सोमवार, 5 अगस्त 2013

लिफाफे में सादा कागज़ निकलने से हड़कंप

नई दिल्ली | प्रधानमंत्री कार्यालय को मिले एक पत्र के लिफाफे में सादा कागज़ निकलने से हडकंप मच गया है | सारे नौकर और अफसर शाह आदतानुसार बगले झांकने लगे है |

दरसल ये घटना सत्ता धारी गठबंधन की अध्यक्षा द्वारा प्रधानमंत्री को लिखे पत्र से खड़ी हो गयी | पिछले दिनों झुमरीतल्लैया  ( जिसको असली में कोडरमा के नाम से जाना जाता है ) से कुछ लोग माननीया से मिलने आये थे | उनका कहना था की विविध भारती पर प्रकाशित होने वाले कार्यक्रम “आप की फरमाइश" में पिछले करीब १५ सालों से उनके परिवार के कुत्ते का नाम बार-बार लिया जा रहा है | १५ साल पहले जब उन्होंने रक्षाबंधन के त्यौहार पर “बहना ने भाई की कलाई पर प्यार बाँधा है” वाला गान सुनने के लिए चिट्ठी लिखी थी तो उन्होंने अपने कुत्ते का नाम “शेरू" भी लिख दिया था | पर वो ये लिखना भूल गए थे की ये उनके कुत्ते का नाम है |

शेरू की मौत करीब १० साल पहले हो चुकी है |  पर हर साल रक्षाबंधन पर विविध भारती वाले उसका नाम ले लेते हैं उसी चिट्ठी का हवाला देकर, जिससे परिवार आहत हो जाता है |  फिर वैसे भी अब कुत्ते का मरना राष्ट्रीय आपदा है | उन्होंने इस आशय के कई पत्र विविध भारती और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को लिखे पर कोई कार्यवाही नहीं हुई | इस लिए अब वो सीधे माननीया के पास अर्जी लेकर आये हैं | अर्जी लेकर आये लोगो में मोनू , सोनू, बंटी , राजू और उनके सभी दोस्त शामिल थे |

मुलाकात के बाद जब शाम को प्रधानमंत्री ने अपनी रेगुलर परमिशन कॉल की माननीया को, तो उन्होंने इस घटना का संज्ञान लेते हुए कहा की वो इसके बारे में कल एक पत्र भेजेंगी जिसके बाद प्रधानमंत्री इस पर कोई त्वरित एक्शन लेने का एलान करेंगे | प्रधानमंत्री ने अपना पसंदीदा डायलोग दाग दिया "ठीक है" |

प्रधानमंत्री ने इस घटना के बारे में तुरंत एक्शन की घोषणा सुबह सुबह कर दी |  इसे माननीया के द्वारा भेजे गए पत्र के लिए  उठाया  गया कदम बताया और शाम को इसके बारे में विस्तृत जानकारी देने के लिए प्रेस-कांफ्रेंस बुला ली |  पर दोपहर में प्रधानमंत्री कार्यालय से खबर आ गयी की पत्र के लिए जो लिफाफा भेजा गया उसमे सिर्फ सादा कागज था | ये बात प्रधानमंत्री तक नहीं पहुँच पायी और वो सीधे प्रेस-कोंफ्रेंस में पहुच गए |

उन्होंने  उठाये गए क़दमों को पहले तो  युवराज की पहल और माननीया की देश के प्रति चिंता बताया फिर पहले से निर्धारित प्रश्नों के जवाब दिए | तभी एक खुराफाती पत्रकार ने ये सवाल दाग दिया की सादे कागज पर ही एक्शन कैसे ले लिए तो प्रधानमंत्री के पीए  असमंजस में आ गए | किसी को कुछ समझ नही आया की क्या कहें और क्या करें |  कुछ लोगो ने इसे हल्की सी गलती बताया जिसपे भारी हंगामा हो गया | कांफ्रेंस संसद भवन में तब्दील हो गयी | कुछ पत्रकार पक्ष में आ गए कुछ विपक्ष में | शब्द बाण चलने लगे |

माहौल बिगड़ता देख प्रधानमंत्री ने अपनी शायरी के ज्ञान के चलते एक लाइन में बात निपटाई :
“हम वो हैं जो लिफाफे का रंग देख ख़त का मज़मून जान लेते हैं” |
तब जाकर मामला शांत हुआ |

इस बीच नाम ना लिए जाने की शर्त पर प्रधानमन्त्री कार्यालय के एक उच्चपदासीन अधिकारी ने बताया है की दरसल वो सादा कागज़ प्रधानमंत्री कार्यालय को पिछले बयान के चलते दी गयी क्लीन चिट थी जो गलती से गलत लिफाफे में चली गयी | इस घटना के बाद से प्रधानमंत्री के द्वारा  आने वाले स्वतंत्रता दिवस के लिए बोली जाने स्पीच के लिफाफे की ट्रेकिंग पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है |

अभी तक पीड़ित परिवार से कोई संपर्क नहीं हो पाया है |
--देवांशु
(फोटू के लिए गूगल बाबा की जय हो )

3 टिप्‍पणियां:

  1. भावनायें आहत करने का खेल नित चल रहा है।

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  2. सुन्दर ,सटीक और प्रभाबशाली रचना। कभी यहाँ भी पधारें।
    सादर मदन
    http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
    http://saxenamadanmohan.blogspot.in/

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