शुक्रवार, 3 मई 2013

…वापस बेंगलुरू की ओर…

बेंगलुरू (बंगलोर) जाने का प्रोग्राम तो पिछले साल करीब नवम्बर से बन रहा था, जब हमारे एक फ्रेंड ने चैलेंजिया दिया था “वहाँ जाकर दिखाओ, तो जाने” | पर फिर दिल्ली का मौसम सुहाना हो गया | बोले तो प्लीजेंट | तो कभी जाने का ना तो मन किया ना, ज़रूरत हुई |अब पिछले दिनों मौसम गर्म हो गया दिल्ली का | तो लगा कि चलते ही हैं बेंगलुरू | मौसम भी ठंडा होगा वहाँ | और शायद हमारे ज़हर-कहर से दिल्ली भी बच जाए Smile Smile |

 

पुणे ऑफिस के एक सीनियर को भी बोला कि आप भी आ जाओ | वो भी रेडी हो गए | अपने खर्चे पर ही सही एक ऑफिसियल ट्रिप की तैयारी हो गयी | इस बीच आइडिया ये भी आया दिमाग में कि जिन कामों के लिए गुड़गांव या दिल्ली आये थे , उसमे से ज्यादातर या तो निपट गए या फिर आगे कुछ करने/होने का स्कोपिच नहीं रहा , तो क्यूँ ना वापस अपनी बेस-लोकेशन बेंगलुरू ही निकल लिया जाए | मेरे मैनेजर भी कई बार बोल चुके हैं कि आ जाओ यहाँ | तो परमानेंट ट्रांसफर का भी सोचने लगे | फिर ये हुआ कि यहाँ आओ तब डिसाइड करेंगे |

 

इतने सारे कन्फ्यूजन के बीच, टिकट हम बुक करा लिए | पर पुणे वाले सीनियर का प्रोग्राम कैंसल हो गया | उनकी बेटी की तबियत खराब हो गयी | और ट्रिप में जितना कुछ ऑफिसियल था वो कट्टम-कट हो गया | फिर भी फिसल गए तो हर गंगा करते हुए चल ही दिए एक शुक्रवार, बेंगलुरू के लिए |

 

दिल्ली एअरपोर्ट पर सिक्यूरिटी चेक-इन पर ऑफिसर ने बोला कि आपके बैग में कैंची है ( जैसे आपके टूथपेस्ट में नमक है ) | हमने पूरा बैग छान मारा कहीं कैंची नहीं | शेविंग-किट में एक कैंची होती थी , उसे घर पर निकाल दिए थे | ऑफिसर ने हमारे बैग के स्कैन का फोटू फिर देखा और बोला शेविंग किट में ही है | किट-बैग की बाहर की पॉकेट में एक कैंची थी , जो बैग के साथ फ्री मिली थी शायद, मिलते ही बिछड़ गयी | ( किट-बैग हमने पिछले साल जून में खरीदा था)

 

आगे बिना किसी लफड़े लोचे के बेंगलुरू में लैंड कर गए | अपने पुराने सखा सुशांत को पहले ही फोन कर दिए थे कि आ रहे हैं | वो उस दिन जल्दी घर आ गए थे | उन्होंने बस की डिटेल बताई | हम चल दिए बस स्टैंड की ओर | हमारे आगे CISF के दो जवान दम्बूक लिए जा रहे थे | हमने एक को क्रोस किया, जल्दी में | दूसरे को क्रोस करने लगे तो पहले ने पीछे खींच लिया | तब ध्यान में आया कि हमने तो ध्यान ही नहीं दिया | हम अपन में इतना खोये हुए थे कि किसी नेता जी की सिक्यूरिटी में घुस गए थे | वो तो कहो धुने और सूते नहीं गए | बच गए |

 

बस से चल दिए मैजेस्टिक बस स्टैंड की ओर | बेंगलुरू का नया एअरपोर्ट शहर से बहुत दूर है | रस्ते में दोनों ओर पहाड़ी दिखाई देती हैं | पिछले कई सालों से अक्सर इस रस्ते से आना जाना हुआ है पर हर बार ये कुछ बदला सा लगता है | इतना बदलाव आता रहता है कि कोई भी जगह अगली बार पहचान ही नहीं मिलती | सुशांत ने बोला था जब मेकरी सर्कल पहुँच जाओ तब फोन कर देना | ना हम जान पाए कब वो आया , ना ही कंडक्टर ने बताया | सीधे मैजेस्टिक पहुँच के सुशांत को फोन किया | थोड़ी देर वेट करना पड़ा | फिर वो हमें बाइक से लेने आ गए और हम उनके घर पहुँच गए | उनके रूम-मेट्स से मुलाकात हुई और खाने में बैगन का भर्ता बनाया गया |

