बुधवार, 31 जनवरी 2018

जौहर बनाम सती !!!

जो जौहर पर घड़ा भर रो रहे हैं उनके लिए ख़ास !!!

अपने यहाँ डिस्कशन के नाम पर अपनी अल्पबुद्धि और अधूरे ज्ञान को दूसरे पर थोपने का काम वामपंथी और बुद्धिजीवी करते हैं , उसका दूसरा सानी मिलना पूरी दुनिया में मुश्किल है !!!

आजकल के माहौल में पद्मावत और जौहर को लेकर जो बवाल खड़ा हुआ उसमें कुछ नारीवादी सती प्रथा को घुसेड़ लाए और रोने पीटने लगे ।

जौहर और सती प्रथा में अंतर है । अगर ना पता हो तो राजा राम मोहन राय की जीवनी मात्र पढ़ लीजिए तो सती प्रथा पता चल जाएगी और रानी पद्मावती और अन्य राजपूत रानियों की कहानियाँ पढ़ लीजिए तो जौहर का अंदाज़ा लग जाएगा !!!

अब आते हैं की क्या सती प्रथा सही थी : मुझे नहीं लगता कोई भी २१ वीं सदी में हाँ कहेगा । पर क्या जौहर ( प्रथा नहीं मजबूरी कहिए साहब , कम से कम पद्मावती के संदर्भ में तो ) ग़लत था ?

पहले भी कई बार उदाहरण दिया है , फिर दे रहा हूँ , यजिदि महिलाओं का !! उनकी ज़िंदगी मौत से बदतर नहीं बना दी गयी ? जिस तरह के विडीओ बाहर आए हैं , मवेशियों से बदतर तरीक़े से उनकी बोली लग रही है बाज़ारों में !! ये क्या है ? अगर उसमें से कोई आत्महत्या ( जो सती के बजाय जौहर के ज़्यादा क़रीब का शब्द है ) कर ले , तो क्या भविष्य में लिखा जाने वाला इतिहास उसे कायरता कहेगा ? यजिदि आम तौर पर एक शांतिप्रिय समुदाय माने गए हैं , पर फिर भी उनके पुरुषों ने संघर्ष तो किया ही और मार दिए गए , तो क्या उन्हें इतिहास कायर कहेगा ?

कैमरे का ऐंगल शिफ़्ट करें और दूसरी तरफ़ से देखें तो इसी यजिदि प्रकरण में जो अनैतिकता कर रहे हैं , ज़्यादा कटघरे में उन्हें नहीं खड़ा करना चाहिए ? क्या उसी इतिहास को इन्हें दरिंदा नहीं दिखाना चाहिए ?

मोटा मोटा सवाल ये है की ख़ुद को जानवरों से बदतर ज़िंदगी से बचाने के लिए अगर कोई आत्मदाह करे क्यूँकि और कोई रास्ता नहीं दिखता तो सवाल उस पर ज़्यादा होने चाहिए या फिर उस पर  जो इसके लिए मजबूर कर दे !!!

नैरेटिव दोनों हो सकते थे : पर चूँकि सरोकार ( और साफ़ साफ़ कहें तो जैसी फ़ंडिंग ) जैसे थे वैसी सोच बनायी और थोपी गयी ।

और अंत में रहा सवाल इतिहास का : तो जनाब इतिहास ना साहित्य है की सब लिखा मिलेगा और ना ही क़ानून की किताब की जो है वो सीधा सीधा !!! इतिहास एक विज्ञान है जो आपकी समझ के लिए बहुत ज़रूरी है और इस विज्ञान की प्रयोगशाला किसी कमरे में रखे कुछ उपकरण नहीं होते । आपको जगह जगह घूमना पड़ेगा , लोगों से मिलना पड़ेगा , भवन - महल - खंडहर - झुग्गी - झोपड़ी घूमनी पड़ेगी । इस सब को साथ रखकर सोचना पड़ेगा । टाइम लाइन बनेगी । तत्कालिक परिस्थितियाँ जब समझ में आएँगी तब कहीं जाकर समझ में आएगा की भूत में लिया गया कोई क़दम आज कितना भी सही या ग़लत लगे , उस समय क्यूँ लिया गया था ।

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पान की दुकान पर खड़े होकर ये बताना बहुत आसान है की सचिन को पूरी ज़िम्मेदारी के साथ पाकिस्तान के ख़िलाफ़ चेन्नई टेस्ट में आख़िर तक खेलना चाहिए था और हार के लिए वही ज़िम्मेदार है । जब असलियत में १४० किमी प्रति घंटे की स्पीड से नाक के क़रीब से गुज़रती है तब पता चलता है की उसकी स्मेल पूछने वाला आपको स्लेज कर रहा है !!!!

जाके पैर ना फटी बेवाई : वो नारीवादी , मानवतावादी , बुद्धिजीवी सब बन सकता है पर एक तार्किक सोच रखने वाला इंसान नहीं !!!

नोट : ना पद्मावत देखी है ना देखने की कोई इच्छा है । और दिक़्क़त किसी और से नहीं भंसाली से है : मुझे शादी के विडीओ देखना कुछ ख़ास पसंद जो नहीं है !!!!