया" बोलते हैं | वहीँ चाय-नाश्ता किया गया | बाद में भंडारा हुआ तो खाना भी खाया | मंदिर की, पेड़ की , पत्तियों की फोटू भी ली | सुतिया की भी फोटो ली गयी थोड़ी दूर से |

मंदिर पर लोग मन्नतें माँगते हैं | पूरी हो जाने पर घंटी बाँध जाते हैं | हमने भी कुछ मांग लिया | बताएँगे नहीं अभी की क्या माँगा , क्यूंकि ऐसा करने से माना किया जाता है | पूरी हो गयी तो घंटी बांधने जायेंगे तो इस पोस्ट का पार्ट-२ लिखा जायेगा | Smile Smile 

उसके बाद हम अपने गाँव की ओर चल दिए |

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हमारा गाँव शारदा नदी के किनारे बसा हुआ है | काफी समय तक तो ज़मीन नदी के अंदर ही थी | कुछ सालों पहले नदी ने दिशा बदली तो ज़मीन बाहर आयी है | तब से खेती होती है | मुख्य रूप से गन्ना ( शुगर-केन) और गेंहू की खेती होती है | हमारे खेत में गन्ना बोया गया था , जो काटा जा चुका है | मिल को भेजा जा चुका है | मिल मालिकों ने अभी भुगतान नहीं किया है | पड़ोस के खेत में गेंहू बोया गया है | खेत गाँव से कुछ २ किमी की दूरी पर था | रास्ता बालू से भरा हुआ था | सुतिया भी पड़ती है | तो हमें खेत ले गए पापा के दोस्त “देशराज" , अपनी बाइक पर | हम तो अपनी से ना जा पाते |  पता नहीं इतने एक जैसे दिखते खेतों के बीच वो अपने खेत को कैसे पहचान पाये |  पड़ोस के खेत से एक गेंहू की बाली तोड़ी और हाथ पर रगड़ कर उससे गेंहू के दाने निकाले | दाने बहुत पतले थे | वो सूखकर और पतले हो जायेंगे | इस प्रकार इस बार इस बार गेंहू की फसल के अच्छा ना होने की बात भी बताई उन्होंने |
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गन्ने का एक पेड़ दो बार फसल देता है | दूसरी बार फसल काटने के बाद खेतों में आग लगा दी जाती है , फिर एक साल के लिए खेत बेकार हो जाता है |  गन्ने के पौधों को पानी भी बहुत चाहिए होता है | १० दिन में पानी लगाना होता है | घंटों लग जाते हैं पानी देने में | पर ज़रा सी लापरवाही से हुई पानी लगाने में देरी पूरी फसल चौपट कर देती है | पिछले साल गर्मी बहुत पड़ी थी | करीब ७-१० बार पानी लगाना पड़ा था किसानों को अपने खेतों में |


ये सब पता कर हम अपने गाँव वापस आ गए | तब तक पंकज के पापा भी गाँव के कई लोगो से मिलकर वापस आ गए थे | दोपहर के ढाई बज रहे थे | ५ बजे हमारी भी ट्रेन थी तो फटाफट वहाँ से निकला गया | एक घंटे के अंदर घर भी वापस पहुँच गए | रास्ते में पेड़ों की छाँव ने गर्मी से हमें बचाए रखा |  कुछ और फोटो नीचे हैं :

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इस फोटो में वही सुतिया है | अपने टाइम पर तो ना जाने कितनो को बहा ले जाती है | आजकल औकात थोड़ी कम है | इसे बाइक से  या पैदल भी पार किया जा सकता है | ये दूसरी फोटो में छोटे भाई साहब हेलमेट के साथ फोटो खिचवा रहे हैं | पीछे है नदी का वो हिस्सा जिसने दो साल पहले तबाही मचाई थी |  और भी कई फोटो लिए गए | घर पहुँच के पता चला कि ना तो हमने अपना कोई फोटो लिया रस्ते में लिया और ना ही अंकल ( पंकज के पापा) का | कुछ और भी चीज़ें पार्ट-२ के लिए छोड़ देते हैं | Smile Smile 
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तो बस ऐसे ही बीत गयी ये फटाफट वाली यात्रा , फिर गए तो फिर बताएँगे | तब तक खुश रहिये आबाद रहिये , चाहे गुडगाँव रहिये या इलाहाबाद रहिये !!!! ( ये लास्ट वाली लाइन पंकज के लिए ) Smile Smile 

नमस्ते !!!!!
--देवांशु