सोमवार, 30 दिसंबर 2013

फितूर !!!


आज बड़े दिनों बाद कुछ लिखने बैठा हूँ | ऐसा नहीं है की लिखना कोई हमेशा की आदत रही है या हुनरमंद हूँ लिखने में | बस मन करता था तो की बोर्ड पर खिटिर पिटिर कर डालता था | मन के फितूर को लफ़्ज़ों का जामा पहना देता और खुश हो लेता की वाह भाई जी क्या लिख डाला |

और ऐसा भी नहीं की लिखने की आदत कोई नयी थी | शायद नौवीं में था जब पहली बार कुछ लिखा था अपनी डायरी में | तब से बात बे बात, खयाल उस डायरी के सुपुर्द करता गया | आज जहाँ भी जाता हूँ वो डायरी हमेशा साथ रहती है | 

जब भी उसे पढता हूँ तो पाता हूँ की तभी कुछ लिखा जब उदास हुआ | मानो डायरी न हुई मेरा पंचिंग बैग हुआ | जैसे “आज आई आई टी के प्री में एक बार फिर फेल हो गया” , “आज रिजल्ट आया एक नंबर से सेकंड आ गया” या “पेपर में बैक आ गयी , कॉलेज में टॉपर हूँ फिर भी , अब ओनर्स नहीं मिलेगी" | ऐसा ही हमेशा कुछ | कुछ कतरे इश्क के भी हैं, पर खासे पर्सनल तो यहाँ लिखे नहीं जा सकते, पर हैं उदासी के ही | एक भी ख़ुशी के लम्हे को वहां से निकालना मुश्किल है | मानों ज़िन्दगी में ख़ुशी देखी ही ना हो | पर ऐसा है तो नहीं |

फिर इस ब्लॉग पर खुद के लिखे को पढ़ता हूँ, ये पिछले कई दिनों से कर रहा हूँ जो की एक कवायद है खुद को वापस पाने की | तो पाता हूँ की सिवाय खुराफात और ज़हर के शायद ही कुछ लिखा है | तो क्या ये एक मुखौटा भर है मेरा या एक चादर जो खुद को उढ़ा दी है | दुनिया को दिखाने के लिए | क्यूंकि आदत तो हमेशा दुःख देखने की है , ख़ुशी की बात अपने मुंह से अच्छी नहीं लगती खुद को ही |

मुझे लगता है जिन्दगी के कई हिस्से होते हैं , और उनमे से कई एक ही वक़्त पर पैरेलल चल रहे होते हैं | ये आप पर है किसे आप ऊपर रखते हैं | हम सब की जिंदगी इन हिस्सों के पाटों के बीच कहीं फंसी होती है | अगर हम इनके साथ घुमते हैं , जिन्हें कभी कभी समझौता भी कहते हैं , तो अपनी जिंदगी को चलता हुआ पाते हैं , और जो रुक के खड़े होते हैं तो इन पाटों के ही बीच फंस जाते हैं , पिस जाते हैं | अक्सर हम इसका दोष दूसरों पर मढ़ देते हैं और संतोष कर लेते हैं | पर ये सच्चाई नहीं | ये हमारी खुद की ज़िंदगी होती है जो वक़्त के साथ, हमें लाही के दानों की तरह पीसती रहती है | पर अपने को दोष कौन दे ?

पिछले कुछ वक़्त में ऐसा ही कुछ बीतता रहा ज़िंदगी में , ये शायद जिद थी मेरी या मेरा अहंकार की मैं झुकने को तैयार नहीं था | हिस्सों की अपनी रफ़्तार थी | जिन्दगी पिसती गयी | पर खुद को खुद पर भी दया नहीं आयी | जहाँ था वहां अड़ के खड़ा हो गया | भूल गया की “झुकते वो हैं जिनमे जान होती है अकड़पन  तो सिर्फ मुर्दे की पहचान होती है” | खुद को एक ज़िंदा लाश की तरह पाने लगा  इसीलिए |  

फिर अमेरिका आने की सोची , शायद ये एक समझौता ही था | खुद की आँखें बंद करके खुद को छुपा हुआ समझने की कोशिश | पर इसमे भी नाकाम रहा | खुद को एक कमरे में बंद कर लिया है बस | यहाँ मैं हूँ | मेरी तन्हाई को बांटने के लिए दो लैपटॉप जिनमे से एक मेरे ऑफिस का जो २४ घंटे चलता है | एक गिटार है जिससे कोई धुन अब नहीं निकलती | एक कॉफ़ी मग है और कुछ पुरानी यादों के धुंए का साथ  |  एक फोन है जो कभी कभी ही बजता है | बस और कुछ नहीं | 

और इसी सब के बीच याद आया की मैं तो लिख भी लेता हूँ | तो बस ये सब लिख डाला | ऐसी कोई ख़ास अहमियत भी नहीं है अपनी की लोग पूछेंगे की भाई जी आजकल क्यूँ नहीं लिख रहे या कहाँ गायब हो गए |  दुःख लिखना अखरेगा यहाँ और फिर वैसा बनने में ना जाने कितना वक़्त लगे |  

तब तक के लिए : अगड़म बगड़म,  स्वाहा !!!!

( ये सब मन का फितूर है , इग्नोर कर दीजियेगा किसी को दुखी करने का कोई इरादा नहीं है |  आप सभी को आने वाले २०१४  और आगे के सभी सालों की ढेरों शुभकामनायें  )

6 टिप्‍पणियां:

  1. नहीं , जहर ही लिखा हो ऐसी बात नहीं है।कई बार सार्वजनिक स्थानों पर आपकी पोस्ट पढ़कर खिखियाते लोग, पागल समझ कर पकडे गए हैं और ये आम बात नहीं है :D . so लिखते रहो, बजाते रहो और मस्त रहो। जिन्दगी और प्रेम का क्या है सब आनी जानी माया है। साथ तो यह ब्लॉग ही देगा :p

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  2. क्या बात है! घणे सीरियस हो गये।

    अब हो गये तो हो गये। नया साल मुबारक हो!

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  3. बताओ बक्सा खुलवा दिया, कमेन्ट करने की नहीं आया अभी तक... अमेरिका जाके बहुत फितूर आ गए हैं.... मस्त रहो लड़के...

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  4. चिल्लाये तो सब पडे थे मगर जब कमेण्ट का बक्सा खुला तो एकौ आलसी कमेण्ट करने ना आया... हम ही तुम्हारी लाज रख लेते हैं बालक :P

    खराब बातों से भरी अच्छी पोस्ट ज़रा भी पसंद नहीं आयी :/

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    1. सबको यही गलतफहमी हो गयी कि उनका ही कमेन्ट पहला है.... :P

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  5. ख़ुद से ,खुद की बातें एक अलग ही रौ में ले गयी पर एक ईमानादारी भरी अभिव्यक्ति अच्छी भी बहुत लगी .....

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