शनिवार, 13 जुलाई 2013

चीर-फाड़ , पोसमार्टम !!!!


बीती रात भारत एक बार फिर जीत गया | 

वैसे काफी रात तक स्कोर देखते और फेसबुकियाते रहे | पर फिर लगा अब आराम से जीत जायेंगे तो सो गए, सुकून की नींद |

उठे तो उठते ही फेसबुक से ही पता चला की बबाल हो गया | धोनी ने आखिरी ओवर में मैच जितवा दिया |
समझ ये नहीं आया की लोग किस बात पे बबाली  बने हैं, धोनी ने मैच जितवा दिया इस पर या आखिरी ओवर में जितवाया इस बात पर |

खैर, इ सब तो रोज़ का लफड़ा है | क्रिकेट से जित्ता फायदा खिलाड़ियों को हुआ है उतना ही टीवी चैनलों और कंपनियों को भी हुआ है | खेल विश्लेषकों ने भी अपनी दुकान मस्त खोल दी है |

हम रेडियो कमेंट्री के ज़माने के बाद पैदा हुए | पर बिजली महारानी की असीम किरपा के चलते अक्सर रेडियो कमेंट्री से ही काम चलाना पड़ता था | गली महल्ले में उस समत भी हर कोई किरकेट एक्सपर्ट हुआ करता था | 

ऐसे ही एक शानदार एक्सपर्ट हमारे पिताजी भी थे |  तब तक टीवी आ चुका था पर पिताश्री का कहना था ये टीवी वाले फील्ड पोजीशन सही नहीं बता पाते, इसलिए वो टीवी के साथ रेडियो कमेंट्री भी सुनते | जिसपर हमारी माताश्री का कहना होता “बिजलियो बर्बाद और बैटरी भी” | हर मैच , जो इंडिया हार जाती , उसके बाद पिताजी बताते की किसको नहीं खिलाना चाहिए था या किसने क्या गलती की और अगली बार किसको टीम से धकिया देना चाहिए | साथ ही ये भी बताते की ऐसी सिचुएशन में गावस्कर, प्रसन्ना, चंद्रशेखर आदि ने क्या किया होता | 

उस समय  इक्का दुक्का एक्सपर्ट हुआ करते थे टीवी पर | घिसी-पिटी मिमियाती आवाज़ में विश्लेषण हुआ करते थे वो भी  मैच के बाद दूरदर्शन के स्टूडियो में बैठ कर | उसके बाद कृषि दर्शन शुरू हो जाता | पता ही नहीं चलता की विश्लेषण ख़तम हुआ है की चालू है अभी भी |  दूरदर्शन के समाचारों में भी सरला माहेश्वरी, शम्मी नारंग, ग़ज़ला अमीन  और जे वी रमण हुआ करते थे |  वही न्यूज़ सुनाते और वही विश्लेषण कर देते, मामला रफा-दफा  | संसद समाचारों के चक्कर में स्पोर्ट्स की खबरें वैसे ही कम हो जाया करती | नेताओं की खेलों से दुश्मनी पुरानी रही है |

फिर ज़माना आया तड़कते-भड़कते न्यूज़ चैनल्स का | शुरुआत में तो इन्होने भी दूरदर्शन के वरिष्ठ विश्लेषकों का सहारा लिया | पर जैसे जैसे इनकी संख्या बढ़ निकली, विश्लेषक कम हो गए | लोगों ने खेल पत्रकारों को पकड़ना शुरू किया की आओ भाई विश्लेषण कर डालो | फिर और संख्या बढ़ी तो पुराने खिलाड़ी भी आ गए | जिनसे फील्डिंग के दौरान एक गेंद न पकड़ी गयी, विकेट कीपर को कीपिंग के गुर सिखाने लगे | पर अभी तक विश्लेषण , विश्लेषण ही हुआ करता था |

फिर वो चीर-फाड़ और पोसमार्टम बन गया |

धीरे-धीरे विश्लेषण में “सेंटियापा” घुसेड़ा जाने लगा | मैच शुरू होने से पहले खिलाडियों के पड़ोसियों, चाय वालों, दोस्तों आदि के इंटरव्यू आने लगे | हमारे एक्सपर्ट्स ने उसमे भी बताना शुरू कर दिया “पड़ोसियों में जिस तरह का उत्साह है उसके हिसाब से भारत ये मैच जीत जाएगा” | कुछ बाबा-टाबा भी विश्लेषक बन गए | टैरो कार्ड से मैच के स्कोर का अनुमान लगाया जाने लगा | “आज गांगुली का भाग्य साथ देगा या नहीं" इस पर चर्चा होने लगी | 

कम्पटीशन और बढ़ा तो नए एक्सपेरिमेंट शुरू हो गए |  अब वो दौर आया जब सभ्य-जनों के खेल की चीर-फाड़ सभ्य नहीं रही | तू-तू मैं- मैं शुरू हो गयी | सारे विश्लेषकों के अपने फेवरिट खिलाड़ी होने लगे , वो उनकी किसी भी कीमत पर तरफदारी पर उतर आये |

आजकल समाचारों के साथ स्टोरी दिखाने का चलन है | जिसमे खिलाडियों को “धोनी के धोकेबाज़" से लेकर “धोनी के धुरंधर" तक के तमगों से नवाज़ा जाता है | मुझे लगता है की ये पहले से बना के रख ली जाती होंगी | जीत गए तो ये बजा देंगे , हार गए तो ये बजा देंगे |