 

सुशांत से दोस्ती तब से है, जब मैं २००७ में कोलकाता से ट्रान्सफर होकर बंगलोर ( तब नाम बंगलोर ही था ) आया था | हम दोनों का एक कॉमन फ्रेंड था, वो सुशांत की कंपनी में था और मेरा कॉलेज फ्रेंड था | हम लोगो ने साथ ही घर लिया था | शुरुआत के दिन थे नौकरी के | साथ में खूब घूमे टहले | फिर एक-एक करके बाकी रूम मेट चले गए | बचे हम दोनो | बंगलोर में घर लेने के लिए १० महीने की सिक्यूरिटी , १ महीने का एडवांस और १ महीने का किराया ब्रोकर को देना होता था | उतने पैसे कुल मिला के दोनों के पास नहीं थे | जॉब करते अभी ६ महीने भी नहीं हुए थे | घर से पैसे मांगने का मन दोनों का नहीं था | फिर किसी तरह एक घर का जुगाड़ हुआ | १ साल उस छोटे से घर में गुजारने के बाद , एक बड़ा घर किराए पर लिया गया | कुछ दिनों बाद मैं अमरीका चला गया | वापस आकर जॉब स्विच करके गुड़गांव आ गया | सुशांत ने भी आई टी की नौकरी छोड़ दी | स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ज्वाइन की | उन्ही के फ्लैट में अड्डा जमाया गया है कुछ दिनों के लिए |

 

कुछ ३ साल रूम-मेट रहे हम दोनों | उसके बाद फोन पर भी अक्सर बात होती रहती थी | बीच-बीच में वो कभी घर जाने के लिए दिल्ली आया तो मुलाक़ात भी हुई | पर इस बार बड़े दिनों बाद फुरसत से बैठे | खाना खाने के बाद हम दोनों का फेवरेट था लंबी वाक पर जाना | रात २ बजे तक बाहर घूमते रहे | पिछले २-३ साल की बातें दोनों ने डिस्कस कीं | उसका नेक्स्ट डे ऑफिस था | वो सोने निकल लिए | मेरी इतनी जल्दी सोने की आदत रही नहीं है तो काफी देर तक किताब पढ़ता रहा | फिर लैपटॉप पर खटर-पटर की |

 

जब नींद खुली तो सुशांत और उसके रूम-मेट ऑफिस जा चुके थे | रेडी होकर हम भी बाहर घूमने निकले | सबसे पहले कॉफी पी गयी और मसाला बन खाया | ये फेवरेट नाश्ता रहा है हमेशा बंगलोर में | वापस आये तो फिर किताब में घुस गए | थोड़ी देर और सोया गया | अगले दिन सुबह जल्दी ही नंदी हिल्स के लिए निकलना था |

 

बस ऐसे ही गुज़ार दिए यहाँ पर पहले २४ घंटे | बाकी फिर कभी ,  तब तक हँसते रहिये - मुस्कियाते रहिये !!!!!

 

नमस्ते !!!

 

-- देवांशु

8 टिप्‍पणियां:

  1. Faltu me itta kuchh padhe.. ye to Devanshu live FM pe sun hi chuke the... :/

    जवाब देंहटाएं
  2. हा हा हा.. :)

    देखो, हंस भी रहे हैं और मुस्किया भी रहे हैं.

    जवाब देंहटाएं
  3. साला सब कुछ घिस पिटा... कोई नया मसाला बताओ, तो न.. :-/

    जवाब देंहटाएं
  4. दंबूक ...हा हा हा .
    देखो हंस ही दिए हम भी :)
    यूँ ही हंसाते रहो.

    जवाब देंहटाएं
  5. आज की ब्लॉग बुलेटिन तुम मानो न मानो ... सरबजीत शहीद हुआ है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    जवाब देंहटाएं
  6. इति श्रीबंगलोर यात्रा कथा! :)

    जवाब देंहटाएं