इसी तरह की कुछ रिपोर्ट्स भी तैयार रहती हैं | सचिन के सौवें शतक की तैयारी में बहुत सी रिपोर्टें तैयार थी | पर वो शतक मार ही नहीं रहे थे | उनके शतक मारते ही दनदना के ठेल दी गयीं | कुछ ने तो डाटा अपडेट ही नहीं किया | सचिन की उम्र तक पुरानी बता दी गयी |

पर मुझे लगता है की विश्लेषण अभी भी लाइव ही होते हैं |  इसी लाइव विश्लेषण के चक्कर में विश्लेषकों की मौत है | अब मान लीजिये कोई विश्लेषक स्टूडियो पहुचने के चक्कर में कल के मैच का आखिरी ओवर न देखे और स्टूडियो पहुँच कर सीधे विश्लेषण शुरू कर दे |

“मुझे समझ नहीं आता की ये धोनी हर मैच को आखिर तक क्यूँ ले जाते हैं” ये कहते हुए उन्होंने मेज़ पर हाथ पटका गुस्से से |

कान में घुसे हुए हेडफोन के द्वारा , जो घुंघराले बालों की तरह लटका हुआ था,  कंट्रोल रूम से आवाज़ आये “सर हम मैच जीत गए हैं |”

बात संभालते हुए बोले “वो तो कहिये वो खुद आउट नहीं हुए वर्ना हम मैच हार जाते | धोनी को इस बात की ज़िम्मेदारी लेनी ही पड़ेगी |”

फिर कान में आवाज़ आयी “सर धोनी ने ही जिताया है |”

लड़खड़ाते हुए बोले “पर शायद उन्हें अपनी काबिलियत पर पूरा भरोसा है, ऐसा मैच सिर्फ वो ही जिता सकते हैं , वो महान खिलाड़ी हैं, उनके जैसा कोई दूसरा नहीं हो सकता |” ( पूरे विश्लेषण में आंकडे गायब रहते हैं )

पर इन सबसे बचने का एक जुगाड़ हो सकता है | जीतने , हारने, बारिश होने  और ड्रा होने के सारे विश्लेषण मैच से पहले रिकार्ड कर लेने चाहिए | जैसा रिजल्ट हो वैसा बजा देना चाहिए | यहाँ पर ऑपरेटर्स की नौकरी बहुत इम्पोर्टेन्ट हो जायेगी | जैसा रिजल्ट वैसा विडियो बजाना होगा |

वैसे इस केस में विडियो रीयूज़ भी किये जा सकते हैं , काहे की ना आंकडे होंगे, ना मैच की फूटेज तो आराम से काम चल जायेगा | न्यूज़ चैनल वाले विडियो एक्सचेंज भी कर सकते हैं आपस में | वरायटी बनी रहेगी |

सिद्धू पा जी का अपना अलग रिकार्डिंग स्टूडियो होगा |  जहाँ वो दनादन रिकार्डिंग किये जायेंगे अपने विश्लेषण  |  रवि शास्त्री तो वैसे भी गिने चुने जुमले बोलते हैं , उनके जुमलों को अलग अलग रिकार्ड करके एडिटिंग की जा सकती है | हर्षा भोगले , शारदा उग्रा जैसों को तो वैसे भी कोई तड़क-भड़क वाला चैनल पूछता ही नहीं | उनके विडिओ क्रिक-इन्फो पर मिल ही जायेंगे |

सबसे बड़ी समस्या तब खड़ी होगी जब इस तरह एडवांस में बनाये विश्लेषण विडिओ किसी वेबसाईट पर लीक कर दिए जायेंगे और इस देश में नैतिकता के गिरते स्तर पर सारे बुद्धिजीवी फिर से विचार करने लगेंगे !!!!

पर अपन को क्या, हम तो बैठ के अगला मैच देखेंगे टीवी पर | मेरी मानिये तो आप भी यही करियेगा | और इससे पहले की खून चूसने के आरोप में हम धर लिए जाएँ और हमारा पोसमार्टम हो जाए , हम भागते हैं …

फिर मिलेंगे !!!! टाटा !!!
-- देवांशु 
(फोटू गूगल इमेज से एक बार फिर चुराया हुआ )

5 टिप्‍पणियां:

  1. चकाचक पोसमार्टम रिपोर्ट है।
    एक हार और एक जीत के दौरान मीडिया की रपटें एक दूसरे के इतनी विपरीत होती हैं कि अगर उनको मिला दिया जाये तो मीडिया का फ़्यूज उड़ जाये। :)

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  2. समय, बिजली तो बर्बाद होता था, यदि भारत हार गया तो शेष दिन भी बर्बाद।

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  3. bilkl sahi aankalan kiya hai ... agli peedhi ko bahut samay milega atirikt

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  4. ये पूरा मामला ही मुझे दिन ब दिन इतना अवैज्ञानिक लगता गया कि मेरी रूचि ही ख़त्म हो गयी!

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  5. जब से आई पी एल आया है हमने तो देखना ही छोड़ दिया :)
    वैसे लिखा जबरदस्त है.

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